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शनि राहु युति के परिणाम

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इष्ट देव सांकृत्यायन   श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः   आज 29 मार्च से शनि भी वहीं आ जाएंगे जहाँ राहु , बुध , शुक्र , सूर्य , चंद्र और नेप्चून पहले से बैठे हैं। शनि तो आज 29 मार्च की रात 10.07 बजे मीन राशि में आएंगे , इसके पहले ही आज ही शाम 4 बजकर 47 मिनट पर चंद्रमा भी वहीं पहुँच गए हैं। इस तरह देखें तो षड्ग्रही नहीं सप्तग्रही योग बन रहा है। षड्ग्रही योग कोई ऐसी घटना नहीं है जो दस-बीस सहस्राब्दियों में एक बार बनती हो। यह हर दो-तीन दशक में एक बार बन जाती है। निश्चित रूप से इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं , लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे कोई महाप्रलय हो जाए , जैसा कि आजकल ज्योतिष के नाम पर कुछ लोग बता रहे हैं। इस पर विस्तृत चर्चा फिर कभी। अभी मैं केवल उस युति की बात करने जा रहा हूँ जिसे लेकर मीडिया और सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने अजब-गजब बातें फैला दी हैं और ज्योतिष को थोड़ा-बहुत जानने और एक विद्या के रूप में इसमें आस्था रखने वाले लोग आशंकाओं के शिकार हो गए हैं।   खासकर आज ही से शुरू होने जा रही अन्य ग्रहों के साथ राहु-शनि की युति को लेकर कुछ लोग बड़ी भयावह बातें कर रहे...
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व्यंग्य संग्रह  ‘ अंधे पीसें... ’ Andhe Pisen... : अंधे पीसें... मुखपृष्ठ  मेरे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि मेरा तीसरा व्यंग्य संग्रह ‘ अंधे पीसें... ’ सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित होकर आ चुका है। इसमें पिछले 2-3 वर्षों में लिखे व्यंग्यों का संग्रह है , जिसमें कुल 35 व्यंग्य सम्मिलित हैं। समाज , सत्ता एवं मानवीय विसंगतियों के इर्द-गिर्द घूमते ये व्यंग्य अपने लक्ष्य का संधान करते हुए बेहतर व्यवस्था और समाज की अप्रकट कामना रखते हैं , जो गुदगुदाने की अपेक्षा जगाने के लिए लिखे गए हैं। यह संग्रह 128 पृष्ठों का है ,  जिसके पेपर  बैक संस्कारण का मूल्य रु॰ 200/ है। सर्व भाषा ट्रस्ट के निदेशक श्री केशव मोहन पांडेय जी ने सूचित किया है कि यह पुस्तक अमेज़ॅन पर भी रु॰179/ में उपलब्ध है। विश्व पुस्तक मेले में नई पुस्तक का आगमन से प्रसन्नता तो होती है।  यह संग्रह विश्व पुस्तक मेला दिल्ली (1-9 फरवरी , 2025) में सर्व भाषा ट्रस्ट के स्टॉल (हॉल नंबर 2 &3, स्टॉल नंबर L- 18) पर उपलब्ध रहेगा। सर्व भाषा ट्रस्ट के निदेशक श्री केशव मोहन पांडेय जी को  धन्यवाद। अमेज़ॅ...

