आप किस गड्ढे में हैं?
सलाहू अड गया है. उसने अभी-अभी मुझसे फोन करके कहा है, 'देखो भाई! मै तो गड्ढे मे गिरूंगा और अब यह जिम्मेदारी तुम्हारी है कि मेरे लिए गड्ढा खोजो. गड्ढा भी कोई ऐसा-वैसा नही. ऐसा गड्ढा ढूंढो जो कम से कम 50 फुट गहरा हो.'
मै सचमुच बहुत असमंजस मे हूँ. समझ नही पा रहा हूँ कि ऐसा गड्ढा मै देश की राजधानी मे कहाँ से ले आऊँ. पहले तो मुझे यह लगा कि वह मजाक कर रहा है. लिहाजा मैने उसे उसी लहजे मे जवाब दे दिया. मैने कहा, 'देखो भाई! मुझे तो यहाँ एक ही गड्ढा दिखाई दे रहा है. वह रायसीना की पहाडियो पर है. लेकिन उस गड्ढे मे गिरने की दो शर्ते है. एक तो यह कि तुम चुनाव लडो और फिर वहाँ पहुँचो. इसके लिए अभी तुमको करीब एक साल इंतजार करना पडेगा. क्रिश्न चन्दर के कई प्रिय पात्रो को पिताश्री कहना पडेगा. इसके बाद भी जरूरी नही है कि तुम इस गड्ढे मे गिर ही सको. क्योंकि चुनाव केवल इतने से नही जीता जा सकता. इसके अलावा एक और तरीका है. वह यह कि तुम किसी एमपी से लिखवा कर पास बनवा लो और थोडी देर मे गिर कर वापस आ जाओ.'
हैरत है कि मेरी किसी बात का कभी न बुरा मानने वाला सलाहू इस बात पर सख्त बुरा मान गया, 'हर बात को मजाक के अन्दाज मे लेना बन्द करो. वरना ज़िन्दगी चौपट हो जाएगी. कभी-कभी गम्भीर भी हो जाया करो. मै जो कह रहा हूँ उसे गौर से सुनो और सुबह तक हर हाल मे गड्ढे का इंतजाम करो.'
मुझे लग गया कि सलाहू वास्तव मे गम्भीर है और वह सचमुच गड्ढे मे गिरना ही चाहता है. पर वह ऐसा क्यो करना चाहता है, यह बात अभी भी मेरी समझ मे नही आई थी. मैने पूछ ही लिया, 'अच्छा तो यह बताओ कि यह ज़रूरत तुमको अचानक क्यो पड गई? क्या भौजाई से कुछ गड्बड हो गई है? आखिर तुम क्यो खुदकुशी पर आमादा हो? अगर ऐसी कोई बात हो तो बताओ. मै अभी तुम्हारे घर आ जाता हूँ. मियाँ-बीवी मे तकरार होती ही रह्ती है. अव्वल तो होती ही रहनी चाहिए, पर उसे इस हद तक बढने देना नही चाहिए कि खुद्कुशी की नौबत आ जाए. खुद से झगडा न सुलट सके तो दोस्तो की मदद ले लेनी चाहिए.'
पर सलाहू मेरी बात पर और बिफर पडा, 'अबे खुदकुशी करे मेरे दोस्त. मै क्यो खुदकुशी करने लगा? मुझे तो बस गड्ढे मे गिरना है, मरना थोडे ही है. इसके बाद मुझे निकालना होगा और वह जुम्मेदारी भी तुम्हारी.'
उसकी इस बात ने मेरा बीपी और बढा दिया, 'अबे मेरे जैसा सिकिया पहलवान आदमी जो खुद गड्ढे मे झांकते हुए भी डरता है वह तुम्हे क्या खाक निकालेगा?'
'अरे बेवकूफ तुम्हे कौन कह रहा है निकालने के लिए?' सलाहू गुर्राया, 'तुम कितने हिम्मतवर हो ये तो मै जानता ही हूँ.'
'फिर?'
'तुमको करना बस ये है कि सेना बुलानी है. और सेना कैसे आएगी, यह भी लो मुझसे ही जान लो.'
'कैसे आएगी?'
