क्रिकेट के बहाने ऑस्ट्रेलियाई समाज का पोस्टमार्टम
एक सौ बीस साल में एक ही मूल निवासी ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर...
... और शिकायत ये कि भारत में नीची जाति वालों को क्रिकेटर बनने का मौका नहीं दिया जाता। ये सच है कि भारतीय क्रिकेट टीम में कोई दलित नहीं है। इस समय तो कोई ओबीसी - बनिया भी नहीं है। आदिवासी भी कोई नहीं है। भारत की लगभग 75 फीसदी आबादी जिन समुदायों को लेकर बनती है, शायद किसी संयोग की वजह से (?) वो भारतीय क्रिकेट टीम में नदारद है। ये एक ऐसी समस्या है जिससे भारत को निबटना ही होगा। भारतीय विविधता का जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में नजर न आना खतरनाक है और ये हमारे समय की एक गंभीर गंभीर समस्या है।
लेकिन आश्चर्यजनक बात ये है कि भारतीय क्रिकेट में जातिवाद की बात उस ऑस्ट्रेलया में चल रही है जहां क्रिकेट में नस्लवाद की जड़े बेहद गहरी हैं। ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासी यूरोपीय पादरियों के आने के बाद से ही क्रिकेट खेल रहे हैं। 1868 में पहली बार मूल निवासियों की क्रिकेट टीम इंग्लैंड पहुंची और उसने 115 दिन विदेश में रहकर 47 मैच खेले। १४ मैच जीते, 14 हारे और 19 ड्रॉ रहे। ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासियों के इस प्रदर्शन से लोग हैरत में थे। ऊपर उस टीम की तस्वीर आप देख सकते हैं।
लेकिन तब से लेकर आज तक सिर्फ एक मूल निवासी ऑस्ट्रेलया की नेशनल टीम में जगह बना पाया है। वो है जैसन गलेस्पी। गैलस्पी ने 71 टेस्ट मैच खेले और 259 विकेट लिए। आठ बार उन्होंने 5 विकेट से ज्यादा हासिल करने का कारनामा कर दिखाया। मूल निवासी मजबूत काठी की वजह से अच्छे एथलीट माने जाते हैं और दूसरे खेलो में उनका प्रतिनिधित्व बढ़िया है। लेकिन एलीट खेल क्रिकेट में वो हमेशा से नदारद रहे हैं।
ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट में मूल निवासियों की गैरमौजूदगी वहां की सरकार के लिए भी शर्मनाक स्थिति है। वहां की ह्यूमन राट्स कमीशन की रिपोर्ट - What's the score में इस बारे में चिंता जताई गई है। और फिर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का नस्लवाद सिर्फ मूल खिलाड़ियों को मौका न देने तक सीमित नहीं है। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाने वाली टीम अगर गोरों की नहीं हुई तो उसे दर्शकों के तमाम तरह के ताने झेलने पड़ते हैं। 2003 में क्विंसलैंड में श्रीलंका के साथ वन डे मैच के दौरान आउट होने पर डैरेन लेहमैन ने ऊंची आवाज में एक भद्दी नस्लवादी गाली दी थी, जिसकी वजह से उसे पांच मैचों के लिए सस्पेंड भी किया गया था। वहां के पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर डीन जोंस ने अगस्त 2006 में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर हाशिम अमला को मैच के दौरान आंतकवादी कहा था। वो भी सिर्फ इसलिए कि अमला दाढ़ी रखते हैं।
ऐसे ऑस्ट्रेलियाई, भारतीयों को क्रिकेट में सामाजिक समता का पाठ पढ़ा रहे हैं।
-दिलीप मंडल
... और शिकायत ये कि भारत में नीची जाति वालों को क्रिकेटर बनने का मौका नहीं दिया जाता। ये सच है कि भारतीय क्रिकेट टीम में कोई दलित नहीं है। इस समय तो कोई ओबीसी - बनिया भी नहीं है। आदिवासी भी कोई नहीं है। भारत की लगभग 75 फीसदी आबादी जिन समुदायों को लेकर बनती है, शायद किसी संयोग की वजह से (?) वो भारतीय क्रिकेट टीम में नदारद है। ये एक ऐसी समस्या है जिससे भारत को निबटना ही होगा। भारतीय विविधता का जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में नजर न आना खतरनाक है और ये हमारे समय की एक गंभीर गंभीर समस्या है।
लेकिन आश्चर्यजनक बात ये है कि भारतीय क्रिकेट में जातिवाद की बात उस ऑस्ट्रेलया में चल रही है जहां क्रिकेट में नस्लवाद की जड़े बेहद गहरी हैं। ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासी यूरोपीय पादरियों के आने के बाद से ही क्रिकेट खेल रहे हैं। 1868 में पहली बार मूल निवासियों की क्रिकेट टीम इंग्लैंड पहुंची और उसने 115 दिन विदेश में रहकर 47 मैच खेले। १४ मैच जीते, 14 हारे और 19 ड्रॉ रहे। ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासियों के इस प्रदर्शन से लोग हैरत में थे। ऊपर उस टीम की तस्वीर आप देख सकते हैं।
लेकिन तब से लेकर आज तक सिर्फ एक मूल निवासी ऑस्ट्रेलया की नेशनल टीम में जगह बना पाया है। वो है जैसन गलेस्पी। गैलस्पी ने 71 टेस्ट मैच खेले और 259 विकेट लिए। आठ बार उन्होंने 5 विकेट से ज्यादा हासिल करने का कारनामा कर दिखाया। मूल निवासी मजबूत काठी की वजह से अच्छे एथलीट माने जाते हैं और दूसरे खेलो में उनका प्रतिनिधित्व बढ़िया है। लेकिन एलीट खेल क्रिकेट में वो हमेशा से नदारद रहे हैं।
ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट में मूल निवासियों की गैरमौजूदगी वहां की सरकार के लिए भी शर्मनाक स्थिति है। वहां की ह्यूमन राट्स कमीशन की रिपोर्ट - What's the score में इस बारे में चिंता जताई गई है। और फिर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का नस्लवाद सिर्फ मूल खिलाड़ियों को मौका न देने तक सीमित नहीं है। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाने वाली टीम अगर गोरों की नहीं हुई तो उसे दर्शकों के तमाम तरह के ताने झेलने पड़ते हैं। 2003 में क्विंसलैंड में श्रीलंका के साथ वन डे मैच के दौरान आउट होने पर डैरेन लेहमैन ने ऊंची आवाज में एक भद्दी नस्लवादी गाली दी थी, जिसकी वजह से उसे पांच मैचों के लिए सस्पेंड भी किया गया था। वहां के पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर डीन जोंस ने अगस्त 2006 में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर हाशिम अमला को मैच के दौरान आंतकवादी कहा था। वो भी सिर्फ इसलिए कि अमला दाढ़ी रखते हैं।
ऐसे ऑस्ट्रेलियाई, भारतीयों को क्रिकेट में सामाजिक समता का पाठ पढ़ा रहे हैं।
-दिलीप मंडल
फाड़ लिखा है| मजा डाल दिया| ये तो पाकिस्तान से भी गए गुजरे है|
ReplyDeleteगज़ब, कमाल की बात है।
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