यात्रा संस्मरण केदारनाथ यात्रा का कष्टप्रद आनंद -हरिशंकर राढ़ी Hari Shanker Rarhi at Kedarnath Temple बहुप्रतीक्षित, प्रतिष्ठित और रोमांचित करने वाली केदारनाथ धाम की यात्रा करके कल लौट आया। पहले केदारनाथ की, फिर बद्रीनाथ की। धार्मिक दृष्टि से देखूँ तो इस यात्रा के साथ मेरी चार धाम (द्वारका पुरी, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम् और बद्रीनाथ धाम) तथा द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा संपन्न हो गई। हालाँकि, ये यात्राएँ मेरे लिए धार्मिक-आध्यात्मिक कम, भारत भ्रमण या पर्यटन अधिक थीं। केवल धार्मिक आस्था की बात होती तो संभवतः मैं नहीं जाता। हाँ, इसमें संदेह नहीं कि इस व्यवस्था के पीछे व्यवस्थाकारों ने बहुत सोचा होगा, तब जाकर ये स्थल तीर्थयात्रा के लिए निर्धारित किए गए होंगे। जहाँ चारो धाम देश के चार कोनों का, वहीं द्वादश ज्योतिर्लिंग देश के बाहरी से लेकर आंतरिक हिस्सों तक का पूरा भ्रमण करा देते हैं। आज पर्यटन की दृष्टि से यात्राएँ विस्तार पा रही हैं, किंतु इसमें संदेह नहीं कि धर्म के बहाने यात्रा करने वालों की संख्या आज भी बहुत बड़ी है। केदारनाथ और बद्रीनाथ की मेरी यात्रा बहुप्रतीक्षित थी, जो किसी-न-कि
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पश्चिम पर भारी पड़ेंगे ग्रहण
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श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः अश्विन कृष्णपक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से होने वाली है। इससे पूर्व महालया श्राद्ध यानी पूर्णिमा की श्राद्ध लोग भाद्रपद मास की पूर्णिमा को करते हैं। इसलिए इसे भी श्राद्ध के दिनों में गिन लिया जाता है। इस तरह श्राद्ध वाले पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो जाने वाली है और इसी दिन चंद्र ग्रहण है। हालाँकि यह ग्रहण भारत में दृष्ट नहीं होगा। क्योंकि भारत में जब तक यह ग्रहण होगा , अगले दिन की सुबह हो जाएगी। इसलिए भारत पर इसका बहुत अधिक और सीधा असर भी नहीं होगा। लेकिन , दुनिया में जो होगा उसका भारत पर असर न हो , ऐसा भी नहीं हो सकता। इज्रायल और फिलस्तीन या रूस और यूक्रेन में युद्ध होता है तो यहाँ शेयर बाजार प्रभावित हो जाता है। शेयर बाजार प्रभावित होता है तो हम आप प्रभावित होते हैं और हमारे-आपके नाते हमसे-आपसे जुड़े हुए बाकी तत्त्व भी प्रभावित होते ही हैं। इस तरह इससे हम सब भी प्रभावित होंगे , यह अलग बात है कि मामूली तौर पर। इस पक्ष का अंत भी ग्रहण से ही होगा। आरंभ यानी 18 सितंबर को चंद्र ग्रहण है तो अंत यानी में 2 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण। यद्यपि ये दोनों ही ग्रहण भारत में द
अफवाहों से रहें सचेत
