ये क्या क्रिकेट-क्रिकेट लगा रखा है?
सत्येन्द्र प्रताप
पहले टेस्ट मैच बहुत ही झेलाऊ था, फिर पचास ओवर का मैच शुरु हुआ, वह भी झेलाऊ साबित हुआ तो २०-२० आ गया. क्या खेल है भाई! भारत पाकिस्तान का मैच जोहान्सबर्ग में और सन्नाटा दिल्ली की सड़कों पर. मुझे तो इस बत की खुशी हुई कि आफिस से निकला तो खाली बस मिल गई, सड़क पर सन्नाटा पसरा था. मोहल्ले में पहुंचा तो पटाखों के कागज से सड़कें पट गईं थीं और लोग पटाखे पर पटाखे दागे जा रहे थे.
अरे भाई कोई मुझे भी तो बताए कि आखिर इस खेल में क्या मजा है? कहने को तो इस खेल में २२ खिलाडी होते हैं, लेकिन खेलते दो ही हैं. उसमें भी एक लड़का जो गेंद फेकता है वह कुछ मेहनत करता है, दूसरा पटरा नुमा एक उपकरण लेकर खड़ा रहता है. फील्ड में ग्यारह खिलाडी बल्लेबाजी कर रहे खिलाडी का मुंह ताकते रहते हैं कि कुछ तो रोजगार दो.
खेल का टाइम भी क्या खाक कम किया गया है? हाकी और फुटबाल एक से डेढ़ घंटे में निपट जाता है और उसपर भी जो खेलता है उसका एंड़ी का पसीना माथे पर आ जाता है. यहां तो भाई लोग मौज करते हैं. हां, धूप मेंखड़े होकर पसीना जरुर बहाते हैं. वैसे अगर जाड़े का वक्त हुआ तो धूप में खड़े होना भी मजेदार अनुभव हो जाता है. बस खड़े रहो और लोगों का मुंह निहारते रहो. हालांकि रिकी पॉन्टिंग जैसे खिलाडी जब खड़े-खड़े बोर हो जाते हैं तो वहीं अपनी जगह पर कूदने लगते हैं.
खिलाडी भी अजीब-अजीब होते हैं. पहले वाल्श और एंब्रोज थे, दोनों मिलाकर बारह ओवर फेंक देते थे और रोजगार देते थे विकेट कीपर को. बैटिंग करने वाला बंदा तो अपना मुंह-हाथ-पैर बचाने में ही लगा रहता था. राबिन भाई को कैसे भुलाया जा सकता था, अगर कभी गलती से पचास रन बना दिया मुंह से झाग फेंक देते थे. लगता था कि बेचारे ने मेहनत की है. पाकिस्तान के एक भाई साहब थे इंजमाम, क्या कहने! उन्हें तो दौड़ने में भी आलस आता था. ज्यादातर वे आधी पिच तक पहुंचते और उन्हें मुआ अंपायर उंगली कर देता था. वो भी समझ नहीं पाते कि आखिर क्या दुश्मनी है उनसे.
अब तो विज्ञापन कंपनियों की बांछें खिल गई हैं. क्योंकि तीन घंटे के क्रिकेट का बुखार भारत के युवकों पर चढ़ गया है. विश्वकप में भारत पाकिस्तान की दुर्दशा से तो उनका दिवाला निकल गया था. अब आर्थिक अखबारों में सर्वे पर सर्वे आ रहा है कि बड़ा मजा है इस क्रिकेट में. कंपनियों की भी बल्ले-बल्ले है.
हालांकि अगर क्रिकेट को २०-२० की जगह पर दो खिलाडियों का मैच कर दिया जाए तो मजा दुगुना हो जाए. अगर सामने लांग आन और लांगआफ पर गेंद जाए तो गेंदवाज उसे पकड़ कर लाए और अगर लेग आन लेग आफ और पीछे की ओर गेंद जाए तो बल्लेबाज उसे पकड़ कर लाए. ये मैच पांच ओवर में ही निपट जाएगा और खिलाडी खेलते हुए भी लगेंगे. दस-बीस हजार का टिकट लगाकर क्रिकेट के दीवानों को फील्ड के बाहरी हिस्से पर फील्डिंग के लिए भी लगाया जा सकता है. साथ ही नियमों में भी बदलाव की जरुरत है. पीछे गेंद जाने पर बालर को रन मिले और आगे की ओर गेंद जाने पर बैट्समैन को ... वगैरा वगैरा. अगर इस तरह का क्रिकेट होने लगे तो सही बताएं गुरु मुझे भी देखने में मजा आ जाए.
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अपना देसी खेल हाकी इसी क्रिकेट-क्रिकेट के हल्ले में बिला गया. फिर भी भगवान जानें क्यों जनता इस उबाऊ खेल खेल पर इस तरह फ़िदा है.
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