ग़ज़ल
अब सुनाई ही नहीं देती है जनता की पुकार।
इस तरह छाया हुआ है उनपे गद्दी का खुमार ॥
अब दुकानों से उधारी दूर की एक बात है-
जब बगल वाले नहीं देते हैं अब हमको उधार ॥
लाँघ पाना या गिरा पाना जिसे मुमकिन नहीं -
हर दिलों के दरमियाँ नफरत की है ऊँची दिवार॥
सैकड़ों बगुलों ने मिल घेरा है एक दो हंसों को-
लगता नामुमकिन है लाना अब सियासत में सुधार॥
खुद की कुर्बानी का जज्बा गुम गया जाने कहाँ-
इस शहर में हर कोई है लूटने को अब तयार॥
-विनय ओझा 'स्नेहिल '
इस तरह छाया हुआ है उनपे गद्दी का खुमार ॥
अब दुकानों से उधारी दूर की एक बात है-
जब बगल वाले नहीं देते हैं अब हमको उधार ॥
लाँघ पाना या गिरा पाना जिसे मुमकिन नहीं -
हर दिलों के दरमियाँ नफरत की है ऊँची दिवार॥
सैकड़ों बगुलों ने मिल घेरा है एक दो हंसों को-
लगता नामुमकिन है लाना अब सियासत में सुधार॥
खुद की कुर्बानी का जज्बा गुम गया जाने कहाँ-
इस शहर में हर कोई है लूटने को अब तयार॥
-विनय ओझा 'स्नेहिल '
Gazal is not just a simple colection of words, but a balanced approch to the poetry. Gazal is the finest "Vidha" in all kind of poetries. But it is sad that today gazal is beeing mistreated .I am sorry to say my friend, this is no gazal. I appreciate your afferts and interest in poetry, but you have to learn it.
ReplyDeleteYour welwisher Dr. Nafas Ambalvi.
Hi,
ReplyDeletei have seen this site www.hyperwebenable.com where they are providing free websites to interested bloggers.
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sirisha