ठोकरें राहों में मेरे कम नहीं।
फिर भी देखो आँख मेरी नम नहीं।
जख्म वो क्या जख्म जिसका हो इलाज-
जख्म वो जिसका कोई मरहम नहीं।
भाप बन उड़ जाऊंगा तू ये न सोच-
मैं तो शोला हूँ कोई शबनम नहीं।
गम से क्यों कर है परीशाँ इस क़दर -
कौन सा दिल है कि जिसमें ग़म नहीं।
चंद लम्हों में सँवर जाए जो दुनिया -
ये तेरी जुल्फों का पेंचो-ख़म नहीं।
दाद के काबिल है स्नेहिल की गज़ल-
कौन सा मिसरा है जिसमें दम नहीं।
-विनय ओझा ' स्नेहिल'
फिर भी देखो आँख मेरी नम नहीं।
जख्म वो क्या जख्म जिसका हो इलाज-
जख्म वो जिसका कोई मरहम नहीं।
भाप बन उड़ जाऊंगा तू ये न सोच-
मैं तो शोला हूँ कोई शबनम नहीं।
गम से क्यों कर है परीशाँ इस क़दर -
कौन सा दिल है कि जिसमें ग़म नहीं।
चंद लम्हों में सँवर जाए जो दुनिया -
ये तेरी जुल्फों का पेंचो-ख़म नहीं।
दाद के काबिल है स्नेहिल की गज़ल-
कौन सा मिसरा है जिसमें दम नहीं।
-विनय ओझा ' स्नेहिल'
दाद के काबिल है स्नेहिल की गज़ल-
ReplyDeleteकौन सा मिसरा है जिसमें दम नहीं।
सही है.
सही है जी, बहुत अच्छा लिखा। दाद दे रहे हैं - हर मिसरे पर।
ReplyDeleteजनाब विनय जी, वैसे तो आपकी कविता वाकई में दाद के काबिल है ही लेकिन ..
ReplyDelete"दाद के काबिल है स्नेहिल की गज़ल-
कौन सा मिसरा है जिसमें दम नहीं।"
क्या है जी.... :)
विनय भाई, सभी लोगों ने तो लिख ही दिया है कि दाद के काबिल है। अब मैं क्या लिखूं। चलिए लिखे देता हूं। बहुत बढ़िया है। दाद, खाज, खुजली सभी के काबिल।
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