बंग्लादेश के टुकड़े होंगे
इष्ट देव सांकृत्यायन
बंग्लादेश के भविष्य को लेकर पिछले दिनों कई मित्रों ने मुझसे प्रश्न किया था।
खासकर वहाँ हिंदुओं की स्थिति को लेकर सभी को चिंता है। तरह-तरह की आशंकाएँ सबके
मन में हैं। इस पर मैंने गणनाएँ शुरू कीं। कुछ हद तक कर भी लिया। तब तक एक लेख
पढ़कर कुछ भ्रम की स्थिति बन गई। मैंने सोचा कि यह संशय मिटा लेना ही ठीक रहेगा।
इसके पहले कि वह संशय मिटता एक और संशय आ गया। ये दोनों संशय बंग्लादेश के समय को लेकर थे। एक ने समय 16 दिसंबर 1971 को
00.00 बजे बताया था और दूसरे ने शाम को साढ़े चार बजे। जब मैंने अतीत की
घटनाओं से जोड़कर देखा और इधर हाल की घटनाओं की तह तक भी गया तो जो समय सही लगा वह
16 दिसंबर 1971 को दिन के 11 बजे का है। स्थान स्वाभाविक रूप से ढाका माना जाएगा।
इस हिसाब से बांग्लादेश की कुंडली कुंभ लग्न की बनती है। सन 1971 से लेकर अब
तक समष्टिगत परिप्रेक्ष्य में जो घटनाएँ बंग्लादेश में घटी हैं और अभी भी जो हो
रहा है, उस सब पर इस कुंभ लग्न और उससे बनने वाली ग्रहस्थितियों का पूरा प्रभाव है।
फिलहाल पूरा इतिहास उलीचने का यहाँ कोई औचित्य नहीं है। विचार का मूल विषय यह है
कि हाल के दिनों में जो घटनाएँ घटी हैं, जिस तरह हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक
समुदायों पर हमले हुए हैं, उनका क्या परिणाम निकलने वाला है और आगे क्या होने वाला है।
क्या बंग्लादेश निकट भविष्य में राजनैतिक और आर्थिक रूप से स्थिर हो पाएगा या फिर
सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा? सबसे मुख्य बात यह कि बंग्लादेश में चल रही इन घटनाओं का
भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
गुलिक की भूमिका
कुंभ लग्न की इस कुंडली में लग्न में मंगल हैं। चौथे भाव में वक्री शनि हैं।
केतु छठवें और स्वाभाविक रूप से राहु 12वें भाव में हैं। 10वें चंद्रमा, बृहस्पति और बुध
हैं। इनमें बुध वक्री हैं, चंद्रमा नीच के और बृहस्पति अस्त हैं। सूर्य और शुक्र 11वें
भाव में हैं। इनमें शुक्र तो वर्गोत्तम हैं, लेकिन सूर्य शून्य अंश
के। अंशबल देखें तो इनमें मंगल सर्वाधिक अंशों वाले यानी 29 अंश के हैं। जैमिनी
मतानुसार यह आत्मकारक हुए, लेकिन विषम राशि कुंभ में 29* का अर्थ हुआ मृत
अवस्था। मंगल के बाद सर्वाधिक अंश शुक्र का है – 27 डिग्री। जैमिनी मत से यह
अमात्यकारक हुए। लेकिन हैं शुक्र भी विषम राशि धनु में, तो यह भी मृत हुए। मंगल
के आत्मकारक होने का अर्थ – लड़ाई के लिए हमेशा उद्यत। चाहे घर में हो या बाहर। सही मायने में वॉरमॉन्गर। इनके जन्म से अब तक का इतिहास देख लें। ये बाहर किसी
से नहीं लड़ सकेंगे तो भीतर ही लड़ेंगे। लेकिन मृत अवस्था का अर्थ होता है हमेशा
पराजय और अपमान सुनिश्चित। आत्मकारक ग्रह के मृत होने का अभिप्राय प्रकृति से ही