'सुनो तुम बस ये करोगे कि पहले गड्ढा मेरे लिए गड्ढा ढूंढोगे. फिर तुम खुद सहाफी हो ही. तो इलेक़्ट्रानिक मीडिया मे तुम्हारे कई दोस्त भी है. तो फिर उनमे से किसी एक को इनफोर्म कर दोगे. इसके पहले कि मै गड्ढे तक पहुंचूँ वे भी अपने-अपने ओबी वैन ले कर निकल लेंगे और जब मै गड्ढे मे गिरूंगा तो वे भी पहुंच जाएंगे. फिर वे लाइव टेलीकास्ट शुरू करेंगे. इसके बाद पहले तो पुलिस आएगी. लेकिन वह कुछ कर तो पाएगी नही. लिहाजा फायर ब्रिगेड आएगी. वह भी नाप-जोख लेने के अलावा कुछ और नही कर पाएगी. फिर सेना आ जाएगी. अब सेना हार तो मान सकती नही. उनके ताबूत तक के पैसे चाहे कोई पटवारी खा जाए, पर उन्हे अपनी जान की भी कीमत पर देश तो बचाना होगा. उस वक़्त चूंकि टीवी चैनल मेरे दर्द का लाइव टेलीकास्ट कर रहा होगा, लिहाजा पूरे देश की नजरे मुझ पर होंगी. अब जाहिर है, ऐसे हालात मे देश भी मै ही होउंगा. तो मुझे बचाना सेना इकलौता फर्ज होगा. इसलिए वह कम से कम चौबीस और ज्यादा से ज्यादा छत्तीस घंटे मशक्कत करेगी. अब इस दरमियान पूरे देश को गौर फरमाने और बिसूरने तथा मीडिया को दिखाने और छापने के लिए धांसू आइटम मिलेगा. और अपन को जानते हो इससे क्या मिलेगा?'
'क्या?' हक्का-बक्का सा मै उसकी बाते वैसे ही सुन रहा था जैसे कतार का अंतिम आदमी नई आई सरकार के दावे सुनता है.
'मुफ्त की पब्लिसिटी बेवकूफ' उसने बताया, 'जिससे मेरी मरगिल्ली वकालत सिर्फ चल ही नही निकलेगी, जेट की रफ्तार से उडने लगेगी.' साथ ही उसने दुबारा सख्त ताकीद भी कर दिया, 'और सुनो, इसमे कोई लापरवाही नही चलेगी. सुबह तक तुम मुझे हर हाल मे बताओ कि ऐसा गड्ढा कहाँ है और साथ ही अपने किसी इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले साथी को बुला भी लो.'
सलाहू की इस ताकीद के बाद वोट दे चुके भारतीय नागरिक की तरह कुछ देर तक तो मै किंकर्तव्यविमूढ रहा. फिर मैने दिमाग के सातो घोडे खुले छोडे तो उनमे सबसे पहला तो तुरंत दौड कर सब्जी मंडी पहुंच गया. उसने वही से भाव बताते हुए अपने लाइव टेलीकास्ट का निष्कर्ष देना शुरू किया, ' देखिए जी देश का सबसे बडा गड्ढा जो है सो तो यही है.'
इसके पहले कि मै उसके निष्कर्ष का कोई निचोड निकाल पाता, दूसरे ने बहुत जोरदार आपत्ति की. लगभग वैसे ही जैसे किसी निरीह आदमी की सुविधाशुल्करहित फाइल पर सरकारी बाबू जताते है, 'ये ल्लो. कभी किसी तहसील मे आकर देखा है? पटवारी या कानूनगो से कही मिले हो? एक बार आओ देखो तो जानोगे कि इससे बडा गड्ढा दुनिया मे दूसरा नही है.'
तीसरा उसकी बात सुनकर इतनी हिकारत से हिनहिनाया जैसे किसी पढाने वाले मास्टर को देखकर शिक्षा विभाग के अधिकारी और अपने-आप पढने वाले गरीब छात्रो को देखकर गणित-विग्यान के योग्य शिक्षक हिनहिनाते है, 'ससुर के नाती! ये ग्यान का गड्ढा देखा है कभी? पूरा सौर मंडले इसी मे समाया हुआ है.'
इसके पहले कि मै कुछ फैसला कर पाता, मोबाइल फिर घनघनाया. पहले तो मै डरा कि कही ऐसा तो नही कि सुबह हो गई और सलाहू जाग गया हो. पर नही वहाँ नम्बर मेरे पांचवे घोडे का फ्लैश हो रहा था. आंसर वाली कुंजी दबाते ही वह बिफरा, 'अकिल काम करती नही है. जहाँ पाते है वही चार नम्बर को दौडा देते है. कुछ पता भी है क्या हुआ?'
मैने कहा, 'भाई देख मै पहले से ही बहुत परेशान हूँ. अब तू बुझौवल न बुझा. साफ-साफ बता?'
'अरे वो नोएडा के एक थाने मे घुस गया और उसमे गड्ढे की सम्भावना तलाशने लगा. थाने वालो को पता लगा उन्होने उसे पकड कर हवालात मे ठूँस दिया है. उस पर आईपीसी की कई धाराएँ भी लगा दी है. अब गड्ढे से सेना भले किसी को दो-चार दिन मे निकाल ले पर यहाँ से तो उसे शायद ही कोई निकाल सके.'
