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Showing posts from March, 2008

Some pages of a torn- diary (part-2 )

Some pages of a torn- diary (by alok nandan, dedicated to a Nightingale) (Here is some next pages) 19 March Today I met one of my old professors. He was a socialist leader but now he has changed his religion. He has accepted Budhism. All his dress has changed… He looked like a monk, a devil monk. Earlier he would abuse the whole Hindu system and its Gods and Godesses, and even today he was abusing them much confidently. Before accepting Budhism he was a proclaimed Marxist, and was very much hopeful for an upcoming revolution. Earlier somewhere I was highly fascinated by him, but now I can say he is a fool, He neither understands Hindusim, nor Marxism and nor even Budhism.I told him to do some constructive works and he started abusing me. He was planning to go to China. I wish he must be shoot there, he is a alive hell ! Always talk about destruction. 20 March Today two young British men came at our English Institute. They were invited by me. During conversation one of them commente

Some pages of a torn-diary

(by alok nandan, dedicated to a Nightingale) 18 January It was a cold evening, and I was in need to smoke. I just came outside of my hut and went to roadside. Buying three navy-cuts and a match box I was walking on the road, I love roads very much, especially the open and endless road. I went ahead and ahead smoking and watching the people. All of sudden I saw a board of an English speaking course. I felt strong desire to teach English. I entered into the institutes and met the young director and asked him to allow me to take a class. He was surprised but understood my mind and permitted me to enter into the class. I started from the history of English, and explained before them how French literature is more interesting and superior than English literature. I tried my level best to prove that if Nepolian Bonapart had won England, today we would have learnt French not English. Masses always follows the rulers and this is the universal truth.All the student were surprised to listen me,

आप किस गड्ढे में हैं?

सलाहू अड गया है. उसने अभी-अभी मुझसे फोन करके कहा है, 'देखो भाई! मै तो गड्ढे मे गिरूंगा और अब यह जिम्मेदारी तुम्हारी है कि मेरे लिए गड्ढा खोजो. गड्ढा भी कोई ऐसा-वैसा नही. ऐसा गड्ढा ढूंढो जो कम से कम 50 फुट गहरा हो.' मै सचमुच बहुत असमंजस मे हूँ. समझ नही पा रहा हूँ कि ऐसा गड्ढा मै देश की राजधानी मे कहाँ से ले आऊँ. पहले तो मुझे यह लगा कि वह मजाक कर रहा है. लिहाजा मैने उसे उसी लहजे मे जवाब दे दिया. मैने कहा, 'देखो भाई! मुझे तो यहाँ एक ही गड्ढा दिखाई दे रहा है. वह रायसीना की पहाडियो पर है. लेकिन उस गड्ढे मे गिरने की दो शर्ते है. एक तो यह कि तुम चुनाव लडो और फिर वहाँ पहुँचो. इसके लिए अभी तुमको करीब एक साल इंतजार करना पडेगा. क्रिश्न चन्दर के कई प्रिय पात्रो को पिताश्री कहना पडेगा. इसके बाद भी जरूरी नही है कि तुम इस गड्ढे मे गिर ही सको. क्योंकि चुनाव केवल इतने से नही जीता जा सकता. इसके अलावा एक और तरीका है. वह यह कि तुम किसी एमपी से लिखवा कर पास बनवा लो और थोडी देर मे गिर कर वापस आ जाओ.' हैरत है कि मेरी किसी बात का कभी न बुरा मानने वाला सलाहू इस बात पर सख्त बुरा मान गया, 'हर