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इष्ट देव सांकृत्यायन पिछले दिनों जब मैंने मंगल ग्रह के राशि परिवर्तन संबंधी पोस्ट की थी और उसके साथ ही मिडिल ईस्ट के संबंध में खास तौर से चेताया था , तब कुछ मित्रों ने मजाक किया था। लेकिन जब बीते रविवार यानी 25 अगस्त को इजरायल पर हिजबुल्ला ने 100 से ज्यादा रॉकेट दाग दिए तो पूरा परिदृश्य बदल गया। आगे और बहुत कुछ बदल गया जब इजरायल ने लेबनॉन पर सौ से ज्यादा जेट विमानों से हमला कर दिया। फिर बची-खुची कसर पाकिस्तान , रूस और यूक्रेन की घटनाओं ने निकाल दी। भारत के भीतर बंगाल और महाराष्ट्र में जो हो रहा है , वह आप देख ही रहे हैं। इजरायल-लेबनॉन का मसला तो अमेरिकी हस्तक्षेप ने थोड़े दिनों के लिए शांत कर दिया , लेकिन आज वेस्ट बैंक में जो कुछ ताजा-ताजा इजरायल ने किया , उसने फिर से एक बार सबका भ्रम दूर कर दिया। अभी शांति के किसी भी प्रयास की क्षणिक सफलता को स्थायी समझ लेना बहुत बड़ी भूल होगी। मंगल 26 अगस्त को मृगशिरा में प्रविष्ट ही हुए ही थे। अपने ही इस नक्षत्र में अब वे आधा रास्ता तय कर चुके हैं। आगे 6 सितंबर को राहु के नक्षत्र आर्द्रा में जाएंगे। आने वाले दिनों में वह सब होगा जो कि पहले कभी नहीं
शहीद की वसीयत बनाम ज्ञान की बाढ़
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वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों के मरणोपरांत दी जाने वाली राशि का क्या किया जाए, इस पर अपना अत्यंत बहुमूल्य ज्ञान देने से पहले जरूरी है कि उस सैनिक की मनःस्थिति के बारे में भी एक बार जान लिया जाए। यह बात भी ध्यान रखी जाए कि वह सैनिक की अपनी कमाई हुई राशि होती है, वरासत में मिली हुई नहीं। वह कमाई हुई राशि भी कोई मामूली नहीं होती है। उस राशि के बदले में उसने अपना केवल श्रम और कौशल या अपनी विशेषज्ञता नहीं दी होती, यथार्थतः अपनी जान दी होती है। कई बार तो ऐसी जगह जहाँ शरीर के चीथड़े उड़ गए होते हैं और वो चीथड़े भी बटोर कर लाए नहीं जा पाते। मुद्दे पर अपना ज्ञान देने और निरर्थक बहस का मुद्दा बनाने से पहले एक बार सोच लिया करें कि जिनके मन के कोने-कोने में एक रिश्ते के रूप में उस अस्तित्व की स्मृतियाँ समाई होती हैं, जिनके लिए वह एक राजनैतिक या सामाजिक या विधिक मुद्दा भर नहीं होता, उन पर आपके इस महान योगदान से क्या प्रभाव पड़ेगा। जिस तरह किसी सिविलियन का अपनी कमाई हुई राशि पर पूरा अधिकार होता है, वैसे ही सैनिक का भी अपनी कमाई हुई राशि पर पूरा अधिकार होता है। यह ऐसे ही नहीं होता, सेना की दो दशकों से
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लाल हथेलियाँ (नारी-केंद्रित कहानियाँ) : रामदरश मिश्र संपादन : हरिशंकर राढ़ी शताब्दी साहित्यकार प्रो0 रामदरश मिश्र की नारी-केंद्रित कहानियों का संग्रह ‘लाल हथेलियाँ’ दो दिन पहले प्रकाशित होकर आया है। मिश्र जी के साहित्य पर संपादित यह मेरी तीसरी पुस्तक है। मिश्र जी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है; इस अवसर पर उनकी चुनी हुई नारी-केंद्रित कहानियो का संग्रह लाना मेरे लिए गौरव एवं बड़े आत्मसंतोष की बात है। रामदरश मिश्र जैसे उच्चकोटि के इतने सहज साहित्यकार विरले ही होते हैं, इसलिए उनसे एक आत्मीय जुड़ाव चला आ रहा है। आज इस संग्रह का लोकार्पण मिश्र जी के द्वारका आवास पर अत्यंत सादगी से हुआ। वस्तुतः मिश्र जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं चल रहा है, आजकल हलका बुखार है। संग्रह के प्रकाशन में भी अपेक्षा से कुछ अधिक समय लग गया था। इसलिए संग्रह के लोकार्पण को बड़ा रूप देने के बजाय आत्मीय ढंग से लोकार्पित कर दिया। इस अवसर पर दिल्ली वि0वि0 में अंगरेजी के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ वेदमित्र शुक्ल एवं साहित्य सहयात्री, समकालीन अभिव्यक्ति के संपादक उपेंद्र कुमार मिश्र जी उपस्थित थे। इस अंक में समाहित मिश्र जी की नारी क
