आस्था का सवाल
हरिशंकर राढ़ी
एक बार आस्था फिर बाहर आ गयी है. लड़ने का मूड है उसका इस बार. इस बार उसकी लडाई इतिहास से है. यों तो इतिहास लडाई एवं षड्यंत्र का ही दूसरा नाम है, पर यह लडाई कुछ अलग है. लड़ने चली तो आई पर हथियार के नाम पर बेहया का एक डंडा भी नहीं है. यहाँ तक कि यदि पिट-पिटा गई तो ऍफ़आईआर दर्ज़ कराने के लिए एक किता चश्मदीद गवाह भी नहीं है. उसकी ओर से खड़ा होकर कोई यह भी कहने वाला नहीं है कि मैने राम को देखा है. उन्होने समुद्र में सेतु बनाया ,यह तो दूर की बात है.
सच भी है. पहले तो उन्हें देखने की किसी ने कोशिश ही नहीं की, अगर किसी ने दावा कर भी दिया तो लोग उसे पागल समझेंगे. दूसरी तरफ इतिहास है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेकर आया है. विदेशी है सो अच्छा होगा ही. उसके चलन-कलन मे कोई गलती हो ही नहीं सकती. गलती हो भी जाए तो परिहार है -सॉरी. अभी गलती से अमेरिका आस्था की गवाही में बोल पड़ा कि समुन्दर के अन्दर एक पुराना पुल पड़ा हुआ है. उसे पता नहीं था कि राम सेतु की पक्षधर पार्टियां सत्ता में नहीं हैं. सो जल्दी से सॉरी बोल दिया। इस टीप के साथ कि पुल मानव निर्मित नहीं है.
यही बात तुलसी बाबा भी बोले, भारत की गवार जनता भी यही बोलती है कि राम मानव नहीं थे. पर तुलसी बाबा का क्या? इतना बड़ा पोथन्ना लिख गए, दो अक्षर इतिहास नही लिखा. अपना और अपने देस का इतिहास वैसे भी मकबरा काल से शुरू होता है. एक-दो शिलालेख या स्तूप भी मिल जाता तो कुछ बोल सकते थे. एक शिला मिली भी तो आपने उसका उद्धार कर दिया. मेरी तो समझ मे नहीं आता कि क्या खाकर आस्था इतिहास का मुक़ाबला करेगी और जिनकी आस्था बाहर आ रही है उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि आस्था उनकी भी है जो इतिहास वाले हैं. जिन्होंने दो-दो हलफनामे दायर किए. आस्था रावण की भी थी.
राजनैतिक आस्था होती ही ऐसे है. जो भी मानो, दिखाओ मत. फिर राम ने भक्ति के तरीके भी नौ बताए और भी बताया कि - भाव कुभाव अनख आलसहूँ. नाम जपत मंगल दिसी दसहू. रावन ने अनख यानी शत्रु भाव से आस्था रखी. विद्वान था, राजनेता था. उसका भी मंगल हुआ, पर कैसा आप जानते हैं. इनका भी मंगल होना चाहिए. अब ये राम को माफ़ करने वाले नही. इतना बड़ा पुल बिना अनुमति के बनवाया कैसे? अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया क्या? कमीशन तक नहीं पंहुचाया. हद तो तब हो गयी जब शिलान्यास- उद्घाटन तक के लिए नहीं बुलाया. अगर इन्होने शिलापट्ट का अनावरण भी कर दिया होता तो आज राम सेतु के ऐतिहासिक होने मे कोई संदेह नहीं होता.
एक बार आस्था फिर बाहर आ गयी है. लड़ने का मूड है उसका इस बार. इस बार उसकी लडाई इतिहास से है. यों तो इतिहास लडाई एवं षड्यंत्र का ही दूसरा नाम है, पर यह लडाई कुछ अलग है. लड़ने चली तो आई पर हथियार के नाम पर बेहया का एक डंडा भी नहीं है. यहाँ तक कि यदि पिट-पिटा गई तो ऍफ़आईआर दर्ज़ कराने के लिए एक किता चश्मदीद गवाह भी नहीं है. उसकी ओर से खड़ा होकर कोई यह भी कहने वाला नहीं है कि मैने राम को देखा है. उन्होने समुद्र में सेतु बनाया ,यह तो दूर की बात है.
सच भी है. पहले तो उन्हें देखने की किसी ने कोशिश ही नहीं की, अगर किसी ने दावा कर भी दिया तो लोग उसे पागल समझेंगे. दूसरी तरफ इतिहास है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेकर आया है. विदेशी है सो अच्छा होगा ही. उसके चलन-कलन मे कोई गलती हो ही नहीं सकती. गलती हो भी जाए तो परिहार है -सॉरी. अभी गलती से अमेरिका आस्था की गवाही में बोल पड़ा कि समुन्दर के अन्दर एक पुराना पुल पड़ा हुआ है. उसे पता नहीं था कि राम सेतु की पक्षधर पार्टियां सत्ता में नहीं हैं. सो जल्दी से सॉरी बोल दिया। इस टीप के साथ कि पुल मानव निर्मित नहीं है.
यही बात तुलसी बाबा भी बोले, भारत की गवार जनता भी यही बोलती है कि राम मानव नहीं थे. पर तुलसी बाबा का क्या? इतना बड़ा पोथन्ना लिख गए, दो अक्षर इतिहास नही लिखा. अपना और अपने देस का इतिहास वैसे भी मकबरा काल से शुरू होता है. एक-दो शिलालेख या स्तूप भी मिल जाता तो कुछ बोल सकते थे. एक शिला मिली भी तो आपने उसका उद्धार कर दिया. मेरी तो समझ मे नहीं आता कि क्या खाकर आस्था इतिहास का मुक़ाबला करेगी और जिनकी आस्था बाहर आ रही है उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि आस्था उनकी भी है जो इतिहास वाले हैं. जिन्होंने दो-दो हलफनामे दायर किए. आस्था रावण की भी थी.
राजनैतिक आस्था होती ही ऐसे है. जो भी मानो, दिखाओ मत. फिर राम ने भक्ति के तरीके भी नौ बताए और भी बताया कि - भाव कुभाव अनख आलसहूँ. नाम जपत मंगल दिसी दसहू. रावन ने अनख यानी शत्रु भाव से आस्था रखी. विद्वान था, राजनेता था. उसका भी मंगल हुआ, पर कैसा आप जानते हैं. इनका भी मंगल होना चाहिए. अब ये राम को माफ़ करने वाले नही. इतना बड़ा पुल बिना अनुमति के बनवाया कैसे? अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया क्या? कमीशन तक नहीं पंहुचाया. हद तो तब हो गयी जब शिलान्यास- उद्घाटन तक के लिए नहीं बुलाया. अगर इन्होने शिलापट्ट का अनावरण भी कर दिया होता तो आज राम सेतु के ऐतिहासिक होने मे कोई संदेह नहीं होता.
आज भी अनास्थावान राहु-केतुओं का मंगल ही होगा. राम गरियाने में भी तो वे रामनाम ले रहे हैं.
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