कफ सिरप पीजिए, क्योंकि ये 1000 करोड़ रु का बिजनेस है
कफ सिरप यानी वो दवा जिससे दुनिया की किसी बीमारी का इलाज नहीं होता। दुनिया का हर डॉक्टर जानता है कि खांसी-जुकाम जल्द ठीक करने में कफ सिरप की कोई भूमिका नहीं है। ओवर द काउंटर कफ सिरप लेना खासकर बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है। यूएस एफडीए कह चुका है कि दो साल से छोटे बच्चों को देना उनके लिए जानलेवा हो सकता है।
यूएस एफडीए की 17 जनवरी 2008 को जारी वार्निंग पढ़ें-
2 साल से बड़े बच्चों के बारे में एफडीए की स्टडी का नतीजा आना है लेकिन उसकी साफ राय है कि
भारत में सेहत को लेकर अज्ञान और डॉक्टर को बिना वजह भगवान मानने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल है कि इस बारे में सवाल भी नहीं उठता कि जिस देश में हर साल साढ़े तीन लाख लोग टीबी से मरते हैं वहां सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा का नाम कोरेक्स क्यों है। देश में एक महीने में कोरेक्स की सेल से फाइजर को साढ़े तेरह करोड़ रुपए मिलते हैं। दवा की मासिक सेल की रिपोर्ट इसी हफ्ते आई है। कोरेक्स है तो प्रेस्क्रिप्शन ड्रग पर इसे आम तौर पर लोग ओवर द काउंटर ही खरीदते हैं।
क्या इस स्थिति को बदलने में भारत सरकार की इसमें कोई भूमिका हो सकती है। मेरी राय है - नहीं। इस बारे में मेरा एक लेख आप दैनिक जागरण में पढ़ सकते हैं।
यूएस एफडीए की 17 जनवरी 2008 को जारी वार्निंग पढ़ें-
"The FDA strongly recommends to parents and caregivers that OTC cough and cold medicines not be used for children younger than 2," said Charles Ganley, M.D., director of the FDA's Office of Nonprescription Products. "These medicines, which treat symptoms and not the underlying condition, have not been shown to be safe or effective in children under 2."
2 साल से बड़े बच्चों के बारे में एफडीए की स्टडी का नतीजा आना है लेकिन उसकी साफ राय है कि
"Understand that these drugs will NOT cure or shorten the duration of the common cold"
भारत में सेहत को लेकर अज्ञान और डॉक्टर को बिना वजह भगवान मानने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल है कि इस बारे में सवाल भी नहीं उठता कि जिस देश में हर साल साढ़े तीन लाख लोग टीबी से मरते हैं वहां सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा का नाम कोरेक्स क्यों है। देश में एक महीने में कोरेक्स की सेल से फाइजर को साढ़े तेरह करोड़ रुपए मिलते हैं। दवा की मासिक सेल की रिपोर्ट इसी हफ्ते आई है। कोरेक्स है तो प्रेस्क्रिप्शन ड्रग पर इसे आम तौर पर लोग ओवर द काउंटर ही खरीदते हैं।
क्या इस स्थिति को बदलने में भारत सरकार की इसमें कोई भूमिका हो सकती है। मेरी राय है - नहीं। इस बारे में मेरा एक लेख आप दैनिक जागरण में पढ़ सकते हैं।
वैसे इन दवाओं का इस्तेमाल ज्यादातर लोग जान-बूझ कर नशे के लिए ही करते हैं. हैरत है, वे सारी दवाएं जो दूसरे देशों में प्रतिबंधित हैं, हमारे यहाँ धड़ल्ले से बिक रही हैं.
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