'अच्छा खैर उसकी छोडो. अभी तुम बताओ कहाँ हो?'
'मेरी चिंता छोडो. मै बडे मजे मे हूँ. असल मे मै यहाँ एक टीवी चैनल मे आ गया था कि पुलिस की ज्यादती के खिलाफ उन्हे बताने से कुछ मदद मिल जाएगी. पर उन्होने तो अभी मुझे ही पकड लिया है. वे कह रहे है कि धाराए और घटना तो बाद मे भी जान लेंगे, पहले आप अपनी बाइट दे दीजिए. इसके बाद वो थाने पर भी चलेंगे और चार नम्बर का भी लाइव टेलीकास्ट करेंगे. भूलना मत तुम. टीवी अभी खोल लो. हमारा वाला लाइव टेलीकास्ट बस अब शुरू ही होने जा रहा है.'
मैने टीवी खोल लिया. पर यह क्या? वहाँ तो चार के बजाय छै नम्बर दिख रहा था. वह किसी कचहरी मे खडा था. एक प्रोफेशनल गवाह से सौदा कर रहा था. इस बात की गवाही देने के लिए कि ब्रह्मांड का सबसे बडा गड्ढा जो है वो वही है. उसे इसके लिए बीस हजार चाहिए थे और छै नम्बर दस हजार से ज्यादा देने को तैयार नही था. तब तक सातवे के हिनहिनाने की आवाज आई. उसका हुक़्म था कि चुपचाप मेरी पीठ पर बैठो और वहाँ चलो जहाँ मै ले चलूँ. मै एक आग्याकारी सवार की तरह बैठ गया. पर यह क्या? उसने मुझे एक जगह ले जाकर पटका और बोला, 'देख ये है इस ब्रह्मान्ड का सबसे गहरा गड्ढा. इसमे जो गिरा वह ऐसा गिरा कि आम आदमी के चरित्र से भी ज्यादा नीचे चला गया.'
मैने नजर दौडाई तो पाया कि यह तो रायसीना हिल्स ही था. पर मै जानता हूँ सलाहू इसे गड्ढा मानने को तैयार नही होगा. मैने सात नम्बर को डपटा, 'इस तरह ऊल-जलूल बाते मत किया करो. वरना कल ही तुम्हारा एडमिशन आलोक पुराणिक के कालेज मे करा दूँगा.'
पर अफ्सोस कि उस पर मेरी बात का असर उलटा हुआ. वैसे ही जैसे जेल मे जाकर बडे माफियाओ पर होता है. उसने मेरे जनरल नोलेज पर ही सवाल उठा दिया, 'तुमको कुछ पता भी है? यह बात तुम्हारे राष्ट्र चाचा तक कह चुके है. जानते हो जब भारत मे पहली बार क्रिषि आधारित योजना बनी तो जरूरत पडी यह जानने की कि हमारे पास देसी खाद कितनी होती है. इसके लिए केन्द्र सरकार ने आंकडे जुटाने की जिम्मेदारी सौपी राज्य सरकार को. राज्य सरकार ने मसला छोड दिया डीएम के सिर, डीएम ने एसडीएम को और एसडीएम ने बीडीओ को. बीडीओ ने वीडीओ यानी विलेज लेवेल वर्कर को, जो अब वर्कर न रह कर अफसर हो गया है और वीडीओ कहा जाने लगा है. कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकला कि हर ग़ांव मे मौजूद गड्ढे गिन लिए जाए और उनके रक्बे का एवरेज निकाल कर सरकार को भेज दिया जाए.
बहरहाल हमारे देश मे हर योजना की नियति है उसके भाग्य का अंतिम फैसला पटवारी करते है. उन्हे अब लेखपाल कहा जाता है. आखिरकार यह काम भी पटवारी साहब के सिपुर्द कर दिया गया. सारे पटवारी साहब लोगो ने अपने-अपने इलाके के एक-एक गांव के एक-एक गड्ढे का रक्बा निकाला और सारे गड्ढे गिन लिए. उनको राउंड फिगर बनाया और जोड कर भेज दिया. अब ये फाइले फिर ब्लाक, तहसील, जिला स्तर की बाधाएँ पार करती-करती दिल्ली आ गई और अंततः जैसी कि इस देश की अधिकतम सौभाग्यशाली फाइलो की नियति है, रायसीना पहाडियो पर पहुंची.
