इष्ट देव सांकृत्यायन विषयों में एक विषय है गणित. इस विषय के भीतर भी एक विषय है रेखागणित. ऐसे तो इस विषय के भीतर कई और विषय हैं. अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति, लॉगरिथ्म, संख्यिकी, कलन आदि-आदि, मने विषयों की भरमार है यह अकेला विषय. इस गणित में कई तो ऐसे गणित हैं जो अपने को गणित कहते ही नहीं. धीरे से कब वे विज्ञान बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता. हालाँकि ऊपरी तौर पर विषय ये एक ही बने रहते हैं; वही गणित. हद्द ये कि तरीक़ा भी सब वही जोड़-घटाना-गुणा-भाग वाला. अरे भाई, जब आख़िरकार सब तरफ़ से घूम-फिर कर हर हाल में तुम्हें वही करना था, यानि जोड़-घटाना-गुणा-भाग ही तो फिर बेमतलब यह विद्वता बघारने की क्या ज़रूरत थी! वही रहने दिया होता. हमारे ऋषि-मुनियों ने बार-बार विषय वासना से बचने का उपदेश क्यों दिया, इसका अनुभव मुझे गणित नाम के विषय से सघन परिचय के बाद ही हुआ. जहाँ तक मुझे याद आता है, रेखागणित जी से मेरा पाला पड़ा पाँचवीं कक्षा में. हालाँकि जब पहली-पहली बार इनसे परिचय हुआ तो बिंदु जी से लेकर रेखा जी तक ऐसी सीधी-सादी लगीं कि अगर हमारे ज़माने में टीवी जी और उनके ज़रिये सूचनाक्रांति जी का प्रादुर्भाव ...
दरअसल इस देश के लोकतंत्र में व्यवस्था ऐसी बन गई है कि सरकार का मुख्य काम कॉरपोरेट सेक्टर का हित देखना बन गया है, लेकिन कुछ इस तरह से कि आम लोगों को लगे कि सरकार उनके भले के लिए काम कर रही है। जो सरकारें ये संतुलन बना लेती हैं उन्हें सफल सरकार कहा जाता है। इस मामले में यूपीए सरकार संतुलन खो रही है। कॉरपोरेट सेक्टर तो खुश है कि सरकार उसके मन की हर मुराद पूरी कर रही है। लेकिन आम लोगों में छले जाने का एहसास बढ़ रहा है। ये असंतुलन देश भर में अलग अलग शक्लों में असंतोष का कारण बन रहा है। ईष्टदेव जी ने अच्छा विषय छेड़ा है। इसपर और काम होना चाहिए। और भरपूर मात्रा में लिखा जाना चाहिए। आखिर ये देश हम सबका है और इस पर राज करने के लिए जब हम कोई सरकार चुनते हैं तो उसके सामने ये मजबूरी होनी चाहिए कि वो अधिकतम लोगों के अधिकतम हित का ध्यान रखे। -दिलीप मंडल
ReplyDeleteबढ़िया विषय पर अच्छा लेख है।
ReplyDeleteबहुत खुब। कवितायों में भाव और भंगिमा दोनो हैं।
ReplyDeleteकीट्स ने कह था कि Poetry should come like a leaf falling from a tree. Or not come at all.