देख लो अब भैया
सच की खिंचती खाल देख लो अब भैया.
झूठ है मालामाल देख लो अब भैया..
आगजनी ही जिसने सीखा जीवन में ,
उनके हाथ मशाल देख लो अब भैया..
चोरी लूट तश्करी जिनका पेशा है,
वही हैं द्वारपाल देख लो अब भैया..
माली ही जब रात में पेड़ों पर मिलता है ,
किसे करें रखवाल देख लो अब भैया..
बंदूकों से छीन के ही जब खाना हो-
भांजे कौन कुदाल देख लो अब भैया..
-विनय ओझा स्नेहिल
झूठ है मालामाल देख लो अब भैया..
आगजनी ही जिसने सीखा जीवन में ,
उनके हाथ मशाल देख लो अब भैया..
चोरी लूट तश्करी जिनका पेशा है,
वही हैं द्वारपाल देख लो अब भैया..
माली ही जब रात में पेड़ों पर मिलता है ,
किसे करें रखवाल देख लो अब भैया..
बंदूकों से छीन के ही जब खाना हो-
भांजे कौन कुदाल देख लो अब भैया..
-विनय ओझा स्नेहिल
व्यवस्था पर इससे गहरा कटाक्ष और क्या हो सकता है...आपने तो धज्जियाँ उड़ा डाली. बहुत बेहतरीन. साधुवाद स्विकारें इस रचना के लिये.
ReplyDeletekhud ko sametnaa bhee achha nahin hota-itna uthao khudko ki asmaan rashk kare.vinay ojha snehil.
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