यक्ष हूँ शापित
अपने मन की बात अहेतुक जाने किससे कहॉ कहूँगा मैं ! युग-युग से यूँ भटक रहा हूँ जाने कहां रहूँगा मैं! गिरि गह्वर सहज गिराम कस्बे और शहर में. ऋषि कणाद की कुटिया राजा भोज के घर में. ग्राम कूप में पोखर में कानन में वन में, लघु सरिता या महासागर में. महाकाल का मैं प्रतिनिधि हूँ मुझको काल पकड़ न पाता, किसको यहाँ गहूँगा मैं! महाशून्य में स्वयं प्रकृति का हुआ आसवन. आंखों से निकली गंगा बूँद-बूँद कर किया आचमन. वेदों की क्यारी में पल कर पौधे लहराए, सघन हुए बने नन्दन वन. उस नन्दन वन से उजड़ा इंद्र सभा का यक्ष हूँ शापित- जाने कहां गिरूंगा मैं! इष्ट देव सांकृत्यायन