दूध, दारू और पानी

हाल ही मे होली पर मेरे एक मित्र, जिन्हे हम शोर्ट मे जे डी कहते है, ने एक मेसेज भेजा. मेसेज का लब्बोलुआब यह था कि भाई ऐन होली के दिन हमारे देश मे हजारो करोड गैलन पानी फालतू खर्च कर दिया जाता है. बेशक उनके इस सन्देश से हमे प्रभावित होना ही चाहिए. हम प्रभावित हुए भी. मन मे आया कि इस बार होली न मनाई जाए. फालतू पानी को बर्बाद न किया जाए. लेकिन हकीकत मे ऐसा कभी हो कहा पाता है. अव्वल तो सच यह है कि अगर ऐसे ही हम हिन्दुस्तानी अच्छी लगने वाली हर बात पर अमल करते चले तो खुद हमारी ही मुसीबत हो जाए. यकीन न हो तो कर के देख लीजिए. इस बात से किसी को ऐतराज थोडे ही हो सकता है कि अगर हम सडक पर चल रहे हो तो ट्रैफिक के नियमो का ठीक-ठीक अनुपालन करते चले. पर भला करता कौन है. मैने एक बार कर के देखा है. इसी दिल्ली मे एक चौराहे पर लाल बत्ती जली और मै ठहर गया. इंतजार करने लगा कि भाई बत्ती हरी हो तो मै गियर बदलू और एक्सीलेटर उमेठूँ. इसके पहले कि बत्ती हरी होती जोर की पो-पो टाइप चिग्घाड मेरे कानो मे पडी और मै समझ गया कि किसी महान हस्ती को रास्ता चाहिए. उसकी दरकार यही है कि मै बत्ती के रंग की परवाह न करते हुए आगे

चढत चइत चित लागे न रामा......

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Technorati Tags: indian music , current affairs चढत चइत चित लागे न रामा बाबा के भवनवा...... उपशास्त्रीय संगीत मे अधिक्रित घुसपैठिए के रूप मे प्रतिष्ठित लोकसंगीत की अत्यंत लोकप्रिय विधा के साथ मुश्किल यह है इसे साल मे सिर्फ एक महीने ही गाया-सुना जा सकता है. ऐसा नही कि बाकी समय इसकी धुन बजने से मना कर देती हो, पर इसे ठीक नही समझा जाता. यह वह वक़्त है जब फागुन जाने को तैयार है और चैत बिल्कुल द्स्तक ही दे रहा है. ऐसे समय मे कही चैता की धुन भी भोजपुरिया कान मे पड जाए तो सीधे दिल मे उतरती चली जाती है. ऐसे समय मे होरी और चैता दोनो साथ-साथ सुनने का मौका मिले तो भला कौन छोड्ना चाहेगा. कुछ ऐसा ही आज हुआ. मौका था बनारस घराने की प्रसिद्ध शास्त्रीय गयिका पद्मभूषण गिरिजा देवी के सम्मान का. दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर मे सखा क्रिएशंस की ओर से आज उन्हे द ग्रेट मास्ट्रोज़ एवार्ड भेट किया गया. एवार्ड दिया पंडित बिरजू महराज ने और इसी मौके पर अपना गायन प्रस्तुत किया अप्पा यानी गिरिजा देवी की शिष्या मालिनी अवस्थी ने. 'उडत अबीर गुलाल' शीर्षक इस आयोजन का श्रीगणेश उन्होने किया एक ठुमरी से. "नदिय

In search of creative genius in Indian Cinema

In search of creative genius in Indian Cinema (an essay by alok nandan) 'Will is the centre around which all the functions of life moves.' Schopenhauer The secret of genius lies in the clear and impartial perception of the object, the essential and the universal. On national theatre or better to say on the international theatre –Indian Film Industry is a place where different minds play with the different tools to produce most famous and popular arts, the film; the moving film; the motion picture. Here all the segments of art - photography, music, acting, dialogue, costume, lyric etc- are complied with the help of scientific discoveries, in field of science everyday new technology is being invented and implemented in order to make the film making process easy and effective. A film is the production of conjugation of science and art. So naturally this field-film making world- demands more and more

बर्बाद गुलिस्ता करने को .....

