कविता
झूठ : चार दृश्य
(१ )
जब मैं झूठ बोलता हूँ
तो
लोग कहते हैं -
यह आदमी बडा अच्छा है ।
(२ )
जब मैं झूठ बोलता हूँ
तो
मेरी भाषा में प्रवाह होता है ,
मन में विश्वास ,
स्वर में ओजस्विता
एवं मिठास का
विचित्र सा एहसास
होता है ।
(३)
झूठ के पाँव नहीं होते ,
इसके
पंख होते हैं ,
झूठ उड़ता है ।
(४ )
झूठ :
सच का सौतेला भाई
माँ की कृपा से
प्रगति कर गया है ।
(१ )
जब मैं झूठ बोलता हूँ
तो
लोग कहते हैं -
यह आदमी बडा अच्छा है ।
(२ )
जब मैं झूठ बोलता हूँ
तो
मेरी भाषा में प्रवाह होता है ,
मन में विश्वास ,
स्वर में ओजस्विता
एवं मिठास का
विचित्र सा एहसास
होता है ।
(३)
झूठ के पाँव नहीं होते ,
इसके
पंख होते हैं ,
झूठ उड़ता है ।
(४ )
झूठ :
सच का सौतेला भाई
माँ की कृपा से
प्रगति कर गया है ।
अरे महराज इ तो लग रहा है कि आपके ऊपर त्रिलोचन जी का भूतवा चढ़ गया है। वइसे अच्छा है। इसे रहने ही दीजिए। आगे और भी इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteमहराज भुतवा के ऊपर अब और भुतवा का चढ़ेगा? बिना भूत बने ई सब होता है का ? फिर भी धन्यवाद .
ReplyDeletemaharaj Bhutwa par paretwa to chad hi sakta hai, waise main to paret hoon hi, awasyak ho to ....
ReplyDeleteashok
it is nice but one thing is not clear who is the father of both the truth and the false
ReplyDeletealok