आत्महीन। व्यक्ति के रूप में देखें तो कृतघ्नता ऐसे लोगों के रक्त में होती है। इस
मृत मंगल पर वृषस्थ वक्री शनि की दसवीं दृष्टि है। ऊपर से शनि का बेटा गुलिक भी
लग्न में ही बैठा है। उत्तर कालामृत के प्रथमकांड के ही आठवें श्लोक में मांडव्य
ऋषि के हवाले से महाकवि कालिदास कहते हैं –
अंत्यांशो हि निरीश्वरस्तु गुलिकः शन्यंशकस्तन्निशो
वारेशादिह पंचमादित अयं खंडांतमेंशे भवेत्॥
स्यार्तामंदसु तायुभावतिखलावित्येवमूचे
मुनिर्मांडव्यः किल यत्र तौ निवसतस्तत्रैव हानिप्रदौ॥
अर्थात शनि के दो पुत्र – एक तो गुलिक और दूसरा मांदी
– ये जहाँ कहीं भी बैठते हैं उस स्थान को
हानि पहुँचाते हैं।
[गुलिक और मांदी को कहीं-कहीं एक ही माना गया है, और कहीं-कहीं दो अलग उपग्रह। पौराणिक कथाओं में दोनों को
शनिपुत्र माना गया है। कुछ ज्योतिर्विद इन्हें राहु-केतु की तरह छाया ग्रह मानते हैं
और नक्षत्रशास्त्री शनि का उपग्रह, जिन्हें अप्रकाश ग्रह कहा
जाता है। इस पर विस्तार से फिर कभी चर्चा करेंगे। फिलहाल बंग्लादेश...]
बंग्लादेश की चंद्र कुंडली से वर्तमान गोचर
मंत्रेश्वर भी कहते हैं,
गुलिकस्य तु संयोगे दोषान्सर्वत्र निर्दिशेत्।
यमकण्टकसंयोगे सर्वत्र कथयेच्छुभम्॥
अर्थात जहाँ कहीं भी या जिस किसी भी ग्रह के साथ
गुलिक बैठे हों, वहाँ बुरा ही होना है।
ध्यान रहे, गुलिक बंग्लादेश
के लग्न में बैठा है। मंगल के साथ। लग्न माने शरीर, व्यक्तित्व,
रंग-रूप, मस्तिष्क। समग्रता में व्यक्तित्व।
व्यक्तित्व की बात करें तो बंग्लादेश जन्म के पहले से ही भग्न है। मंगल लग्न के
स्वामी हैं और कारक सूर्य हैं। कुंभ लग्न में सूर्य मारकेश हैं। सूर्य बैठे तो
एकादश में हैं, लेकिन हैं मारकेश और अब सूर्य की ही महादशा
चल रही है। मारकेश सूर्य की इस महादशा में बंग्लादेश का विखंडन तय है। कितने
टुकड़ों में और कब, यह आगे देखते हैं। एक बात और, हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को निकट भविष्य में वहाँ कोई राहत मिलती
नहीं दिख रही है। मिलेगी, लेकिन देश टूटने के बाद ही। अभी
हिंदुओं के बाद इस्लामी कट्टरपंथियों का रुख ईसाइयों, बौद्धों
और अन्य मतावलंबियों की ओर होगा। इसके पहले ही ये खुद आपस में भी लड़ेंगे।
अमात्यकारक शुक्र और स्त्री शासक
सूर्य में राहु का अंतर 10 नवंबर को बीत चुका है और
अब 29 अगस्त तक गुरु का अंतर चलेगा। राहु के अंतर के दौरान जिस तरह अराजकता बढ़ी, वह पूरी दुनिया ने देखी। अब गुरु का अंतर अल्पसंख्यकों पर
अमानुषिक अत्याचार और फिर से अराजकता के उभार का दौर है। इसके पहले शुक्र की
महादशा रही है। शुक्र की महादशा 24 अक्टूबर 2002 से शुरू हुई और 23 अक्टूबर 2022
तक चली। बांग्लादेश में व्यापार-वाणिज्य की जो भी और जैसी भी तरक्की हुई वह इसी
दौरान हुई। उसमें भी खासकर 2009 के बाद, जब शेख हसीना के हाथ