Technorati Tags: व्यंग्य , satire , hindi literature टी वी वाली ममता जी ने आज अपने ब्लाग पर एक मौजू सवाल उठाया है. वह यह कि क्या वाकई उल्लू के साथ-साथ लक्ष्मी जी आती है? क्या सचमुच जहा उल्लू होते है, वहा लक्ष्मी जी भी होती है? पहली नजर मे अगर अपने अनुभवो के आधार पर अगर बात की जाए तो उनके इस सवाल का जवाब सकारात्मक ही होता है. क्योंकि जहा तक नजर जाती है दिखाई तो यही देता है कि धनवान होने के लिए पढे-लिखे होने की जरूरत नही होती है. इसका पहला उदाहरण तो यह है कि सारे पढने-लिखने वाले लोगो का इरादा कम से कम भारत मे तो एक ही होता है और वह अच्छी से अच्छी नौकरी हासिल करना. यानी नौकर बनना. इसी सिलसिले मे एक शेर भी है : बी ए किया नौकर हुए और मर गए ....    सुनते है कि हिन्दुस्तान मे कभी ऐसा भी समय था जब पढने-लिखने का अंतिम उद्देश्य नौकरी करना नही होता था. तब शायद नौकरी के लिए पढाई जरूरी नही थी. लेकिन जब से हम देख रहे है तब से तो नौकरी के लिए पढाई जरूरी नही, अनिवार्य है. बल्कि पढाई का एक ही उद्देश्य रह गया है और वह है नौकरी करना. जितनी अच्छी पढाई उतनी अच्छी नौकरी. पर अब तो यह भी जरूरी नही रह गया ह

हमारा और गिल साहब का हाकी प्रेम

Technorati Tags: खेल , sports Technorati Tags: satire , hindi literature , व्यंग्य हाकी के  खेल से मुझे बहुत प्यार है. करीब-करीब उतना ही जितना गिल साहब को या शाहरुख खान को. यह दावा तो मै नही कर सकता कि तभी से जब से इन दोनो स्टारो को है, पर इतना तो मै दावे के साथ कह ही सकता हू मुझे भी हाकी के उसी तत्व से प्रेम है, जिससे इन दोनो महानुभावो का है. हाकी के प्रति सम्वेदनशील हर व्यक्ति का प्रेम सही पूछिए तो हाकी के उसी तत्व से है. यह तत्व है हाकी स्टिक. जी हा! यकीन मानिए, हाकी के खेल से जुडे मूढ्मति लोगो ने इस तत्व की बडी उपेक्षा की है. यह बात केवल हिन्दुस्तानी हाकी चिंतको के साथ हो, ऐसा भी नही है. अव्वल तो उपेक्षा का यह आरोप दुनिया भर के हाकीवादियो पर वैसे ही यूनिफार्मली सही है जैसे दुनिया भर के राजनेताओ पर चरित्रवान होने की बात. क्रिकेट के लोगो ने इस बात को समझा और नतीजा सबके सामने है. उन्होने बाल से ज्यादा बैट पर ध्यान दिया. उनकी यह रीति हमेशा से चली आ रही है. आज भारत और पाकिस्तान से लेकर आस्ट्रेलिया तक क्रिकेट रनो और ओवरो के लिए उतना नही जाना जाता जितना विवादो के लिए.  वैसे भी खेल के ल

कफ सिरप पीजिए, क्योंकि ये 1000 करोड़ रु का बिजनेस है

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कफ सिरप यानी वो दवा जिससे दुनिया की किसी बीमारी का इलाज नहीं होता। दुनिया का हर डॉक्टर जानता है कि खांसी-जुकाम जल्द ठीक करने में कफ सिरप की कोई भूमिका नहीं है। ओवर द काउंटर कफ सिरप लेना खासकर बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है। यूएस एफडीए कह चुका है कि दो साल से छोटे बच्चों को देना उनके लिए जानलेवा हो सकता है। यूएस एफडीए की 17 जनवरी 2008 को जारी वार्निंग पढ़ें- "The FDA strongly recommends to parents and caregivers that OTC cough and cold medicines not be used for children younger than 2," said Charles Ganley, M.D., director of the FDA's Office of Nonprescription Products. "These medicines, which treat symptoms and not the underlying condition, have not been shown to be safe or effective in children under 2." 2 साल से बड़े बच्चों के बारे में एफडीए की स्टडी का नतीजा आना है लेकिन उसकी साफ राय है कि "Understand that these drugs will NOT cure or shorten the duration of the common cold" भारत में सेहत को लेकर अज्ञान और डॉक्टर को बिना वजह भगवान मानने की प्रव

A letter to Miss X

(A story by alok nandan) I am not Voltaire; and you are not Marquise Du Chatelet. But to me you are not less than Chatelet, although we have not lived together, studying Newton's Principia, physics and history, playing in a private theatre like them. Physically we are two poles apart, but still your influence is within me, something very deep in the inner most part of my heart and over my creative mind. I wept bitterly, but not before you, when you told that you are in love with someone. You are a brilliant woman, and you have a powerful intellect.When you told me that you were translating Vergil I was surprised as I had already read that the same work had been by Chatelet when she was in her sweet sixteen. Do you remember how I reacted then? I told, 'For a long time I have been looking for Chatelet.' 'Chatelte!' exclaimed you. 'Marquise Du Chatelet, whom Voltaire would love and she dominated him sixteen years,' said I, looking into your life full eyes. W

बेचारा सेंसेक्स और चार्वाक

बेचारा सेंसेक्स! जब देखिए तब औंधे मुंह गिर जाता है. एक बार बढ़ना शुरू हुआ था पिछले साल. ऐसा दौडा, ऐसा दौडा... कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस वक्त तो ब्लू लाइन और डीटीसी की बसें भी फेल हो गईं थीं इसके आगे. लग रहा था जैसे ब्रेक ही फेल हो गया हो. कोई रोकना चाहेगा भी तो शायद न रुके. यह जानते हुए भी कि ब्रेक फेल हो जाने के बाद किसी गाडी का क्या हाल होता है हमारे जैसे तमाम नौसिखिये बाबू लोग भी पहले निवेशक बने, फ़िर मौका ताक कर ट्रेडरगिरी की ओर सरकने लगे थे. तब तक तो अईसा झटका लगा जिया में कि पुनर्जन्मे होई गवा. जब यहाँ सेंसेक्स बढ़ रहा था, तब दुनिया भर का बाजार गिर रहा था. अमेरिका से लेकर चीन तक सब परेशान थे. तब इहाँ के एक्सपर्ट लोग इसके गिरने का कौनो अंदाजा नहीं लगा रहे थे. सबको यही लग रहा था कि बस बढ़ रहा है और बढ़ता ही जाएगा. चढ़ रहा है और चढ़ता ही जाएगा। 16 हजार था, 18 हजार हुआ, फ़िर 20 हजार हुआ, फ़िर 22 हजार हुआ. भाई लोगों को लगा कि अब ई का रुकेगा. अब तो बस बढ़ता ही चला जाएगा. 24 हजार होगा, फ़िर 26 हजार होगा. चढ़ता ही जाएगा सर एडमंड हिलेरी की तरह. एकदम एवारेस्ते पे जा के दम लेगा. अपने

Fight! but for whom ?

(A short story by alok nandan) The train was running fast. He was sitting at the window. Two people were eating some chips before him and he was trying to avoid them. A person besides him writing something in his diary. Somewhere he felt urgency to write but had no pen and paper. He was hungry for last two days and did not know where the train was going. All his peasants army were crushed by a brutal hand. Most of them had been arrested or killed. Two days ago he was fighting in a jungle for a revolution. Along with his comrades he wanted to make a good world, a world free from all exploitations. The train stopped but there was no platform. Some people got off. 'A dead body is laying on the track', some one said loudly. He left his place and followed the voice. Passengers are running to the engine. He, too, went toward it. Before the engine a woman body was laying, naked. It had been cut into two parts. 'It is a brutal death!' 'Perhaps she is pregnant and someone t

अशआर

शेर किसका है मालूम नही. ऐसे ही गालिब-ओ-मीर पर बाते करते आज ये शेर विनय ने सुनाया. जानते वह भी नही कि किसका है. मुझे अच्छा लगा, लिहाजा  आपके लिए भी - दिल मे रहो जिगर मे रहो नजर मे रहो सब तुम्हारे ही लिए है चाहे जिस घर मे रहो अब ये हाल है दर-दर भटकती फिरती है मुसीबतो से कहा मैने मेरे घर मे रहो. Technorati Tags:

