पाकिस्तान में खुफिया एजेंसी आई एस आई की समानान्तर सरकार चलती है- नवाज
सत्येन्द्र प्रताप
पाकिस्तान के अखबार दैनिक जंग के राजनीतिक संपादक सुहैल वड़ाएच ने.. गद्दार कौन - नवाज शरीफ की कहानी उनकी जुबानी.. पुस्तक में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके करीबियों के साक्षात्कारों को संकलित किया है. इस पुस्तक में नवाज शरीफ ,उनके छोटे भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे शहबाज शरीफ, नवाज की बेगम कुलसुम नवाज ,पुत्र हुसैन नवाज छोटे बेटे हसन नवाज, नवाज के करीबी सेनाधिकारी- सेना सचिव ब्रिगेडियर जावेद मलिक और दामाद कैप्टन सफदर के साछात्कार शामिल हैं.
पुस्तक में बड़ी बेबाकी से पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति और विदेशी संबंधों में झांकने की कोशिश की गई है. साथ ही भारत से अलग होने और पाकिस्तान के निर्माण से लेकर आज तक, सत्ता और विदेशनीति में आई एस आई की भूमिका के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री की राय जानने की कोशिश है. नवाज पर संपत्ति अर्जित करने और सत्ता के दुरुपयोग पर भी उनकी राय जानने की स्पस्ट कोशिश की गई है । ये साछात्कार उस समय लिए गए हैं जब नवाज, जद्दा और लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे थे.
पुस्तक के पहले अध्याय में नवाज शरीफ द्वारा पाकिस्तान में परमाणु परीक्षण किए जाने के फैसले पर सवाल किए गए हैं. उस समय सेना के चीफ आफ आर्मी स्टाफ जनरल जहांगीर करामत थे. नवाज ने परमाणु विस्फोट करने से पहले उनसे राय मांगी थी. नवाज का कहना है कि जनरल जहांगीर इस मामले में काफी उहापोह की हालत में थे और प्रतिबंधों को लेकर खासे चिंतित थे. वावजूद इसके, नवाज ने धमाके करने का निर्णय लिया.
भारत- पाक संबंधों पर नवाज का कहना है कि उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से बैकडोर चैनल बनाकर बातचीत शुरु की थी और वातचीत के सकारात्मक परिणाम थे लेकिन इसमें भी सेना और आई एस आई ने खासी अडंगेबाजी की ।उनका मानना है कि युद्ध से भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा कश्मीर विवाद कभी नहीं सुलझ सकता है.
परमाणु विस्फोटों के बाद जनरल जहांगीर करामत को हटाकर परवेज मुशर्रफ को चीफ आफ आर्मी स्टाफ बनाने का फैसला भी नवाज का ही था. सत्ता से हटाए जाने के बाद नवाज स्वीकार करते हैं कि परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख बनाया जाना जल्दबाजी में किया गया फैसला था, जिसमें तीन सेनाधिकारियों की वरिष्ठता का ध्यान न रखते हुए उन्होने मुशर्रफ को सेना प्रमुख बना दिया था.
नवाज शरीफ का कहना है कि मुशर्रफ को सेना प्रमुख पद से हटाए जाने के समय स्थितियां बेहद प्रतिकूल थीं। सेना ने उन्हें जानकारी दिए बिना कश्मीर में सेनाएं भेज दीं और करगिल की चोटियों पर सेना ने कब्जा जमा लिया. नवाज का कहना है कि कारिगल में सेना के भारतीय सेना से लड़ाई के बारे में सूचना उन्हें भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से मिली थी।इसके पहले हमें यही बताया जाता रहा कि वहां मुजाहिदीन लड़ रहे हैं. जब भारतीय सेनाओ ने बमबारी शुरु की तो मुशर्रफ भागे-भागे आए और कहा कि हमें बचा लीजिए। इसके बाद ही उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए मोर्चे पर जाना पड़ा और युद्ध को रोकने के लिए अमेरिका के राष्टपति के पास जाना पड़ा। पाकिस्तानी सेना लगातार चौकियां खो रही थी और उनके पास कोई संसाधन नहीं थे. इस हालात में भी भारत को युद्ध रोकना पड़ा. हमने उस समय अटल बिहारी वाजपेयी को नीचा दिखाया ( इसी साक्षात्कार के बाद भारत में विपक्षी दलों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री का कड़ा विरोध किया था).