में सत्ता आई। क्योंकि शुक्र बांग्लादेश की कुंडली में सुखेश और भाग्येश हैं।
मेदिनी ज्योतिष के सिद्धांत के अनुसार यह देश की सुख-संपदा, भाग्य
और प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हैं, उस अवस्था में जबकि
नेतृत्व किसी स्त्री के हाथ में हो। बांग्लादेश की सत्ता अधिकांशतः खालिदा जिया या
शेख हसीना के हाथ में ही रही है।
जब-जब किसी स्त्री के हाथ में देश का नेतृत्व होता है, भाग्येश और अमात्यकारक शुक्र सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन शुक्र
इस्लाम का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। स्वयं एकादश स्थान में बैठे हैं। अमात्यकारक
होने के बावजूद पहले ही मृत अवस्था में हैं और साथ ही सूर्य के साथ होने के कारण
पीड़ित भी। इसलिए महिलाओं की दशा वहाँ इसके बावजूद सुधर नहीं सकी। लग्न से बारहवें
यानी शुक्र से दूसरे ही भाव में राहु बैठे हुए हैं। राहु मेदिनी ज्योतिष में
इस्लामी कट्टरपंथ का प्रतिनिधित्व करते हैं। शुक्र से दूसरे यानी कुटुंब भाव में
होने के कारण कट्टरपंथियों का प्रभाव इन पर हमेशा बना रहेगा। बीते दिनों जब वहाँ
आरक्षण के नाम पर कट्टरपंथी उभार हुआ, वह दौर भी सूर्य में
राहु के अंतर का ही था। कट्टरपंथियों के रहते वहाँ स्त्रियों के लिए सम्मान और
स्वतंत्रता आकाशकुसुम जैसी अवधारणा है। चाहे नेतृत्व किसी के भी हाथ में क्यों न
हो। यह सुनिश्चित न होने के कारण शुक्र के कारकत्व का पूरा लाभ बंग्लादेश को नहीं
मिल सका।
अराजकता के बाद दीवालियापन
अब सूर्य में बृहस्पति की अंतर्दशा चल रही है और
चलेगी 29 अगस्त तक। बृहस्पति इस कुंडली में धनेश और आयेश हैं। धनेश होने के कारण
यह मारक भी हैं। स्वभावतः बृहस्पति सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति
बैठे हैं दसवें घर में चंद्रमा और वक्री बुध के साथ। यहाँ बुध और गुरु दोनों ही अस्त
हैं। इसके स्वामी मंगल हैं। मंगल से नैसर्गिक और इस कुंडली में तात्कालिक भी
मित्रता होने के कारण यह पीड़ित होते हुए भी थोड़े से मजबूत हैं। लेकिन बैठे हैं दो नैसर्गिक
शत्रुओं के साथ। इनके साथ बैठे चंद्रमा इस कुंडली में षष्ठेश हैं और बुध पंचमेश
एवं अष्टमेश। दोनों गुरु के नैसर्गिक शत्रु हैं और तात्कालिक भी। भाव स्वामी मंगल की
दृष्टि भी अपने घर पर नहीं पड़ रही है। गोचर अगर लग्न से देखा जाए तो उसमें
बृहस्पति चौथे भाव में हैं और चंद्र से देखें तो सातवें भाव में। उन पर केतु की
दृष्टि भी है। सनातनियों पर हमले की चर्चा भले कम हो गई, लेकिन हमले अभी रुकेंगे नहीं। गोचर में ही इस समय चौथे भाव
में बैठे शनि यानी लग्नेश पर तृतीयेश यानी मंगल की दृष्टि पड़ रही है, जो कि चंद्रगोचर कुंडली के नवम भाव में स्थित हैं। वह घर भी चंद्रमा का है
