मीडिया का संकट
पत्रकारिता पर इधर ख़ूब लिखा जा रहा है. अविनाश भाई की सदारत वाला मोहल्ला इन दिनों मीडिया को ही लेकर हल्ले का केंद्र बन गया है. इस हल्ले की शुरुआत वैसे तो काफी पहले हो चुकी थी, पर इसे गति दीं दिलीप मंडल के एक पोस्ट ने. दिलीप ने इसमें मीडिया के अतीत का कच्चा चिटठा खोलते हुए कहना चाहा है कि आज दिखाई दे रही यह मूल्यहीनता कोई नई बात नहीं है और इसलिए युवा पत्रकारों को किसी हीनताग्रंथि का शिकार होने की जरूरत नहीं है. दूसरी बात यह कि मीडिया के इस पतितपने के पीछे कुछ मजबूरियां हैं उन्हें भी समझा जाना चाहिए. तीसरी बात यह कि मीडिया अगर इधर बिगडा है तो वह कई मायनों में बहुत कुछ सुधरा भी है और वह सुधर भी देखा जाना चाहिए. बस. मेरी समझ से उनका मंतव्य यहीं तक था. इसके बाद मोहल्ले में बहुत लोगों ने बहुत कुछ प्रतिक्रियाएँ कीं. मामला मोहल्ले से कस्बे तक पहुंच गया. आखिरकार टाउन एरिया चेयरमैन रवीश भाई को बोलना पड़ा. उनहोंने नए दौर को हिंदी पत्रकारिता का प्रश्न काल कहा और बताया कि मीडिया आज अपनी आलोचना के संदर्भ में जितनी अंतर्मुखी है उतनी कभी नहीं थी. यह बात सौ फीसदी सच है. एक ऐसे दौर में जबकि इस लोकतंत्र ...