बंग्लादेश के टुकड़े होंगे

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इष्ट देव सांकृत्यायन    बंग्लादेश के भविष्य को लेकर पिछले दिनों कई मित्रों ने मुझसे प्रश्न किया था। खासकर वहाँ हिंदुओं की स्थिति को लेकर सभी को चिंता है। तरह-तरह की आशंकाएँ सबके मन में हैं। इस पर मैंने गणनाएँ शुरू कीं। कुछ हद तक कर भी लिया। तब तक एक लेख पढ़कर कुछ भ्रम की स्थिति बन गई। मैंने सोचा कि यह संशय मिटा लेना ही ठीक रहेगा। इसके पहले कि वह संशय मिटता एक और संशय आ गया। ये दोनों संशय बंग्लादेश के समय को लेकर थे। एक ने समय 16 दिसंबर 1971 को 00.00 बजे बताया था और दूसरे ने शाम को साढ़े चार बजे। जब मैंने अतीत की घटनाओं से जोड़कर देखा और इधर हाल की घटनाओं की तह तक भी गया तो जो समय सही लगा वह 16 दिसंबर 1971 को दिन के 11 बजे का है। स्थान स्वाभाविक रूप से ढाका माना जाएगा। बंग्लादेश की लग्न कुंडली इस हिसाब से बांग्लादेश की कुंडली कुंभ लग्न की बनती है। सन 1971 से लेकर अब तक समष्टिगत परिप्रेक्ष्य में जो घटनाएँ बंग्लादेश में घटी हैं और अभी भी जो हो रहा है , उस सब पर इस कुंभ लग्न और उससे बनने वाली ग्रहस्थितियों का पूरा प्रभाव है। फिलहाल पूरा इतिहास उलीचने का यहाँ कोई औचित्य नहीं है। ...
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कुल्हड़ की चाय   राष्ट्रीय पुस्तक न्यास  ( National   Book   Trust -  NBT)  से  ललित निबंध संग्रह  प्रकाशित  कुल्हड़ की चाय (ललित निबंध ) का मुखपृष्ठ Kulhad ki Chai by Harishanker Rarhi  राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ,  भारत से मेरे (हरिशंकर राढ़ी) पहले  ललित निबंध संग्रह   ‘ कुल्हड़ की चाय ’   की लेखकीय प्रतियाँ मिलीं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित होना मेरे लिए प्रसन्नता एवं उपलब्धि का विषय है। ललित निबंध लेखन में मैं बहुत देर से आया ,  किंतु मंथर गति से चलने के बावजूद पहला निबंध संग्रह एक प्रतिष्ठित संस्थान से आना सुखद है। ललित निबंध के वरिष्ठ एवं प्रतिमान हस्ताक्षर श्री श्याम सुंदर दुबे जी से इस प्रसंग पर बात हो रही थी तो उन्होंने कहा कि ललित निबंध ऐसी विधा है जो परिपक्व आयु में ही ठीक से लिखी जा सकती है। बड़े लोग कितनी सारगर्भित बातें बोलते हैं! वैसे भी इस विधा में हजारी प्रसाद द्विवेदी ,  विवेकी राय और श्याम सुंदर    दुबे का कोई शानी नहीं है विलुप्त होती इस साहित्यिक विधा में बहुत रस है। ललित निबंध ...

युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं का समय

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इष्ट देव सांकृत्यायन ॥श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नम:॥  ग्रहचाल की दृष्टि से कल का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है। कल से तीन ग्रह एक साथ वक्री होंगे। ये ग्रह हैं - मंगल , बुध और गुरु। राहु-केतु चूँकि हमेशा ही वक्री रहते हैं , इसलिए मेदिनीय गणनाओं के लिए वक्री ग्रहों की श्रेणी में इन्हें नहीं जोड़ा जाएगा। वक्री ग्रहों का ऐसा योग तीन दिन पहले ही अपना फल देना शुरू कर देता है और यह स्थिति बदलने के बाद भी तीन दिन आगे तक इसका प्रभाव बना रहता है। इस तरह 4 दिसंबर से लेकर 18 दिसंबर तक का समय अत्यंत संवेदनशील है। यह स्थिति पूरी दुनिया के लिए है। तीन ग्रहों का एक साथ वक्री होना पारिवारिक-सामाजिक सौहार्द बिगड़ने , युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं का संकेत देता है। कुछ पहाड़ी और समुद्रतटीय क्षेत्रों में सुनामी जैसे अत्यंत विनाशकारी भूकंप आ सकते हैं। बात ग्रहों की करें तो गुरु और बुध पहले से ही वक्री हैं। कल मंगल भी वक्री हो जाएंगे। शुभता के कारक गुरु 9 अक्टूबर को ही वक्री हो चुके हैं और अभी 28 नवंबर से रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण में चल रहे हैं। गुरु 4 फरवरी 2025 तक वक्री ही रहेंगे। बुध 11 नवंबर को ज्येष्ठा नक्ष...

