नेता के सिर बारिश जूतों की
अभी हाल की बात है. एक नेताजी पीट दिए गए. पिटे वह जम्मू-कश्मीर में. वाह क्या नजारे हैं! कहा जाता है कि धरती पर स्वर्ग अगर कहीँ है तो वहीं है. तो जनाब कल्पना करिये. इन खूबसूरत वादियों में पिटने का मजा भी अहा क्या मजा है!
आइए अब अपको साफ-साफ बताते हैं. वह नेताजी थे बिलावर इलाके के सांसद लाल सिंह और जगह थी बिलावर. दिन मंगलवार था, यानी ३१ जुलाई २००७ को। बिजली कटौती से आजिज पब्लिक ने बिलावर बंद कर रखा था. संजोग से उसी बीच नेताजी पहुंच गए. प्रदर्शनकारियों ने उन्हें घेर लिया. अब यह कोई चुनाव का समय तो था नहीं कि नेताजी किसी की बात सुनते. चुनाव हो तो बात और होती है. तब तो नेताजी सुनने-सुनाने के लिए जनता जनार्दन को ढूँढते फिरते हैं. पर बेमतलब यानी ग़ैर चुनावी दौर में बेचारी पब्लिक की कौन सुनता है. जरूरत ही क्या है कि उसे सुना जाए.
लिहाजा नेताजी ने नहीं सुनी. लेकिन पब्लिक भी कोई प्रवचन सुनने आई श्रद्धालु तो रह नहीं गई है अब. उसने घेर लिया और नेताजी को अपने दल-बल समेत जाना था गेस्ट हाउस. उन्होने पहले तो विनम्रतापूर्वक रास्ता मांगने की कोशिश की, लेकिन पब्लिक ने वह दिया नहीं. अब यह कोई चुनाव का समय तो था नहीं कि पब्लिक कुछ भी करे, उसे बर्दाश्त कर लिया जाए. लिहाजा नेताजी आ गए ताव में और देने लगे गलियां. पर पब्लिक भी कुछ कम तो है नहीं. वह भी आ गयी ताव में और बदले में बरसाने लगी जूते और चप्पल. नेताजी ने खैर जैसे-तैसे भाग कर जान बचाई. इसके बाद क्या हुआ, यह बात तो मुझे पता चल नहीं पाई. क्योंकि दैनिक जागरण के जम्मू एडीशन में मैंने यहीं तक की बात पढी. तो यह जानना अभी मेरे लिए भी बाक़ी है कि नेताजी ने किसी थाने में इस घटना की रपट-वपट दर्ज कराई या नहीं! जनता जनार्दन में से दो-चार लोगों को झूठे मुकदमे में फंसाया-वसाया या नहीं. खैर हो सकता है कि यह सब कैसे-कैसे और कब-कब करना है, यह बात उन्होने किसी थानेदार को समझा दी हो. वह बाद में धीरे-धीरे मौका देख कर बेचारी पब्लिक से कसर निकालता रहे. आख़िर उसे भी तो नौकरी करनी है। प्रमोशन-इन्क्रीमेंट चाहिए, अच्छी जगह पोस्टिंग चाहिए. वह सब नेताजी की कृपा के बग़ैर तो होगा नहीं! लिहाजा हो सकता है कि वह बाद में करता रहे.
बहरहाल और जो भी हो, पर एक बात तो तय है. वह है नेताजी का भविष्य, कम से कम अगले चुनाव के लिए. अगर बूथ कैप्चर या घालमेल न हुआ तो उनके भविष्य का आकलन हुआ ही समझिए. पर बात यहीं तक नहीं है. अव्वल तो बात यह है कि यह घटना तो सिर्फ संकेत है. संकेत है उन नेताओं के लिए जो अभी यह मानकर चल रहे हैं कि बेचारी पब्लिक जाएगी कहॉ! नाग नाथ नहीं तो सांप नाथ - इन्ही दोनों में से बदल-बदल कर उसे ले आना है बार-बार. बहुत गुस्साएगी तो यह करेगी कि हमारे उस भाई को राजगद्दी पर बैठेगी जिसे हम अभी गाली देते हैं. और जब समझौता यहाँ तक पहुंच ही गया कि राजनीति की दुनिया के बाघ और बकरी एक घाट पर पानी पीने लगे तो थोडा और आगे बढ कर हम नेता-नेता आपस के गिले-शिकवे भी मिटा लेंगे. फिर पांच-पांच साल बाद हम आराम से अदल-बदल कर आते-जाते रहेंगे. लेकिन नहीं जनाब!
