बाबा ऊंचे
वह तो
ऐसे ही
कुछ कहता है.
कभी नहीं
सच
लिखता है.
उनके केवल
बाबा ऊंचे
बाबा आदम भी
बौने हैं.
रिश्तों की तो
बात निरर्थक
जंगल के
मृगछौने हैं.
विध्वंस सृजन
और
सृजन विनाश
उनको झूठा ही
सच
दिखता है.
उनका काल
पखेरू बेघर-
उड़ता ऊपर
सिर
नीचे कर.
नई व्यवस्था
वे देंगे
मंगल से फिर
जंगल आकर.
उनकी पूरी दुनिया हाट
ख़ून-पसीना
सब कुछ
बिकता है.
इष्ट देव सांकृत्यायन
ऐसे ही
कुछ कहता है.
कभी नहीं
सच
लिखता है.
उनके केवल
बाबा ऊंचे
बाबा आदम भी
बौने हैं.
रिश्तों की तो
बात निरर्थक
जंगल के
मृगछौने हैं.
विध्वंस सृजन
और
सृजन विनाश
उनको झूठा ही
सच
दिखता है.
उनका काल
पखेरू बेघर-
उड़ता ऊपर
सिर
नीचे कर.
नई व्यवस्था
वे देंगे
मंगल से फिर
जंगल आकर.
उनकी पूरी दुनिया हाट
ख़ून-पसीना
सब कुछ
बिकता है.
इष्ट देव सांकृत्यायन
Comments
Post a Comment
सुस्वागतम!!