गुटनिरपेक्षता की नीति और ईरान का साथ

इष्ट देव सांकृत्यायन ईरान और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध का मसला अभी हल नहीं हुआ , लेकिन ईरान ने भारत से मिले समर्थन और शांति प्रयासों में भागीदारी के लिए आभार जता दिया। क्या यह एक थोथी औपचारिकता भर है ? इसके पहले कि इस तथ्य का विश्लेषण किया जाए , मैं आपको यह याद दिला देना जरूरी समझता हूँ कि कुछ ही दिनों पूर्व सोनिया गांधी ने ईरान के विरुद्ध होने को लेकर भारत सरकार की भर्त्सना की थी और स्पष्ट शब्दों में कहा था कि भारत की विदेश नीति अब ‘ नॉन एलाइंड ’ से ‘ ऑल एलाइंड ’ हो चुकी है। अपने को ‘ निष्पक्ष ’ बताने वाले कुछ पत्रकार और प्रोफेसर भी किंतु-परंतु के साथ ऐसा ही कुछ कर चुके थे। गाजियाबाद से प्रकाशित दैनिक 'अथाह' में एक अखबार में तो एक पत्रकार और प्रोफेसर ने मिलकर एक पूरा पन्ना रंग डाला था , यह बताने पर कि ईरान पर हुई बमबारी का दुष्परिणाम भारत को भुगतना पड़ेगा , पछुआ हवाओं के चलते। ये चेरनोबिल बनने जा रहा है। यह अलग बात है कि दोनों को यह पता तक नहीं कि भारत में पछुआ हवाएँ चलती कब हैं और कितने दिन। हाँ , बस ये है कि अखबार का एक पन्ना अपनी बकवास से रंगकर उन्होंने अपनी मोदी व...