पब्लिक यह कहना चाहती है कि इस खुशफहमी में आप मत रहिए. अभी तो बिजली जैसी छोटी सी बात पर लोग एकजुट हुए हैं, सिर्फ एक इलाके में. आगे महंगाई, बेकारी, कानून-व्यवस्था, गुंडागर्दी, जन सुविधाएं, भ्रष्टाचार ....... आदि-आदि बडे मुद्दों पर लोग जुटेंगे. पूरे देश के लोग. आपकी तुष्टीकरण और फूट डालो राज करो की नीति भी सबकी समझ में आ गई है. वे आपके बांटने से बाँटेंगे भी नहीं. फिर सोचिए, क्या होगा?
इब्तदा-ए-इश्क है रोता है क्या?
आगे-आगे देखिए होता है क्या?
और यह बात केवल लाल सिंह के लिए ही नहीं है. लाल सिंह, पीले लाल, काले चंद, हरा कुमार ......... जो भी कोई राजनीति की दुनिया है और बेचारी पब्लिक को बेवकूफ बनाने में लगा हुआ है, उन सभी महान आत्माओं के लिए है यह संकेत. तो कहिए आपकी समझ में कुछ आया नेताजी, या नहीं अभी?
इष्ट देव सांकृत्यायन
आइए अब अपको साफ-साफ बताते हैं. वह नेताजी थे बिलावर इलाके के सांसद लाल सिंह और जगह थी बिलावर. दिन मंगलवार था, यानी ३१ जुलाई २००७ को। बिजली कटौती से आजिज पब्लिक ने बिलावर बंद कर रखा था. संजोग से उसी बीच नेताजी पहुंच गए. प्रदर्शनकारियों ने उन्हें घेर लिया. अब यह कोई चुनाव का समय तो था नहीं कि नेताजी किसी की बात सुनते. चुनाव हो तो बात और होती है. तब तो नेताजी सुनने-सुनाने के लिए जनता जनार्दन को ढूँढते फिरते हैं. पर बेमतलब यानी ग़ैर चुनावी दौर में बेचारी पब्लिक की कौन सुनता है. जरूरत ही क्या है कि उसे सुना जाए.
लिहाजा नेताजी ने नहीं सुनी. लेकिन पब्लिक भी कोई प्रवचन सुनने आई श्रद्धालु तो रह नहीं गई है अब. उसने घेर लिया और नेताजी को अपने दल-बल समेत जाना था गेस्ट हाउस. उन्होने पहले तो विनम्रतापूर्वक रास्ता मांगने की कोशिश की, लेकिन पब्लिक ने वह दिया नहीं. अब यह कोई चुनाव का समय तो था नहीं कि पब्लिक कुछ भी करे, उसे बर्दाश्त कर लिया जाए. लिहाजा नेताजी आ गए ताव में और देने लगे गलियां. पर पब्लिक भी कुछ कम तो है नहीं. वह भी आ गयी ताव में और बदले में बरसाने लगी जूते और चप्पल. नेताजी ने खैर जैसे-तैसे भाग कर जान बचाई. इसके बाद क्या हुआ, यह बात तो मुझे पता चल नहीं पाई. क्योंकि दैनिक जागरण के जम्मू एडीशन में मैंने यहीं तक की बात पढी. तो यह जानना अभी मेरे लिए भी बाक़ी है कि नेताजी ने किसी थाने में इस घटना की रपट-वपट दर्ज कराई या नहीं! जनता जनार्दन में से दो-चार लोगों को झूठे मुकदमे में फंसाया-वसाया या नहीं. खैर हो सकता है कि यह सब कैसे-कैसे और कब-कब करना है, यह बात उन्होने किसी थानेदार को समझा दी हो. वह बाद में धीरे-धीरे मौका देख कर बेचारी पब्लिक से कसर निकालता रहे. आख़िर उसे भी तो नौकरी करनी है। प्रमोशन-इन्क्रीमेंट चाहिए, अच्छी जगह पोस्टिंग चाहिए. वह सब नेताजी की कृपा के बग़ैर तो होगा नहीं! लिहाजा हो सकता है कि वह बाद में करता रहे.
