ऐसे पत्थर ख़ूब हैं
खो गए वीरानियों में ऐसे भी घर ख़ूब हैं
कट रहे रानाई में दिन वो मुकद्दर ख़ूब हैं
आना है जाना है सबको देख कर कुछ सीख लो
खंडहर हैं कुछ महल दीवार जर्जर ख़ूब हैं
राह दिखलाने की बातें लेखनी करती ही है
जो सियासत को हिला दे ऐसे आखर ख़ूब हैं
कहते हैं हर कोई देखो हम सिकंदर हम सिकंदर
जो सियासत को हिला दे ऐसे आखर ख़ूब हैं
कहते हैं हर कोई देखो हम सिकंदर हम सिकंदर
है खबर उनको नहीं ईश्वर पयम्बर ख़ूब हैं
हो तसल्ली आंख को तस्वीर ऐसी तो दिखा
देखने को दुनिया भर में यों तो मंजर ख़ूब हैं
कांच के घर में बसें हो मत भुला इस बात को
तोड़ जो डालेंगे पल में ऐसे पत्थर ख़ूब हैं
तोड़ जो डालेंगे पल में ऐसे पत्थर ख़ूब हैं
साथ तेरे हमकदम जो गौर कर उन पर नजर
शकुनी मामा ख़ूब हैं और मीर जाफ़र ख़ूब हैं
है कवच सीने पे लेकिन रखना इसका भी ख़्याल
है कवच सीने पे लेकिन रखना इसका भी ख़्याल
पीठ में घुस जाने वाले यारों खंजर ख़ूब हैं
रतन
रतन जी,बहुत बेहतरीन रचना है।बधाई।
ReplyDeleteहै कवच सीने पे लेकिन रखना इसका भी ख़्याल
पीठ में घुस जाने वाले यारों खंजर ख़ूब हैं
जबरदस्त भाई, बहुत सही. बधाई.
ReplyDeleteवाह गुरू क्या ख़ूब लिखा है आपने।
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