इन आंखो में
पूरब से
आती है
या
आती है
पश्चिम से -
एक किरण
सूरज की
दिखती है
इन आंखों में.
मैं संकल्पित
जाह्नवी से
कन्धों पर है
कांवर.
आना चाहो
तो
आ जाना
तुम स्वयं
विवर्त से बाहर.
तुमको ढूढूं
मंजरिओं में
तो
पाऊँ शाखों में.
इन आंखों में.
सपने जैसा
शील तुम्हारा
और खयालों सा
रुप.
पानी जीने वाली
मछली ही
पी पाती है
धूप.
तुम तो
बस तुम ही हो
किंचित उपमेय नहीं-
कैसे गिन लूं
तुमको
मैं
लाखों में.
इन आंखों में।
इष्ट देव सांकृत्यायन
आती है
या
आती है
पश्चिम से -
एक किरण
सूरज की
दिखती है
इन आंखों में.
मैं संकल्पित
जाह्नवी से
कन्धों पर है
कांवर.
आना चाहो
तो
आ जाना
तुम स्वयं
विवर्त से बाहर.
तुमको ढूढूं
मंजरिओं में
तो
पाऊँ शाखों में.
इन आंखों में.
सपने जैसा
शील तुम्हारा
और खयालों सा
रुप.
पानी जीने वाली
मछली ही
पी पाती है
धूप.
तुम तो
बस तुम ही हो
किंचित उपमेय नहीं-
कैसे गिन लूं
तुमको
मैं
लाखों में.
इन आंखों में।
इष्ट देव सांकृत्यायन
अच्छी कविता है। बाकी कविताएँ भी पढ़ीं। शिल्प और संवेदना का अच्छा तालमेल है। आप बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteसत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव