ग़ज़ल
हमे एक जगह भारतेंदु जी की ग़ज़ल मिली और जान कर ताज्जुब हुआ कि वे इस विधा मे भी लिखते थे । इस लिए देखें तो हिन्दी कवियों द्वारा भी इस विधा का इस्तेमाल पहले से होता आ रहा है .इसी लिए उसे यथावत पेश कर रहा हूँ ताकि आप लोग भी इसे पढ़ सकें-
"फिर बहार आई है, फिर वही सागर चले ।
फिर जुनूँ ताजा हुआ, फिर जख्म दिल के भर चले।।
तिरुए दीदार हूँ उस अब रूए खमदार का,
क्यों न गर्दन पर मेरे रुक-रुक के यों खंजर चले।
माल दुनिया वक्ते रेहतल सब रहा बालाए ताक,
हम फकत बारे गुनाह को दोष पर लेकर चले।
खाकसारी ही है माजिब सखलंदी की मेरे,
काट डालूँ सिर अगर मनजूँ मेरा तनकर चले।
मौत पर मेरे फरिश्ते भी हसद करने लगे,
दोश पर अपने मेरा लाश वो जब लेकर चले।
दागे दिल पस पर सूरते लाला मेरा तमजा हुआ,
वह चढ़ाने के लिए जब फूल मसकद पर चले।
खानए जंजीर से एक शोरगुल बरपा हुआ,
दो कदम भी जब दरे जिंदा से हम बाहर चले।
दम लबों पर है तुझे मुतलक नहीं आता दयाल,
काम अब तो खंजरे खूँख्वार गर्दन पर चले।
इस कदर है जाकै ताली हम पै फुरकत में तेरी,
बैठ जाते हैं अगर दो गाम भी उठकर चले।
गर्दिशे किस्मत से हम मायूस होकर ऐ 'रसा',
कूचए जानाँ में मिस्ले आस्माँ फिर कल चले।"
- भारतेंदु हरिश्चंद
प्रस्तुति - विनय ओझा 'स्नेहिल '
"फिर बहार आई है, फिर वही सागर चले ।
फिर जुनूँ ताजा हुआ, फिर जख्म दिल के भर चले।।
तिरुए दीदार हूँ उस अब रूए खमदार का,
क्यों न गर्दन पर मेरे रुक-रुक के यों खंजर चले।
माल दुनिया वक्ते रेहतल सब रहा बालाए ताक,
हम फकत बारे गुनाह को दोष पर लेकर चले।
खाकसारी ही है माजिब सखलंदी की मेरे,
काट डालूँ सिर अगर मनजूँ मेरा तनकर चले।
मौत पर मेरे फरिश्ते भी हसद करने लगे,
दोश पर अपने मेरा लाश वो जब लेकर चले।
दागे दिल पस पर सूरते लाला मेरा तमजा हुआ,
वह चढ़ाने के लिए जब फूल मसकद पर चले।
खानए जंजीर से एक शोरगुल बरपा हुआ,
दो कदम भी जब दरे जिंदा से हम बाहर चले।
दम लबों पर है तुझे मुतलक नहीं आता दयाल,
काम अब तो खंजरे खूँख्वार गर्दन पर चले।
इस कदर है जाकै ताली हम पै फुरकत में तेरी,
बैठ जाते हैं अगर दो गाम भी उठकर चले।
गर्दिशे किस्मत से हम मायूस होकर ऐ 'रसा',
कूचए जानाँ में मिस्ले आस्माँ फिर कल चले।"
- भारतेंदु हरिश्चंद
प्रस्तुति - विनय ओझा 'स्नेहिल '
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