और मंगल वहाँ नीचस्थ हैं। लग्नेश पर नीचस्थ तृतीयेश और दशमेश की आठवीं दृष्टि होने
के कारण वहाँ उत्पादन कार्य पूरी तरह ठप है। उत्पादन के जरिये आय के जो भी रास्ते
थे, वे सभी बंद हो चुके हैं। लग्न कुंडली में आयेश गुरु के
साथ बैठे चंद्रमा षष्ठेश हैं और वक्री बुध अष्टमेश। सुनिश्चित है कि गुरु की अंतर्दशा
बीतते-बीतते बंग्लादेश पूरी तरह दीवालिया हो जाएगा।
प्रश्न यह है कि फिर अर्थव्यवस्था का क्या होगा? लोगों का काम कैसे चलेगा? साथ बैठे चंद्र
षष्ठेश यानी ऋण-रोग-शत्रु भाव और बुध अष्टमेश यानी आकस्मिकता-संकट-अज्ञात भय-कड़ी शर्तों
और गोपनीयता वाले भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। महादशानाथ सूर्य के आय भाव में बैठे
होने और उस भाव पर अंतर्दशानाथ गुरु का स्वामित्व होने का अर्थ है कि आय होगी,
लेकिन उत्पादन या व्यापार नहीं, कर्ज के जरिये।
वह कर्ज इतनी कड़ी शर्तों पर मिलेगा कि बंग्लादेश का शासन जनता को बताने का साहस भी
नहीं जुटा सकेगा और उसके दुष्चक्र से वह जीते जी फिर कभी बाहर नहीं निकल सकेगा। एक
तरह से बंग्लादेश अपनी संप्रभुता गिरवी रख देगा।
सूर्य की महादशा में अंतर्दशाएँ
शनि के अंतर में विखंडन
इस गुरु के बाद शनि की अंतर्दशा आएगी, जो 10 अगस्त 2026 तक चलेगी। सूर्य और शनि के बीच ऐसे ही शत्रुता
है। अपने संस्थापक पुरुषों से यह पहले ही अपना दामन छुड़ा चुका है। सूर्य ऐसे ही मारकेश
हैं, उन्हें और अधिक रुष्ट कर दिया। सूर्य हैं केतु के नक्षत्र
में, जिसका परिणाम होगा मूल से टूटना। इसीलिए सूर्य की महादशा
आते ही बंग्लादेश अपने मूल से टूटा है। अपने संस्थापक पुरुषों का अपमान किया। संकट
से मुक्ति दिलाने वाले देश भारत के विरुद्ध जाकर यह उन देशों और तत्त्वों के इशारे
पर नाचने लगा जो इसके मौलिक शत्रु हैं और जिनके चंगुल से बाहर निकलना इसके लिए भारत
की मदद के बगैर संभव ही नहीं होता। लेकिन सूर्य के केतु के नक्षत्र में होने के ही
कारण एहसानफरामोशी बंग्लादेश के रक्त में है। इसी कारण यह बार-बार अपने मित्र भी बदलता
है। कई बार शत्रुओं को मित्र मानकर उनकी गोद में जाकर बैठ जाता है। लग्न पर शनि की
दृष्टि भी पड़ रही है। स्पष्ट है कि ये शर्तें जनता से छिपी नहीं रह सकेंगी। बहुत भयावह
विद्रोह होगा। यह विद्रोह ही बंग्लादेश में गृहयुद्ध का रूप ले लेगा और इसी बीच बंग्लादेश
के टुकड़े भी हो जाएंगे। टुकड़े दो से अधिक हो सकते हैं।
बंग्लादेश में एक सशक्त विद्रोह की आशंका इसके पहले भी
है। इसी वर्ष मार्च में मीन राशि में षड्ग्रही युति बनेगी। यह युति बंग्लादेश के चंद्र
से पाँचवें और लग्न से दूसरे भाव में होगी। मार्च में ही शनि का गोचर भी लग्न से दूसरे
भाव में हो जाएगा। शनि की तीसरी दृष्टि चौथे भाव पर पड़ेगी। व्यापक जनविद्रोह सुनिश्चित
है। इस विद्रोह में एक बार फिर युवावर्ग यानी छात्रों की ही मुख्य भूमिका होगी और सरकारी-निजी
