ट्रांस्पैरेंसी इंटरनेशनल की हेराफेरी
इष्ट देव सांकृत्यायन
व्यंग्य चित्र : श्याम जगोता
मास्टर एकदम से फायर है. सलाहू से उसने पूछा है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में मानहानि के मुकदमों की सुनवाई कहाँ होती है और इनके लिए याचिका कैसे लगाई जा सकती है. बेचारा सलाहू अभी हाई कोर्ट से आगे तो जा नहीं पाया. सुप्रीम कोर्ट का मुँह तो जरूर देखा है लेकिन भीतर घुसने की अभी तक तो उसे अनुमति मिली नहीं. सोच रहा है कैसे समझाए मास्टर को. सलाहू उसे समझाने की वैसे तो बहुतेरी कोशिशें कर चुका है कि इन सब झमेलों में मत पड़ो. पर जो समझ ही जाए वो मास्टर भला किस बात का?
असल में राष्ट्रीयता की भावना मास्टर में कूट-कूट कर भरी है और यह भावना उसमें भरी है उसके परमपूज्य पिताश्री ने, जो तहसील के मुलाजिम हुआ करते थे। वे पूरे देश की सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति समझते थे। सरकारी जमीनों को तो धेले के भाव किसी के भी नाम करते उन्हें कभी डर लगा ही नहीं, कमजोर लोगों की जमीन दबंगों और दबंगों की जमीन उनसे ज्यादा दबंगों या समझदार लोगों की लोचेदार जमीन बेवकूफों के नाम करने में भी वे कभी हिचकिचाए नहीं। दूसरे हलकों के लोग भी अभी तक बच्कन लाल पटवारी का उदाहरण देते नहीं थकते और कानूंनगो-तहसीलदार तो नए आए पटवारियों को बच्कन लाल से प्रेरणा लेने की सलाह देते हैं.
इतने महान पिता की संतान होकर मास्टर राष्ट्र का अपमान बर्दाश्त कर ले ऐसा ऐसा कैसे हो सकता है! ट्रांसपैरेंसी इन्टरनेशनल ने अभी हाल में भ्रष्ट मुल्कों की जो सूची जारीः की हमारी हालत क्या उसे घोर आपत्ति है। उसे अंदेशा है कि हो न हो ट्रांसपैरेंसी वालों ने रैंकिंग में घपला किया है। अगर ऐसा न होता तो क्या वास्तव में हम इतने गिर गए हैं.
ट्रांसपेरेंसी वालों की ये मजाल कि उन्होने हमें 138 वें नंबर पर डाल दिया? हमारे राजनैतिक-प्रशासनिक पुरखों की शताब्दियों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया!
ज़रा बताइए तो किस साले देश में इतना दमख़म है जो आतंकवादियों को इज्जत से बैठा कर मुर्ग-मुसल्लम खिला सके? है कोई माई का लाल जो एक व्यक्ति के हत्या के दोषी की दया की अर्जी तो खारिज कर दे पर सैकड़ों की हत्या के पेशेवर अपराधी की दया की अर्जी कबूल ले और उस पर फैसला शताब्दियों के लिए लटका दे? है कोई ऐसा मुल्क जहाँ सारे उच्चतम पदों पर ऐसे लोग बैठे हों जिसका उस मुल्क में धेले का भी योगदान न हो?
जाने भी दीजिए, ये सब तो ऊंचे स्तर का मामला है. ज़रा नीचे देखिए. बताइए कोई ऐसा मुल्क जहाँ बच्चे के जन्म से लेकर बुड्ढे की मृत्यु तक का प्रमाणपत्र लेने के लिए चढावा चढ़ना पड़ता हो और चढावे को इतना पवित्र माना जाता हो कि उसके बग़ैर भगवान से भी कुछ सुनने की उम्मीद न की जा सके. बताइए ऐसा मुल्क जहाँ चुनाव से पहले असंभव टाईप के वाडे किए जाते हों और जीतने के बाद में उनके बारे में सोचना भी गुनाह समझा जाता हो? है कोई मुल्क जहाँ परीक्षा से पहले ही पर्चे लीक हो जाते हों और इम्तहान से पहले परीक्षार्थी को ये पता होता हो कि कापी किसके पास जाएगी?