कहने को कुछ भी कह ले, लेकिन इस देश मे पटवारी से बडा अफसर कोई नही होता. यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और उनके मुख्य सचिव भी नही. यह बात आजाद हिन्दुस्तान का पहला प्रधानमंत्री होने के नाते नेहरू जी जानते थे. ये अलग बात है कि उनकी जनरल नालेज भी ठीक-ठाक थी. देश मे कम्पोस्ट के गड्ढो का जो रक्बा निकला, वह पूरे भारत के रक्बे से थोडा सा ज्यादा था. फिर भी नेहरू जी पटवारी जी के ख़िलाफ़ तो बात कर नहीं सकते थे. उन्हें ख़ुद अपने ही ज्ञान पर संदेह हुआ. लिहाजा उन्होंने पूछा कि भाई कोई बताए कि आख़िर मैं किस गड्ढे में हूँ. नेहरू जी यह बात आख़िरकार नहीं जान सके. मैं भी कोशिश कर रहा हूँ कि जान सकूं, पर जान नही पाया हूँ. अब देखिए देश तो पूरा गड्ढा ही है. अब आप भी जरा पता लगाइए कि आख़िर आप किस गड्ढे में हैं. अगर वह गड्ढा 50 फुट से ज्यादा गहरा हो तो मुझे बताए. ताकि मैं सलाहू को बता दूँ और वह उसमें जाकर गिर जाए. जल्दी करिए . क्योंकि अभी उसकी लोकेशन किसी टीवी वाले को भी बतानी है.
हम ठीक आपके बगल वाले खड्डे मे पिछले साठ सालो से है ..देखिये अगर कोई हमे कवर करने वाला भी मिल जाये वैसे अब तक जितने मिले सारे खड्डॆ से बाहर निकल गये हम आज भी यही है..एक भारतीय नागरिक
ReplyDeleteअरुण के बाजू के गढ्ढे में हम--बड़ी वाली क्रेन बुलवाईयेगा...!!
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखे हैं.
'रायसीना हिल' के बारे में कुछ तफ़सील देनी चाहिए थी ।
ReplyDeleteउत्तम ।
अरुण भाई
ReplyDeleteमैं आपके लिए अभी एक चैनल को फोनियाता हूँ. वे इंतजाम बना देंगे.
और भाई उड़न तश्तरी जी!
आपको तो ख़ुद ही उड़ना पड़ेगा. कहीं ऐसा न हो सेना वाले भी मना कर दें.
अफलातून जी!
ReplyDeleteआपने बिल्कुल ठीक कहा. मुझे भी ऐसा लगा था, पर मैंने केवल अति विस्तार के डर से तफसील नहीं दी. आगे ख़याल रखेंगे.
भाई जी कुछ पैग शैग का जुगाड करादे ,जब तक कोई आये ,समीर भाई ने अपने खड्डॆ से मेरे ख्ड्डॆ के बीझ सुरंग खोद डाली है,और अब उनका हाथ मेरे खड्डॆ मे है,बार बार कभी सक्रू ड्राईवर कभी रम पंच माग रहे है,उनका कहना है कि कैसे भी कुछ तो इंतजाम करो ताकी मै उडने की कोशिश कर सकू...:)
ReplyDeleteअरुण जी!
ReplyDeleteमैंने फिराक साहब की ओर से एक बोतल अभी-अभी सस्ता शेर में भेजी है. उसके दो पव्वे आपको पेश कर रहा हूँ. एक ख़ुद ले लीजिए और अब जब उड़न तश्तरी भाई ने सुरंग बना ही ली है तो दूसरा पव्वा उनकी खातिरदारी में खर्च कर दीजिएगा. वैसे भी दारू अकेले पीने में मजा भी नहीं आता. उम्मीद है दोनों लोग एक साथ उड़ने लगेंगे:
रम हो या विस्की सबका पव्वा है, मगर फ़िर भी
हर कोई चाहता है यहाँ पूरी बोतल फ़िर भी
हजार बार दारू का ठेकेदार इधर से गुजरा है
हजार बार खाली रहा मेरा सागर फ़िर भी
ठीक बात है जी। गर्त में गये तो क्या हुआ? प्रिंस तो बनेंगे!
ReplyDeleteसही है... सरकार ने कमीशन बना दिया है..यह जानने के लिए कि देश में उतने हैण्ड पम्प लगे, जितने गड्ढे खोदे गए..
ReplyDeleteशिव जी
ReplyDeleteकिसी तरह जुगाड़ भिदाइये प्लीज़. बस इतना करिये कि हम-आप भी इस कमीशन में आ जाएं. फ़िर तो अपने आप इतने नोट बरसने लगेंगे कि चिंता की कोई जरूरत ही नहीं रह जाएगी.
गड्ढे में पड़े खड़े गढ्ढे का भूगोल नापने की यह अदा भी खूब रही ...
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