नवाज शरीफ ने अपने एक साछात्कार में बड़ी बेबाकी से कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई बेलगाम हो गई है और राजनीतिक नेतृत्व से किसी तरह का राय नहीं लेती. पाकिस्तान में गलत काम तो खुफिया एजेंसियां करती हैं और उसका जबाब सरकार को देना पड़ता है. जिस भी देश में पाकिस्तान का नेता जाता है, उससे यही कहा जाता है कि आई एस आई विभिन्न हरकतें कर रही है. आई एस आई की मीटिंग में तो एक वरिष्ठ अधिकारी ने ये भी राय दे डाली कि देश की आर्थिक हालात को सुधारने के लिए सरकार की सरपरस्ती में ड्रग्स विदेशों में भेजी जाएं. सैनिक सत्ताओं के बार-बार सत्ता हथियाने के चलते ऐसा हुआ है. इस प्रवृत्ति को खत्म करने की जरुरत है.
नवाज के छोटे भाईशहबाज शरीफ ने बातचीत के दौरान पाकिस्तान से बाहर जाने,सउदी अरब से डील और पंजाब प्रांत का मुख्यमंत्री बनाए जाने सहित विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हुई. इसमें पंजाब प्रांत के नेता और नवाज के पारिवारिक मित्र चौधरी सुजात हुसेन से मतभेदों का मुद्दा शामिल रहा. साथ ही मुस्लिम कानूनों और उसपर मौलवियों से मतभेदों के बारे में भी बेबाकी से बातचीत हुई है.
इस किताब में बेगम कुलसुम नवाज से लिए गए वे इंटरव्यू शामिल हैं जो २००० में लाहौर,२००१ में जद्दा और २००६ में लंदन प्रवास के दौरान किए गए. कुलसुम ने उस समय मोर्चा संभाला था जब नवाज शरीफ को जेल में बंद कर दिया गया। कुलसुम का राजनीति में कभी हस्तछेप नहीं रहा और आज भी वे इस पर कायम हैं कि वे राजनीति में नहीं आएंगी. हालांकि सेना के दमन के दौर में उन्होंने अपनी पार्टी की कमान संभाली और जनता को बखूबी समझाया कि सेना ने टेकओवर कर के गलत किया है.
नवाज शरीफ के पुत्र हुसेन नवाज ने अपने साक्षात्कार के दौरान कहा है कि वे सेना द्वारा टेकओवर किए जाने के समय अपने पिता के साथ मौजूद थे. उन्होने मुशर्रफ को हटाए जाने वाले पत्र के मसौदे में भी अपनी राय दी थी. छोटे भाई हसन नवाज उन दिनों लंदन में पढ़ाई कर रहा था. जब उसे टेकओवर की सूचना मिली कि टेकओवर हो गया है और नवाज को बंदी बना लिया गया है जो सउदी अरब सहित नवाज के सभी मित्र देशों में तत्काल संपकर्क किया और पूरे मामले को मीजिया के सामने ले आए.
ब्रिगेडियर जावेद मलिक, नवाज सरकार में सेना सचिव के पद पर काम कर रहे थे। वे भी नवाज सरकार की जर नीतियों का बचाव करते नजर आते हैं।। कारिगल के बारे में उन्होने कहा कि जबनवाज शरीफ नेवाजपेयी के साथ लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताछर किया तो पाकिस्तान की सेना ने दराज और कारिगल पर कब्जा जमा लिया था या कब्जे की तैयारी में थे. उनके मुताबिक सेना का ये फैसला मूर्खतापूर्ण था।पाकिस्तान की सेना का मानना है कि अगर वे दराज कारगिल का रास्ता रोक देंगे तो भारत को दबाव में लेना आसान हो जाएगा लेकिन ये तर्क मूर्खतापूर्ण था. साथ ही उन्होंने कहा कि सेना, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की जासूसी भी करती रहती है. नवाज के सुर में सुर मिलाते हुए उन्होंने कहाकि कारगिल में जांच के डर से सेना प्रमुख ने टेकओवर कर लिया. इस किताब में दामाद कैप्टन सफदर का भी साक्षात्कार दर्ज है जिसमें उन्होंने नवाज को बेद नरमदिल और देश की चिंता करने वाला प्रधानमंत्री बताया है.
कुल मिलाकर इस किताब में साछात्कारों के माध्यम से नवाज ने सेना सरकार के आरोपों से खुद का जोरदार बचाव तो किया ही है। सेना के स्टेबलिशमेंट सेल की तानाशाही, बेलगाम आई एस आई, और विदेश नीति पर खुलकर चर्चा की है. पाकिस्तान की राजनीति का एक पहलू जानने के लिए ये किताब बेहद उपयोगी है जिसमें नवाज शरीफ की ओर से शासन में सेना के हस्तछेप और उससे होने वाली हानियों कीबेबाक चर्चा की गई है. पुस्तक से सुहैल वडाएच की पत्रकारीय छमता भी उभरकर सामने आई है और उन्होंने सैकड़ों सवालों के माध्यम से हर पहलू को छूने की कोशिश की है.