चुनाव: एक ज्योतिषीय विश्लेषण
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मैंने पहले ही कहा था कि चुनाव पर अपना ज्योतिषीय आकलन मैं मतदान पूरा होने के बाद लिखूंगा। हालांकि यह आकलन कर मैं पहले ही चुका था , लेकिन पत्रकारिता की दुनिया में रहते हुए मैंने यह सीखा है कि जब तक मतदान चल रहे हों , उनके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए। उन बुद्धिजीवियों और निष्पक्ष पत्रकारों की बात छोड़ दीजिए जिन्हें लोकतंत्र केवल तभी तक सुरक्षित दिखता है जब तक कि वह एक कुल विशेष की भारी तशरीफ के नीचे पिसता रहे। एक मित्र के पूछने पर मैंने एक हल्का सा संकेत दिया था तो वह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक एजेंसी में कभी मैनेजर रहे और अब अपने को पत्रकार बताने वाले एक सज्जन को बहुत नागवार गुजर गई। उन्होंने मोदी का दलाल घोषित कर दिया। जब मैंने उनकी बात का तार्किक जवाब दिया तो बेचारे मुझे ब्लॉक करके खिसक लिए। खैर , आइए अब चुनाव और इसके संभावित परिणाम पर बात करते हैं। चुनाव भारत के हो रहे हैं , मोदी , या राहुल , या किसी और के नहीं। मोदी या राहुल संभावित प्रधानमंत्री हो सकते हैं , लेकिन इस चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं , एक एमपी की हैसियत के लिए लड़ रहे हैं। इसी हैसियत के लि
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रामेश्वरम में
हरिशंकर राढ़ी दोपहर बाद का समय हमने घूमने के लिए सुरक्षित रखा था और समयानुसार ऑटोरिक्शा से भ्रमण शुरू भी कर दिया। पिछले वृत्तांत में गंधमादन तक का वर्णन मैंने कर भी दिया था। गंधमादन के बाद रामेश्वरम द्वीप पर जो कुछ खास दर्शनीय है उसमें लक्ष्मण तीर्थ और सीताकुंड प्रमुख हैं। सौन्दर्य या भव्यता की दृष्टि से इसमें कुछ खास नहीं है। इनका पौराणिक महत्त्व अवश्य है । कहा जाता है कि रावण का वध करने के पश्चात् जब श्रीराम अयोध्या वापस लौट रहे थे तो उन्होंने सीता जी को रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए, सेतु को दिखाने के लिए और अपने आराध्य भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए पुष्पक विमान को इस द्वीप पर उतारा था और भगवान शिव की पूजा की थी। यहाँ पर श्रीराम,सीताजी और लक्ष्मणजी ने पूजा के लिए विशेष कुंड बनाए और उसके जल से अभिषेक किया । इन्हीं कुंडों का नाम रामतीर्थ, सीताकुंड और लक्ष्मण तीर्थ है । हाँ, यहाँ सफाई और व्यवस्था नहीं मिलती और यह देखकर दुख अवश्य होता है। स्थानीय दर्शनों में हनुमान मंदिर में (जो कि बहुत प्रसिद्ध और विशाल नहीं है) तैरते पत्थरों के दर्शन करना
Bhairo Baba :Azamgarh ke
