अशआर
कुदरत को नामंज़ूर थी सख्ती ज़बान में.
इसीलिये हड्डी न अता की ज़बान में.
-अज्ञात
चमक शीशे के टुकड़े भी चुरा लाते हैं हीरे की ,
मुहब्बत की नज़र जल्दी में पहचानी नहीं जाती.
जिधर वो मुस्कराकर के निगाहें फेर लेते हैं -
क़यामत तक फिर उस दिल की परेशानी नहीं जाती.
-अज्ञात
यूं ज़िन्दगी में मेरे कोई कमी नहीं-
फिर भी ये शामें कुछ माँग रही हैं तुमसे.
-फिराक गोरखपुरी
ये जल्वागहे खास है कुछ आम नहीं है.
कमजोर निगाहों का यहाँ काम नहीं है.
तुम सामने खुद आए ये इनायत है तुम्हारी,
अब मेरी नज़र पर कोई इलज़ाम नहीं है.
इसीलिये हड्डी न अता की ज़बान में.
-अज्ञात
चमक शीशे के टुकड़े भी चुरा लाते हैं हीरे की ,
मुहब्बत की नज़र जल्दी में पहचानी नहीं जाती.
जिधर वो मुस्कराकर के निगाहें फेर लेते हैं -
क़यामत तक फिर उस दिल की परेशानी नहीं जाती.
-अज्ञात
यूं ज़िन्दगी में मेरे कोई कमी नहीं-
फिर भी ये शामें कुछ माँग रही हैं तुमसे.
-फिराक गोरखपुरी
ये जल्वागहे खास है कुछ आम नहीं है.
कमजोर निगाहों का यहाँ काम नहीं है.
तुम सामने खुद आए ये इनायत है तुम्हारी,
अब मेरी नज़र पर कोई इलज़ाम नहीं है.
-अज्ञात
बारिश हुई तो फूलों के दिल चाक़ हो गए.
मौसम के हाथों भीग कर शफ्फाक हो गए.
बस्ती के जो भे आबगज़ीदा थे सब के सब-
दरिया ने रुख़ बदला तो तैराक हो गए.
- परवीन शाकिर
एक शानदार प्रस्तुति…!!बधाई!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा संकलन और उसकी प्रस्तुति. आभार.
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