(किताब : पुस्तक समीक्षा गद्दार कौन - नवाज शरीफ की कहानी उनकी जुबानी)
पाकिस्तान के अखबार दैनिक जंग के राजनीतिक संपादक सुहैल वड़ाएच ने.. गद्दार कौन - नवाज शरीफ की कहानी उनकी जुबानी.. पुस्तक में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके करीबियों के साक्षात्कारों को संकलित किया है. इस पुस्तक में नवाज शरीफ ,उनके छोटे भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे शहबाज शरीफ, नवाज की बेगम कुलसुम नवाज ,पुत्र हुसैन नवाज छोटे बेटे हसन नवाज, नवाज के करीबी सेनाधिकारी- सेना सचिव ब्रिगेडियर जावेद मलिक और दामाद कैप्टन सफदर के साछात्कार शामिल हैं.
पुस्तक में बड़ी बेबाकी से पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति और विदेशी संबंधों में झांकने की कोशिश की गई है. साथ ही भारत से अलग होने और पाकिस्तान के निर्माण से लेकर आज तक, सत्ता और विदेशनीति में आई एस आई की भूमिका के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री की राय जानने की कोशिश है. नवाज पर संपत्ति अर्जित करने और सत्ता के दुरुपयोग पर भी उनकी राय जानने की स्पस्ट कोशिश की गई है । ये साछात्कार उस समय लिए गए हैं जब नवाज, जद्दा और लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे थे.
पुस्तक के पहले अध्याय में नवाज शरीफ द्वारा पाकिस्तान में परमाणु परीक्षण किए जाने के फैसले पर सवाल किए गए हैं. उस समय सेना के चीफ आफ आर्मी स्टाफ जनरल जहांगीर करामत थे. नवाज ने परमाणु विस्फोट करने से पहले उनसे राय मांगी थी. नवाज का कहना है कि जनरल जहांगीर इस मामले में काफी उहापोह की हालत में थे और प्रतिबंधों को लेकर खासे चिंतित थे. वावजूद इसके, नवाज ने धमाके करने का निर्णय लिया.
भारत- पाक संबंधों पर नवाज का कहना है कि उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से बैकडोर चैनल बनाकर बातचीत शुरु की थी और वातचीत के सकारात्मक परिणाम थे लेकिन इसमें भी सेना और आई एस आई ने खासी अडंगेबाजी की ।उनका मानना है कि युद्ध से भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा कश्मीर विवाद कभी नहीं सुलझ सकता है.
परमाणु विस्फोटों के बाद जनरल जहांगीर करामत को हटाकर परवेज मुशर्रफ को चीफ आफ आर्मी स्टाफ बनाने का फैसला भी नवाज का ही था. सत्ता से हटाए जाने के बाद नवाज स्वीकार करते हैं कि परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख बनाया जाना जल्दबाजी में किया गया फैसला था, जिसमें तीन सेनाधिकारियों की वरिष्ठता का ध्यान न रखते हुए उन्होने मुशर्रफ को सेना प्रमुख बना दिया था.
नवाज शरीफ का कहना है कि मुशर्रफ को सेना प्रमुख पद से हटाए जाने के समय स्थितियां बेहद प्रतिकूल थीं। सेना ने उन्हें जानकारी दिए बिना कश्मीर में सेनाएं भेज दीं और करगिल की चोटियों पर सेना ने कब्जा जमा लिया. नवाज का कहना है कि कारिगल में सेना के भारतीय सेना से लड़ाई के बारे में सूचना उन्हें भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से मिली थी।इसके पहले हमें यही बताया जाता रहा कि वहां मुजाहिदीन लड़ रहे हैं. जब भारतीय सेनाओ ने बमबारी शुरु की तो मुशर्रफ भागे-भागे आए और कहा कि हमें बचा लीजिए। इसके बाद ही उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए मोर्चे पर जाना पड़ा और युद्ध को रोकने के लिए अमेरिका के राष्टपति के पास जाना पड़ा। पाकिस्तानी सेना लगातार चौकियां खो रही थी और उनके पास कोई संसाधन नहीं थे. इस हालात में भी भारत को युद्ध रोकना पड़ा. हमने उस समय अटल बिहारी वाजपेयी को नीचा दिखाया ( इसी साक्षात्कार के बाद भारत में विपक्षी दलों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री का कड़ा विरोध किया था).
नवाज शरीफ ने अपने एक साछात्कार में बड़ी बेबाकी से कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई बेलगाम हो गई है और राजनीतिक नेतृत्व से किसी तरह का राय नहीं लेती. पाकिस्तान में गलत काम तो खुफिया एजेंसियां करती हैं और उसका जबाब सरकार को देना पड़ता है. जिस भी देश में पाकिस्तान का नेता जाता है, उससे यही कहा जाता है कि आई एस आई विभिन्न हरकतें कर रही है. आई एस आई की मीटिंग में तो एक वरिष्ठ अधिकारी ने ये भी राय दे डाली कि देश की आर्थिक हालात को सुधारने के लिए सरकार की सरपरस्ती में ड्रग्स विदेशों में भेजी जाएं. सैनिक सत्ताओं के बार-बार सत्ता हथियाने के चलते ऐसा हुआ है. इस प्रवृत्ति को खत्म करने की जरुरत है.