दोनों ही तरह की संपत्तियों को बड़ा भारी नुकसान पहुँचेगा। इसके मूल में सत्ता में बैठे
किसी राजनैतिक व्यक्ति का बयान होगा और इसमें एक ही समुदाय के लोग आपस में लड़ कर कट
मरेंगे। आय के सारे रास्ते पूरी तरह अवरुद्ध हो जाएंगे और बड़ी मुश्किल से संचित की
गई संपत्ति भी तेजी से बर्बाद होने लगेगी। इसके बाद इसी वर्ष मई में राहु-केतु का भी
राशि परिवर्तन होगा। यह और भी घातक होगा। एक समुदाय के लोग तो आपस में लड़ेंगे ही, हिंदुओं के अलावा अन्य अल्पसंख्यकों पर भी आफत आएगी। विभिन्न देशों
की खुफिया एजेंसियाँ बंग्लादेश को पूरी तरह अपनी पकड़ में ले लेंगी। बेकारी,
गरीबी और भूख से बिलबिलाते नागरिक कुछ समझ नहीं पाएंगे और दृष्टिहीन
नेतृत्व कुछ कर नहीं सकेगा। वास्तव में देश के विभाजन की नींव इसी समय पड़ जाएगी।
मई के बाद के नए गोचर में राहु बंग्लादेश के लग्न में
आ जाएंगे। सत्तासीन समूह के शीर्षस्थ नेता आपस में ही लड़ेंगे और यह लड़ाई जल्दी ही सतह
पर दिखने लगेगी। मदद की आस ये कट्टरपंथी गिरोहों से लगाएंगे। लेकिन वे मदद के बजाय
सरकार के लिए और बड़ी मुसीबत खड़ी करेंगे। वे मुसलमानों को आपस में ही लड़ाने का काम करेंगे
और इस स्थिति में अल्पसंख्यकों की स्थिति भी और बिगड़ेगी। दंगे और आगजनी बार-बार होगी।
बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी दुर्निवार होंगी। पड़ोसी देश से युद्ध की स्थिति
भी बनेगी। यह बार-बार भारत को युद्ध के लिए उकसाएगा, लेकिन
भारत अपने-आप हमला नहीं करेगा। अंतिम समय तक शांति बनाए रखने की कोशिश करेगा। गुलिक
उस समय लग्न में सक्रिय होगा। निर्णय लेने वाले जिम्मेदार पदों पर बैठे कार्यकारियों
को वह पूरी तरह किंकर्तव्यविमूढ़ कर देगा। तंत्र के विभिन्न स्तंभ आपस में ही लड़ेंगे
और यह पूरी दुनिया को साफ दिखाई देगा। सबसे ज्यादा कष्ट बंग्लादेशी नागरिकों को उठाना
पड़ेगा। विदेशों में जहाँ कहीं भी बंग्लादेशी नागरिक हैं, वहाँ
से निकाले जाने लगेंगे। नौकरियों से भी निकाल दिए जाएंगे। विदेशों में जगह-जगह इन्हें उपेक्षा और अपमान का दंश सहना पड़ेगा।
पूरी दुनिया की मुख्यधारा से इन्हें एक-एक कर काट दिया जाएगा।
कुल मिलाकर बंग्लादेश में जनता, सत्ता, बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सबके हालात
दिन-प्रतिदिन खराब होते जाने के संकेत हैं। यह संकट इसके लिए चतुर्दिक होगा। ध्यान
रहे, 15 मई को ही गुरु का गोचर बदलेगा और गुरु अतिचारी हो जाएंगे।
यह गोचर पूरी दुनिया के लिए ठीक नहीं है। बंग्लादेश के लिए यह गोचर छठे भाव में होगा।
2026 में बंग्लादेश का विभाजन सुनिश्चित है। गुरु के अतिचार की यह अवस्था लंबे समय
तक चलेगी। इस पर कभी अलग से चर्चा होगी।
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