बहरहाल और जो भी हो, पर एक बात तो तय है. वह है नेताजी का भविष्य, कम से कम अगले चुनाव के लिए. अगर बूथ कैप्चर या घालमेल न हुआ तो उनके भविष्य का आकलन हुआ ही समझिए. पर बात यहीं तक नहीं है. अव्वल तो बात यह है कि यह घटना तो सिर्फ संकेत है. संकेत है उन नेताओं के लिए जो अभी यह मानकर चल रहे हैं कि बेचारी पब्लिक जाएगी कहॉ! नाग नाथ नहीं तो सांप नाथ - इन्ही दोनों में से बदल-बदल कर उसे ले आना है बार-बार. बहुत गुस्साएगी तो यह करेगी कि हमारे उस भाई को राजगद्दी पर बैठेगी जिसे हम अभी गाली देते हैं. और जब समझौता यहाँ तक पहुंच ही गया कि राजनीति की दुनिया के बाघ और बकरी एक घाट पर पानी पीने लगे तो थोडा और आगे बढ कर हम नेता-नेता आपस के गिले-शिकवे भी मिटा लेंगे. फिर पांच-पांच साल बाद हम आराम से अदल-बदल कर आते-जाते रहेंगे. लेकिन नहीं जनाब!
पब्लिक यह कहना चाहती है कि इस खुशफहमी में आप मत रहिए. अभी तो बिजली जैसी छोटी सी बात पर लोग एकजुट हुए हैं, सिर्फ एक इलाके में. आगे महंगाई, बेकारी, कानून-व्यवस्था, गुंडागर्दी, जन सुविधाएं, भ्रष्टाचार ....... आदि-आदि बडे मुद्दों पर लोग जुटेंगे. पूरे देश के लोग. आपकी तुष्टीकरण और फूट डालो राज करो की नीति भी सबकी समझ में आ गई है. वे आपके बांटने से बाँटेंगे भी नहीं. फिर सोचिए, क्या होगा?
इब्तदा-ए-इश्क है रोता है क्या?
आगे-आगे देखिए होता है क्या?
और यह बात केवल लाल सिंह के लिए ही नहीं है. लाल सिंह, पीले लाल, काले चंद, हरा कुमार ......... जो भी कोई राजनीति की दुनिया है और बेचारी पब्लिक को बेवकूफ बनाने में लगा हुआ है, उन सभी महान आत्माओं के लिए है यह संकेत. तो कहिए आपकी समझ में कुछ आया नेताजी, या नहीं अभी?
इष्ट देव सांकृत्यायन
बिल्कुल सही है. यह आग फैलेगी ही. आखिर कब तक काठ की हांडी बार बार चढ़ेगी. यह जागरुकता तो आना ही थी बस फैलने की देर है, सब नेता लाईन पर आ जायेंगे. बढ़िया समाचार सुनाया.
ReplyDeleteशुरूआत हो गयी लगता है|
ReplyDeleteअखबार का सही प्रयोग ब्लॉग पर! धन्यवाद.
ReplyDeleteबढ़िया है।
ReplyDeleteकाश! इसी से कुछ सबक ले पाते नेताजी लोग।
ReplyDeleteअफजल हुसैन
ह्ह्म्म, भैय्या कुछ दिन बाद यही दृश्य लगभग सभी जगहों पर दिखाई देने वाला है क्योंकि आमजन का धैर्य खत्म सा होता जा रहा है।
ReplyDeletekhali vote dene n dene se rajneetik soch me parivartan nahin hone wala. yadi aisa drishya hamare aur aapke samne aa jay to hamare haath kee bhee khujlee khatm ho jay.hamare kya saree janta ke haath kee khujlee khatm ho jay aur chain aae.wah aanand parmanand se kahin kam na hoga.
ReplyDeleteये तो होना ही था !!!!
ReplyDeleteदेर सवेर होना ही था
ReplyDeleteदेर हुई पर पर हो गया।।। बधाई
अनिल जी
ReplyDeleteनमस्कार
अपको ब्लॉग पर देख कर अच्छा लगा
आपकी सक्रियता देख कर ओर भी अच्छा लगा
-चिराग जैन