स्थानीय आस्था के केंद्र : आजमगढ़ के भैरव बाबा -हरिशंकर राढ़ी आस्था तो बस आस्था ही होती है, न उसके पीछे कोई तर्क और न सिद्धांत। भारत जैसे धर्म और आस्था प्रधान देश में आस्था के प्रतीक कदम-दर कदम बिखरे मिल जाते हैं। यह आवश्यक भी है। जब आदमी आदमी और प्रकृति के प्रकोपों से आहत होकर टूट रहा होता है, उसका विश्वास और साहस बिखर रहा होता है तो वह आस्था के इन्हीं केंद्रों से संजीवनी प्राप्त करता है और अपने बिगड़े समय को साध लेता है। भारत की विशाल जनसंख्या को यदि कहीं से संबल मिलता है तो आस्था के इन केंद्रों से ही मिलता है। तर्कशास्त्र कितना भी सही हो, इतने व्यापक स्तर पर वह किसी का सहारा नहीं बन सकता ! भैरव बाबा मंदिर का शिखर : छाया - हरिशंकर राढ़ी ऐसे ही आस्था का एक केंद्र उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में महराजगंज बाजार स्थित भैरव बाबा का विशाल एवं अति प्राचीन मंदिर है। प्रशासनिक स्तर पर महराजगंज ब्लॉक भले ही विख्यात हो, भैरव जी की महत्ता और लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली है। श्रद्धा और आस्था की दृष्टि से महराजगंज भैरव
इति सिद्धम
इष्ट देव सांकृत्यायन विषयों में एक विषय है गणित. इस विषय के भीतर भी एक विषय है रेखागणित. ऐसे तो इस विषय के भीतर कई और विषय हैं. अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति, लॉगरिथ्म, संख्यिकी, कलन आदि-आदि, मने विषयों की भरमार है यह अकेला विषय. इस गणित में कई तो ऐसे गणित हैं जो अपने को गणित कहते ही नहीं. धीरे से कब वे विज्ञान बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता. हालाँकि ऊपरी तौर पर विषय ये एक ही बने रहते हैं; वही गणित. हद्द ये कि तरीक़ा भी सब वही जोड़-घटाना-गुणा-भाग वाला. अरे भाई, जब आख़िरकार सब तरफ़ से घूम-फिर कर हर हाल में तुम्हें वही करना था, यानि जोड़-घटाना-गुणा-भाग ही तो फिर बेमतलब यह विद्वता बघारने की क्या ज़रूरत थी! वही रहने दिया होता. हमारे ऋषि-मुनियों ने बार-बार विषय वासना से बचने का उपदेश क्यों दिया, इसका अनुभव मुझे गणित नाम के विषय से सघन परिचय के बाद ही हुआ. जहाँ तक मुझे याद आता है, रेखागणित जी से मेरा पाला पड़ा पाँचवीं कक्षा में. हालाँकि जब पहली-पहली बार इनसे परिचय हुआ तो बिंदु जी से लेकर रेखा जी तक ऐसी सीधी-सादी लगीं कि अगर हमारे ज़माने में टीवी जी और उनके ज़रिये सूचनाक्रांति जी का प्रादुर्भाव
Maihar Yatra
मैहर और चित्रकूट -हरिशंकर राढ़ी यह जिज्ञासा मेरे मन में बहुत दिनों से थी कि न जाने उस चित्रकूट की धरती पर क्या रहा होगा कि अत्रि मुनि और उनकी लोकविख्यात पत्नी सती अनुसुइया ने सदियों तक निवास किया, वनवास के चौदह वर्षों में से बारह वर्ष श्रीराम ने यहीं बिताए; न जाने किस सत्य और शांति की तलाश में गोस्वामी तुलसी दास ने रामघाट पर बसेरा डाला और अकबर के नौरत्नों में प्रमुख कविवर रहीम ने भी शरण लेने के लिए चित्रकूट को ही चुना। तीर्थराज प्रयाग से दक्षिण पश्चिम लगभग सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित चित्रकूट राम के काल में कोई तीर्थ नहीं हुआ करता था। हाँ, यहाँ की सुंदर उपत्यकाओं में ऋषियों - मुनियों एवं साधकों ने सिद्धियाँ जरूर प्राप्त की थीं, किंतु वे किसी लौकिक लाभ में संलग्न नहीं थे। निष्चित रूप से मंदाकिनी के इर्द-गिर्द घने और आकर्षक जंगल रहे होंगे क्योंकि अंधाधुंध कटान के बावजूद उसके आस-पास के जंगल मन को आज भी मोहते हैं। मंदाकिनी अपने नाम के अनुरूप मंथर गति से बहती अलौकिक तृप्ति देती रही होगी। चित्रकूट शहर के तमाम गंदे नालों का जहर पीती हुई यदि वह आज भी सुंदर दिखती है तो राम
Azamgarh : History, Culture and People
आजमगढ़ : इतिहास और संस्कृति - हरिशंकर राढ़ी आजमगढ़ रेलवे स्टेशन फोटो : हरिशंकर राढ़ी रामायणकालीन महामुनि अत्रि और सतीत्व की प्रतीक उनकी पत्नी अनुसूया के तीनों पुत्रों महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय और महर्षि चन्द्र की कर्मभूमि का गौरव प्राप्त करने वाला क्षेत्र आजमगढ़ आज अपनी सांस्कृतिक विरासत और आधुनिकता के बीच संघर्ष करता दिख रहा है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि के तप से पावन तमसा के प्रवाह से पवित्र आजमगढ़ न जाने कितने पौराणिक, मिथकीय, प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक तथ्यों और सौन्दर्य को छिपाए अपने अतीत का अवलोकन करता प्रतीत हो रहा है। आजमगढ़ को अपनी आज की स्थिति पर गहरा क्षोभ और दुख जरूर हो रहा होगा कि जिस गरिमा और सौष्ठव से उसकी पहचान थी, वह अतीत में कहीं खो गयी है और चंद धार्मिक उन्मादी और बर्बर उसकी पहचान बनते जा रहे हैं। आजमगढ़ ने तो कभी सोचा भी न होगा कि उसे महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय, वाल्मीकि, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, शिक्षाविद अल्लामा शिबली नोमानी, कैफी आजमी और श्यामनारायण पांडेय के बजाय बटला हाउस, आतंकवाद, जातिवादी राज
पेड न्यूज क्या है?
प्रकाश अस्थाना जब भी आम चुनाव निकट होते हैं , तो चुनाव आयोग और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से एक निर्देश जारी होता है कि मीडिया में पेड न्यूज नहीं चलाई जाएं अन्यथा समुचित कार्रवाई होगी। आम पाठक भले ही इसे अधिक गहराई से न समझ सके , लेकिन मीडिया से जुड़े लोग इस बात को समझते हैं। होना यह चाहिए कि पाठकों या चैनल दर्शकों तक पेड न्यूज की बारीकियों को कोई ठीक तरीके से पहुंचाए या उन्हें समझाए...मीडिया खुद ऐसा करेगा नहीं , क्योंकि यह अपने पांव में कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा !! तो फिर कौन करेगा ? ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय को ही कमर कसनी होगी , वह भी पूरी ईमानदारी के साथ..। साभार: https://www.indianfolk.com/menace-paid-news-edited-2/ पेड न्यूज... चुनावों के दौरान किसी पार्टी विशेष या चुनाव में खड़े उम्मीदवार का महिमामंडन करने जैसी खबरें पैसे लेकर दिखाने अथवा छापने को अभी तक पेड न्यूज समझा जाता है.. लेकिन अब इसका रूप भी बदल चुका है और समय सीमा की कोई LOC भी निर्धारित नहीं है। यानि , बारहों महीने..। .. जी हां , है कड़वा लेकिन सच तो यही है। अब खबरों के बदले पैसा बनाने का खेल चुनावी मौसम तक ह
...ये भी कोई तरीका है!
इष्टदेव सांकृत्यायन ऐसा लग रहा है जैसे अभी कल की ही तो बात है और आज एकदम से सन्न कर देने वाली यह सूचना मिली - मनोज जी ( प्रो. मनोज कुमार सिंह ) नहीं रहे। दस पंद्रह दिन पहले उनसे बात हुई थी। तब वह बिलकुल स्वस्थ और सामान्य लग रहे थे। हमारी बातचीत कभी भी एक घंटे से कम की नहीं होती थी। फोन पर बात करते हुए पता ही नहीं चलता था कि बात कितनी लंबी खिंच गई। अभी जब 21 को बात हुई तब पेंटिंग के अलावा कुछ कविताओं पर बात हुई। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि देश-विदेश में चित्रकला , और उसमें भी खासकर भित्तिचित्र ( murals) विधा के लिए जाने जाने वाले डॉ. मनोज कविताएं भी लिखते थे। अभी वे एक ऐसा संग्रह लाना चाहते थे जिसमें कविताओं के साथ चित्र हों। लेकिन अब कौन लाएगा। यह तो केवल वही कर सकते थे। वे ऐसा ही मेरा भी एक संग्रह देखना चाहते थे। मेरे एक संग्रह के लिए उन्होंने कवर का चित्र बनाया भी। लेकिन न तो वह संग्रह आ पाया और न चित्र। नहीं , उसमें हमारी ओर से कोई ढिलाई नहीं थी। दोनों भाइयों ने अपना-अपना काम बड़ी शिद्दत से किया था लेकिन प्रकाशक तो प्रकाशक ही होता है। हिंदी में जिसने प्रकाशक को जान लिया , वह ब्
विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल
हरिशंकर राढ़ी ( विदेशी विद्वानों का संस्कृत प्रेम ’ - जगदीश प्रसाद बरनवाल ‘ कुंद ’) विश्व की प्राचीनतम एवं सर्वाधिक व्यवस्थित भाषा का पद पाने की अधिकारी संस्कृत आज अपनी ही जन्मभूमि पर भयंकर उपेक्षा का शिकार है। उपेक्षा ही नहीं , कहा जाए तो यह कुछ स्वच्छंदताचारियों या अराजकतावादियों की बौद्धिक हिंसा का भी शिकार है। भले ही व्याकरण के कड़े नियमों में बँधी हुई संस्कृत दुरूह है , किंतु इसके साहित्य और लालित्य को समझ लिया जाए तो शायद ही विश्व की किसी सभ्यता का साहित्य इसके बराबर दिखेगा। इसे अतीत के एक खासवर्ग की भाषा मानकर जिस तरह गरियाया जा रहा है , वह एक विकृत राजनीतिक मानसिकता का परिचायक है।यह हमारे यहाँ ही संभव है अपनी प्राचीन भाषाओं को जाति , क्षेत्र और वर्ग के राजनीतिक चश्मे से देखा जाए। यदि संस्कृत भाषा और साहित्य इतना ही अनुपयोगी और दुरूह होती तो यूरोप सहित अन्य महाद्वीपों के असंख्य विद्वान इसके लिए अपना जीवन होम नहीं कर देते। हाँ , यह विडंबना ही है कि हमें अपनी विरासत का महत्त्व विदेशियों से अनुमोदित करवाना पड़ता है। संस्कृत भाषा और साहित्य से विदेशी विद्वानों को कितना लगाव रहा ह
'घमंड तो रावण का भी नहीं रहा तो हम आप क्या चीज हैं' SP Leader' Letter to...
सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का
(आलोक नंदन) एक फिल्म स्क्रीप्ट डिस्पले कर रहा हूं…फिल्म का नाम है राब्स, इसके साथ नीचे में इनवर्टेड कौमा में लिखा हुआ है, अपराध जगत में एक प्रयोगवादी जज...अब खुद देख लिजीये यह जज कितना प्रयोगवादी है....यह जैसा है वैसे ही रखने जा रहा हूं....एक एक सीन रखता जाऊंगा... वर्तमान सीन से आगे बढ़ कर सीन बताने वालो का स्वागत है, वैसे इसको पढ़ने का मजा तो हर कोई उठा ही सकता है। स्क्रीप्ट लेखन टेक्निक के लिहाज से यह मुझे कुछ उम्दा लगा और स्क्रीप्ट लेखन में कैरियर बनाने की इच्छा रखने वालों के लिए यह निसंदेह सहायक हो सकता है। स्क्रीप्ट लेखन से संबंधित किसी भी स्तर के कोई भी प्रश्न आप यहां दाग सकते हैं....आपके सवालों और सुझावों का स्वागत है। Robes “ An experimental judge in a crime world.” Laugh with unbroken breaking news Comedy of cruelty “ Wanted for his own murder charge” तो शुरु हो रहा है राब्स...बिना टिकट के ही इसका मजा लिजीये....। (इसे एक फिल्म का विशुद्ध रूप से प्रचार स्टाइल माना जाये, (फिल्मों के प्रचार स्टाईल का अपना एक तरीका है, ) हालांकि कि यह फिल्म बनी ही नहीं है, और