अशआर
शेर किसका है मालूम नही. ऐसे ही गालिब-ओ-मीर पर बाते करते आज ये शेर विनय ने सुनाया. जानते वह भी नही कि किसका है. मुझे अच्छा लगा, लिहाजा आपके लिए भी -
दिल मे रहो जिगर मे रहो नजर मे रहो
सब तुम्हारे ही लिए है चाहे जिस घर मे रहो
अब ये हाल है दर-दर भटकती फिरती है
मुसीबतो से कहा मैने मेरे घर मे रहो.
वाह जी वाह..जिसका भी हो बहुत उम्दा है..आभार.
ReplyDeleteउम्दा भी और
ReplyDeleteदमदार भी
खोलता है
मन के द्वार भी.
बहुत बढिया!!!
ReplyDeleteमुसीबतो से कहा मैने मेरे घर मे रहो.
ReplyDelete********
शेर हमने तो नहीं कहा। पर मुसीबतों से हाउस फुल जरूर है!
बड़े भाई!
ReplyDeleteएक बार कह के देखिए, सब भाग जाएंगी.
acha hai...gurudev,
ReplyDeleteshadi ke baad bhi kya yah kahne ki jaroorat baaki rah jaati hai ki museebaton mere ghar mein raho.
ReplyDeleteHari Shanker Rarhi
भाई रार्ही जी
ReplyDeleteआपकी बात तो सोलहो आने सच है. पर मुश्किल यह है की जिसने यह कहा उसके बारे में मुझे यह नहीं मालूम की वह शादीशुदा है या कुंवारा. पुनश्च, उसने यह शेर शादी के बाद लिखा या पहले ही लिख चुका था.
क्या भइया कही ये आपका दर्द तो नही है . वैसे बहुत खूब
ReplyDeleteअपने दर्द ह! तबे न बुझाइल.
ReplyDeleteभाई सत्येंद्रजी , दर्द पे नाम थोड़े ही लिखा रहता है !समझे तो दर्द आपका ,नहीं तो किसी और का .
ReplyDeleteहरी शंकर rarhi