कौन सा मुल्क है जहाँ जमीन के कागजात में घपले के लिए बेचने वाला और लिखत-पढ़त करने वाला सरकारी मुलाजिम नहीं, बेचारा खरीदार होता हो? उस मुल्क का नाम बताइए तो जहाँ मिलावट परम्परा बन चुकी हो और निरीह राहगीरों को रौंदना ट्रकों और बसों का जन्मसिद्ध अधिकार. कोई बता सकता है ऐसा मुल्क जहाँ थानेदार अपराधी के बजाय पीडित को सजा देता हो? अगर यह सब नहीं पता है तो क्या ख़ाक सर्वे कर रहे हो? हिंदी की प्रतिष्टित पत्रिकाओं की तरह सेक्स सर्वे कर हो या टेलीविजन चैनलों की टीआरपी रेटिंग?
मास्टर सुबह ही से बिफर रहा है, 'एक बार बस पता चल जाए कि कहाँ होती है मानहानि के अंतर राष्ट्रीय मामलों की सुनवाई! भूल जाएँगे साले ये रिपोर्ट-उपोर्ट जारीः करना और रैंक बनाना भी. पक्का है इस रिपोर्ट के बनाने में बडे पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है. वरना पहला नंबर तो हमारा ही था. भ्रष्टाचार का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि जो आदमी सैकड़ों बच्चों-बच्चियों को मार कर खा गया और उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों को देश-विदेश में पार्सल कर चूका हो उसके खिलाफ किसी को कोई सबूत भी न मिले? अब कौन सा मानक बचता है जिस पर कोई दूसरा देश टापर घोषित किया जाए?'
मास्टर इस समय यक्ष हो गया है. जेठमलानी से भी ज्यादा खतरनाक. उसके सवालों का जवाब देना युधिष्ठिर के बूते की भी बात नहीं रह गई है और समझा पाना कृष्ण के बूते की भी बात नहीं है. फिलहाल वह सलाहू को ढूँढ रहा है और बेचारा सलाहू भगा फिर रहा है. अगर आपको पता भी चले तो प्लीज़ बताइएगा मत!
मास्टर एकदम से फायर है. सलाहू से उसने पूछा है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में मानहानि के मुकदमों की सुनवाई कहाँ होती है और इनके लिए याचिका कैसे लगाई जा सकती है. बेचारा सलाहू अभी हाई कोर्ट से आगे तो जा नहीं पाया. सुप्रीम कोर्ट का मुँह तो जरूर देखा है लेकिन भीतर घुसने की अभी तक तो उसे अनुमति मिली नहीं. सोच रहा है कैसे समझाए मास्टर को. सलाहू उसे समझाने की वैसे तो बहुतेरी कोशिशें कर चुका है कि इन सब झमेलों में मत पड़ो. पर जो समझ ही जाए वो मास्टर भला किस बात का?
असल में राष्ट्रीयता की भावना मास्टर में कूट-कूट कर भरी है और यह भावना उसमें भरी है उसके परमपूज्य पिताश्री ने, जो तहसील के मुलाजिम हुआ करते थे। वे पूरे देश की सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति समझते थे। सरकारी जमीनों को तो धेले के भाव किसी के भी नाम करते उन्हें कभी डर लगा ही नहीं, कमजोर लोगों की जमीन दबंगों और दबंगों की जमीन उनसे ज्यादा दबंगों या समझदार लोगों की लोचेदार जमीन बेवकूफों के नाम करने में भी वे कभी हिचकिचाए नहीं। दूसरे हलकों के लोग भी अभी तक बच्कन लाल पटवारी का उदाहरण देते नहीं थकते और कानूंनगो-तहसीलदार तो नए आए पटवारियों को बच्कन लाल से प्रेरणा लेने की सलाह देते हैं.
इतने महान पिता की संतान होकर मास्टर राष्ट्र का अपमान बर्दाश्त कर ले ऐसा ऐसा कैसे हो सकता है! ट्रांसपैरेंसी इन्टरनेशनल ने अभी हाल में भ्रष्ट मुल्कों की जो सूची जारीः की हमारी हालत क्या उसे घोर आपत्ति है। उसे अंदेशा है कि हो न हो ट्रांसपैरेंसी वालों ने रैंकिंग में घपला किया है। अगर ऐसा न होता तो क्या वास्तव में हम इतने गिर गए हैं.
ट्रांसपेरेंसी वालों की ये मजाल कि उन्होने हमें 138 वें नंबर पर डाल दिया? हमारे राजनैतिक-प्रशासनिक पुरखों की शताब्दियों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया!