नवाज के छोटे भाईशहबाज शरीफ ने बातचीत के दौरान पाकिस्तान से बाहर जाने,सउदी अरब से डील और पंजाब प्रांत का मुख्यमंत्री बनाए जाने सहित विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हुई. इसमें पंजाब प्रांत के नेता और नवाज के पारिवारिक मित्र चौधरी सुजात हुसेन से मतभेदों का मुद्दा शामिल रहा. साथ ही मुस्लिम कानूनों और उसपर मौलवियों से मतभेदों के बारे में भी बेबाकी से बातचीत हुई है.
इस किताब में बेगम कुलसुम नवाज से लिए गए वे इंटरव्यू शामिल हैं जो २००० में लाहौर,२००१ में जद्दा और २००६ में लंदन प्रवास के दौरान किए गए. कुलसुम ने उस समय मोर्चा संभाला था जब नवाज शरीफ को जेल में बंद कर दिया गया। कुलसुम का राजनीति में कभी हस्तछेप नहीं रहा और आज भी वे इस पर कायम हैं कि वे राजनीति में नहीं आएंगी. हालांकि सेना के दमन के दौर में उन्होंने अपनी पार्टी की कमान संभाली और जनता को बखूबी समझाया कि सेना ने टेकओवर कर के गलत किया है.
नवाज शरीफ के पुत्र हुसेन नवाज ने अपने साक्षात्कार के दौरान कहा है कि वे सेना द्वारा टेकओवर किए जाने के समय अपने पिता के साथ मौजूद थे. उन्होने मुशर्रफ को हटाए जाने वाले पत्र के मसौदे में भी अपनी राय दी थी. छोटे भाई हसन नवाज उन दिनों लंदन में पढ़ाई कर रहा था. जब उसे टेकओवर की सूचना मिली कि टेकओवर हो गया है और नवाज को बंदी बना लिया गया है जो सउदी अरब सहित नवाज के सभी मित्र देशों में तत्काल संपकर्क किया और पूरे मामले को मीजिया के सामने ले आए.
ब्रिगेडियर जावेद मलिक, नवाज सरकार में सेना सचिव के पद पर काम कर रहे थे। वे भी नवाज सरकार की जर नीतियों का बचाव करते नजर आते हैं।। कारिगल के बारे में उन्होने कहा कि जबनवाज शरीफ नेवाजपेयी के साथ लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताछर किया तो पाकिस्तान की सेना ने दराज और कारिगल पर कब्जा जमा लिया था या कब्जे की तैयारी में थे. उनके मुताबिक सेना का ये फैसला मूर्खतापूर्ण था।पाकिस्तान की सेना का मानना है कि अगर वे दराज कारगिल का रास्ता रोक देंगे तो भारत को दबाव में लेना आसान हो जाएगा लेकिन ये तर्क मूर्खतापूर्ण था. साथ ही उन्होंने कहा कि सेना, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की जासूसी भी करती रहती है. नवाज के सुर में सुर मिलाते हुए उन्होंने कहाकि कारगिल में जांच के डर से सेना प्रमुख ने टेकओवर कर लिया. इस किताब में दामाद कैप्टन सफदर का भी साक्षात्कार दर्ज है जिसमें उन्होंने नवाज को बेद नरमदिल और देश की चिंता करने वाला प्रधानमंत्री बताया है.
कुल मिलाकर इस किताब में साछात्कारों के माध्यम से नवाज ने सेना सरकार के आरोपों से खुद का जोरदार बचाव तो किया ही है। सेना के स्टेबलिशमेंट सेल की तानाशाही, बेलगाम आई एस आई, और विदेश नीति पर खुलकर चर्चा की है. पाकिस्तान की राजनीति का एक पहलू जानने के लिए ये किताब बेहद उपयोगी है जिसमें नवाज शरीफ की ओर से शासन में सेना के हस्तछेप और उससे होने वाली हानियों कीबेबाक चर्चा की गई है. पुस्तक से सुहैल वडाएच की पत्रकारीय छमता भी उभरकर सामने आई है और उन्होंने सैकड़ों सवालों के माध्यम से हर पहलू को छूने की कोशिश की है.
(किताब : पुस्तक समीक्षा गद्दार कौन - नवाज शरीफ की कहानी उनकी जुबानी)
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सुस्वागतम!!