.... भात पसाइये

भाई चंद्रभूषण जी और अफलातून जी ने इमरजेंसी वाले पोस्ट पर ध्यान दिलाया है कि 'पढिये गीता' वाली कविता रघुवीर सहाय की है. दरअसल लिखने के फ्लो में मुझसे भूल हो गयी. असल में उस समय मैं बाबा की 'इंदु जी-इंदु जी क्या हुआ' कविता भी याद कर रहा था और उसी फ्लो में 'पढिये गीता' के साथ नागार्जुन का नाम जुड़ गया. हालांकि कविता मुझे पूरी याद नहीं थी पर अब मैंने इसे तलाश लिया है और पूरी कविता पोस्ट भी कर रहा हूँ. तो आप भी अब पूरी पढिये रघुवीर सहाय की यह कालजयी रचना :
पढिये गीता
बनिए सीता
फिर इन सबमें लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घरबार बसाइये.

होंय कंटीली
आँखें गीली
लकडी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइये.

('इमरजेंसी चालू आहे' के संदर्भ में मैं फिर जोड़ दूं : अपने या देश की जनता के लिए नहीं, आलाकमान के कुटुंब के लिए. वैसे भी कांग्रेसी इंदिरा इज इंडिया का नारा तो लगा ही चुके हैं. )
और हाँ, गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए भाई चंद्रभूषण और अफलातून जी धन्यवाद स्वीकारें. और समसामयिक संदर्भों के हिसाब से शीर्षक बदल रहा हूँ, इसके लिए क्षमा भी चाहता हूँ. यह बदला हुआ शीर्षक पोस्ट का है, कविता का नहीं.

इष्ट देव सांकृत्यायन

Comments

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का