ज़रा बताइए तो किस साले देश में इतना दमख़म है जो आतंकवादियों को इज्जत से बैठा कर मुर्ग-मुसल्लम खिला सके? है कोई माई का लाल जो एक व्यक्ति के हत्या के दोषी की दया की अर्जी तो खारिज कर दे पर सैकड़ों की हत्या के पेशेवर अपराधी की दया की अर्जी कबूल ले और उस पर फैसला शताब्दियों के लिए लटका दे? है कोई ऐसा मुल्क जहाँ सारे उच्चतम पदों पर ऐसे लोग बैठे हों जिसका उस मुल्क में धेले का भी योगदान न हो?
जाने भी दीजिए, ये सब तो ऊंचे स्तर का मामला है. ज़रा नीचे देखिए. बताइए कोई ऐसा मुल्क जहाँ बच्चे के जन्म से लेकर बुड्ढे की मृत्यु तक का प्रमाणपत्र लेने के लिए चढावा चढ़ना पड़ता हो और चढावे को इतना पवित्र माना जाता हो कि उसके बग़ैर भगवान से भी कुछ सुनने की उम्मीद न की जा सके. बताइए ऐसा मुल्क जहाँ चुनाव से पहले असंभव टाईप के वाडे किए जाते हों और जीतने के बाद में उनके बारे में सोचना भी गुनाह समझा जाता हो? है कोई मुल्क जहाँ परीक्षा से पहले ही पर्चे लीक हो जाते हों और इम्तहान से पहले परीक्षार्थी को ये पता होता हो कि कापी किसके पास जाएगी?
कौन सा मुल्क है जहाँ जमीन के कागजात में घपले के लिए बेचने वाला और लिखत-पढ़त करने वाला सरकारी मुलाजिम नहीं, बेचारा खरीदार होता हो? उस मुल्क का नाम बताइए तो जहाँ मिलावट परम्परा बन चुकी हो और निरीह राहगीरों को रौंदना ट्रकों और बसों का जन्मसिद्ध अधिकार. कोई बता सकता है ऐसा मुल्क जहाँ थानेदार अपराधी के बजाय पीडित को सजा देता हो? अगर यह सब नहीं पता है तो क्या ख़ाक सर्वे कर रहे हो? हिंदी की प्रतिष्टित पत्रिकाओं की तरह सेक्स सर्वे कर हो या टेलीविजन चैनलों की टीआरपी रेटिंग?
मास्टर सुबह ही से बिफर रहा है, 'एक बार बस पता चल जाए कि कहाँ होती है मानहानि के अंतर राष्ट्रीय मामलों की सुनवाई! भूल जाएँगे साले ये रिपोर्ट-उपोर्ट जारीः करना और रैंक बनाना भी. पक्का है इस रिपोर्ट के बनाने में बडे पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है. वरना पहला नंबर तो हमारा ही था. भ्रष्टाचार का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि जो आदमी सैकड़ों बच्चों-बच्चियों को मार कर खा गया और उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों को देश-विदेश में पार्सल कर चूका हो उसके खिलाफ किसी को कोई सबूत भी न मिले? अब कौन सा मानक बचता है जिस पर कोई दूसरा देश टापर घोषित किया जाए?'
मास्टर इस समय यक्ष हो गया है. जेठमलानी से भी ज्यादा खतरनाक. उसके सवालों का जवाब देना युधिष्ठिर के बूते की भी बात नहीं रह गई है और समझा पाना कृष्ण के बूते की भी बात नहीं है. फिलहाल वह सलाहू को ढूँढ रहा है और बेचारा सलाहू भगा फिर रहा है. अगर आपको पता भी चले तो प्लीज़ बताइएगा मत!
सलाहू आपके सम्पर्क में हो तो बोलें ऑर्कुट पर सर्वे कराले. ऑर्कुट का सर्वे प्रमाणित माना जाता है - उससे राष्ट्रपिता कोई हो या न हो तय होता है. अगर उसमें आ गया कि भारत कम भ्रष्ट हो रहा है तो मास्टर के यक्ष प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा. :-)
ReplyDeleteज्ञान भैया
ReplyDeleteअच्छे सुझाव के लिए धन्यवाद.
आपके सुझाव पर जल्द ही अमल किया जाएगा.