तीसरे विश्वयुद्ध की आहट

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इष्ट देव सांकृत्यायन  श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः    इसी साल अगस्त में जब मोदी यूक्रेन गए थे , बहुत लोग उम्मीद कर रहे थे कि अब रूस-यूक्रेन के बीच का झगड़ा निपट जाएगा। मैंने तब भी कहा था , निपटेगा नहीं और बढ़ जाएगा। हुआ भी यही। जैसे ही मोदी यूक्रेन से भारत वापस चले , यूक्रेन ने ही रूस पर हमला कर दिया। मोदी दिल्ली बाद में पहुँचे , हमला वह पहले ही कर चुका था। वही यूक्रेन जो सौ बार मोदी से रूस के साथ मध्यस्थता कर शांति बहाली की चिरौरी कर चुका था। यही बात तब फिर हुई जब अमेरिका में ट्रंप जीत गए। हालाँकि ट्रंप के लिए रास्ता आसान नहीं है , यह संकेत मैं पहले ही दे चुका हूँ। इस पर फिर कभी विस्तार से लिखूंगा। अभी बात यूक्रेन पर केंद्रित करते हैं। ट्रंप ने जीत की सूचना मिलते ही तुरंत यह कहा भी था कि मैं सारे युद्ध खत्म करवा दूंगा। खबरें आईं कि रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए क्या-क्या करेंगे ट्रंप। ऐसा लगने लगा जैसे सचमुच खत्म ही हो जाएगा युद्ध। मैं भी यही चाहता हूँ कि न हो युद्ध। बातचीत से कोई हल निकल आए। इसलिए मैंने दो-तीन बार गणनाएँ कीं , विश्लेषण किया। लेकिन निष्कर्ष नहीं बदले...
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  यात्रा संस्मरण केदारनाथ यात्रा का कष्टप्रद आनंद -हरिशंकर राढ़ी Hari Shanker Rarhi  at Kedarnath Temple बहुप्रतीक्षित, प्रतिष्ठित और रोमांचित करने वाली केदारनाथ धाम की यात्रा करके कल लौट आया। पहले केदारनाथ की, फिर बद्रीनाथ की। धार्मिक दृष्टि से देखूँ तो इस यात्रा के साथ मेरी चार धाम (द्वारका पुरी, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम् और बद्रीनाथ धाम) तथा द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा संपन्न हो गई। हालाँकि, ये यात्राएँ मेरे लिए धार्मिक-आध्यात्मिक कम, भारत भ्रमण या पर्यटन अधिक थीं। केवल धार्मिक आस्था की बात होती तो संभवतः मैं नहीं जाता। हाँ, इसमें संदेह नहीं कि इस व्यवस्था के पीछे व्यवस्थाकारों ने बहुत सोचा होगा, तब जाकर ये स्थल तीर्थयात्रा के लिए निर्धारित किए गए होंगे। जहाँ चारो धाम देश के चार कोनों का, वहीं द्वादश ज्योतिर्लिंग देश के बाहरी से लेकर आंतरिक हिस्सों तक का पूरा भ्रमण करा देते हैं। आज पर्यटन की दृष्टि से यात्राएँ विस्तार पा रही हैं, किंतु इसमें संदेह नहीं कि धर्म के बहाने यात्रा करने वालों की संख्या आज भी बहुत बड़ी है। केदारनाथ और बद्रीनाथ की मेरी यात्रा बहुप्रतीक्षित थी, जो ...

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