बाबा का बुल और बियर

Technorati Tags: satire , hindi literature मैने अभी बियर नही पी रखी है और हाल-फिलहाल ऐसा कोई इरादा ही है. वैसे मै बियर पीना पसन्द भी नही करता. जून-जुलाई के महीने मे, जब ज्यादातर लोग बियर चाहे इस या उस ब्रैंड का कोल्ड ड्रिंक पीना पसन्द करते है, तो भी मै पीने के लिए सादा पानी या फिर रम ही पसन्द करता हू. मुझमे और गोसाई जी मे मूलभूत समानता यही है कि वह दुनिया को राममय देखना पसन्द करते थे और मै उसे रममय देखना पसन्द करता हू. हालांकि मास्टर कह्ता है कि यह करीब-करीब उतना ही बडा फर्क है जितना कि ग्राम प्रधान और प्रधानमंत्री होने मे है. मैने कई बार उससे अपना मंतव्य स्पष्ट करने के लिए कहा तो उसने बडी मुश्किल से एक बार सिर्फ इतना ही कहा कि ग्राम प्रधान होने के लिए चुनाव जीतना जरूरी होता है. अब मै कानून तो जानता नही. मै यह बात समझ नही पाया कि प्रधान मंत्री बनने के लिए ऐसा जरूरी होता है या नही, पर मुझे लग्ता है कि शायद यह जरूरी नही है. वैसे भी देश मे कुछ तो ऐसे पद होने ही चाहिए जिनके लिए अयोग्यता ही सब्से बडी योग्यता मानी जाए. ताकि कोई भी ऐरा-गैरा नत्था-खैरा लाभ का पद जैसा मस्ला तो न उठा सके. वैसे

No-smoking

(A short story by alok nandan) Sapana was very much busy with her up coming programme about no-smoking. The chief guest had already come and all the technicians were engaged to have there tools in right positions. Everything was being prepared in hurry in the newsroom. She glanced herself in a handy-mirror and looked to the camera man. 'Are you ok, madam?.' asked the camera man. 'Yes,' she answered and looked to the chief guest Batra.' Mr. Batra ! Are you ready?' 'Yes' he said politely. The countdown started. five…four…three…two…one..zero. 'You all are welcome in hour special show no-smoking. People all around the globe are very much addicted with dangerous smoking habits. At first I would like to go through the latest WHO report of smoking…and then will talk to the exert and today's chief guest Mr Batra who would explain the horror of smoking….,' she started to explore her screen story confidently. She was a perfect TV journalist. One after

condom

(A story by alok nandan, dedicated to a story narrator) Manthan had been drinking for lost four hours. He was trying to make his mind free from the memory of Prerana. But it was an unsuccessful attempt. Again and again she appeared before his eyes with her pleasant smile. From the bottom of his heart he loved her but somewhere in his mind there was a doubt. One of his friends had told him that she was in love with a young actor and was going to marry with him soon. Although his heart not ready to accept it but his mind was thinking over it again and again. There was a conflict between his heart and mind, the brutal conflict, and he was restless. 'She is a bitch, she is cheating me. I love her…from the bottom of my heart…and I know she, too, loves me….In spite of it I am not sure about her character…Yes ! she is cheating me…Oh my mind is against her…What should I do? I don't want to loose her…It is my sixth love….Earlier I have engaged with five girls…And I was in love with all

गीत

कैसा बसंत जीवन की बगिया में कैसा बसंत ? काग संघ छीन लिया कोयल की कूक मंजरियाँ सेक रहीं अनजानी धूप चन्दा को देख, रहा चक्रवाक पूछ बोल प्रिये प्रीति मेरी कहाँ गयी चूक ? खुशियों को छोड़ गए अलबेले कंत जीवन की बगिया में कैसा बसंत ? फूलों को फूंक त्वचा गरमाते लोग शूलों को नित्य नमन कर जाते लोग भ्रमर बने सन्यासी सिखलाते योग कौन नहीं झेल रहा खुद का वियोग ? चोली और दामन में हो गया संघर्ष जीवन की बगिया में कैसा बसंत ? सपनो के सेंध मार हैं माला मॉल डोम बने हरिश्चंद करते सवाल दिग्दिगंत फ़ैल रहा एक महाजाल दुर्योधन नृत्य करे शकुनी दी ताल , तक्षक जनमेजय में दोस्ती बुलंद जीवन की बगिया में कैसा बसंत ?

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