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Showing posts from April, 2008

ले दनादन ट्वेन्टी-२०

वन-डे ने जब टेस्ट को, टक्कर में दी मात। ट्वेन्टी-ट्वेन्टी ने किया, तब आकर उत्पात॥ तब आकर उत्पात मचा, डी.एल.एफ़ कप में। जुटे धुरंधर देश-देश के नाहक गप में॥ धन-कुबेर इस मेले की रौनक बढ़वाते। फ़िल्मी तारे आकर टी।आर.पी. चढ़ाते॥ चीयर-लीडर थक गये, नाच-नाच बेहाल। चौके-छक्के पड़ रहे भज्जी हो गये लाल॥ भज्जी हो गये लाल, दनादन हार गये जब। जीना हुआ मुहाल, सन्त को मार गये तब॥ सुन सत्यार्थमित्र, ये खेल है गज़ब निराला। भाई के हाथों भाई को पिटवा डाला॥

छोटा कितना दर्जा, बड़ा कितना दुख

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मधुकर उपाध्याय ...औरतों के खिलाफ जुल्म का मसला कितना बड़ा है, मैं यह महसूस करके भौचक्की रह जाती हूं। हर उस औरत के मुकाबले, जो जुल्म के खिलाफ लड़ती है और बच निकलती है, कितनी औरतें रेत में दफन हो जाती हैं, बिना किसी कद्र और कीमत के, यहां तक कि कब्र के बिना भी। तकलीफ की इस दुनिया में मेरा दुख कितना छोटा है।... पाकिस्तान की मुख्तारन माई का ये दुख दरअसल उतना छोटा नहीं है। बहुत बड़ा है। इसकी कई मिसालें इस्लामी देशों में फैली हुई मिलती हैं। एशिया से अफ्रीका तक। ऐसा शायद पहली बार हुआ है, जब इस्लामी देशों की औरतों की बात किताबों की शक्ल में लिख कर कही गई है। इनमें से कई किताबें औरतों की लिखी हुई हैं। मुख्तारन माई की किताब ...इन द नेम ऑफ ऑनर... तकरीबन दो साल पहले आई थी। उसी के साथ सोमालिया की एक लड़की अयान हिरसी अली की किताब आई ...इनफिडेल... और उसके बाद खालिद हुसैनी की किताब ... थाउजेन्ड स्प्लैंडिड सन्स...। इस बीच दो किताबें और आईं। जॉर्डन की एक महिला नोरमा खोरी ने ...फोरबिडन लव... और इरान की अज़र नफ़ीसी ने ...रीडिंग लोलिता इन तेहरान... लिखी। एक और किताब नार्वे की आस्ने सेयरेस्ताद की थी, ...द

बाबू परमानंद नहीं रहे

हरियाणा के पूर्व राज्यपाल और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष रहे बाबू परमानंद का लंबी बीमारी के बाद जम्मू में निधन हो गया। वो 76 साल के थे। बाबू परमानंद का जन्म जम्मू-कश्मीर में आरएस पुरा तहसील के सारोर गांव में हुआ। वो छह बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चुने गए। अपने राजनीतिक जीवन में उनका जुड़ाव नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और बीजेपी से रहा। वर्ष 2000 में वो हरियाणा के राज्यपाल बने और केंद्र में यूपीए की सरकार आने के बाद उन्हें ये पद छोड़ना पड़ा। बाबू परमानंद की एकेडमिक्स और खासकर अर्थशास्त्र में अच्छी दखल मानी जाती थी। हालांकि उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की थी। बाबू परमानंद जम्मू-कश्मीर बैंक और जम्मू रूरल बैंक के निदेशक भी रहे। दलित साहित्य में उनकी गहरी दिलचस्पी थी और वो भारतीय दलित साहित्य अकादमी जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष भी रहे। डोगरी के अलावा हिंदी, इंग्लिश, उर्दू और पंजाबी पर उनका अधिकार था। उन्हें राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी का बीआर अंबेडकर सम्मान भी मिला। ये सम्मान उन्हें तत्कालीन पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन ने प्रदान किया। बाबू परमानंद को हमारी श्रद्धांजलि।

ठेला

प्रयाग विश्वविद्यालय शहर के उत्तरी छोर पर पसरा हुआ है.यहाँ से भी उत्तर बढे तो एक गाँव मिलता है -चांदपुर सलोरी, शहर से बिल्कुल जुड़ा हुआ.पहले तो यह गाँव ही था लेकिन अब सुना है नगर-निगम इस के उस पार तक पसर गया है. अब से करीब बीस साल पहले जब मैं पहली बार प्रयाग आकर इसी गाँव में एक कमरा किराये पर लेकर रहने लगा था तो वहाँ की आबो-हवा बिल्कुल गाँव जैसी ही मिली थी .लेकिन महानगर से जुड़े होने के कारण उस समय भी वहाँ एक डिग्री कॉलेज, लड़के और लड़कियों के लिए दो अलग इंटर कॉलेज और अनेक शिशु मन्दिर खुल चुके थे. बैंक भी था और पक्के मकानों की छतों पर स्टार टीवी की छतरियाँ भी उग आई थी. सब कुछ शहर से मेल खाता हुआ. इलाहाबाद में अपना कॅरिअर सवारने आये असंख्य विद्यार्थी इस गाँव में तब भी रहते थे. किरायेदारी का धंधा यहाँ खूब फल- फूल रहा था. इसी गाँव के नुक्कड़ पर चाय -पानी, शाक-सब्जी और परचून की दुकानों की कतार से अलग एक निराला विक्रेता था- ‘कंठी-बजवा’. लंबे छरहरे बदन पर साठ से उपर की उमर बताने वाली झुर्रियां, पतली, नुकीली सफ़ेद मूछे, लाल डोरेदार आँखों के नीचे झूलती ढीली चमड़ी और गंजे सिर के किनारों पर बचे सफ़ेद
ब्लॉगर मित्रों, लीजिये, आज उस कुत्ते की कहानी फ़िर बताने का मन कर रहा है जिसके बारे में मैंने तेरह साल पहले एक ‘आंखों देखा हाल’ लिखा था। दरअसल हाल ही में मुझे एक मित्र ने एक विचित्र रहस्य की बात बताई है। इलाहाबाद के छात्रावास में रहते हुए जब मैंने यह आइटम लिखा था तो दीवार-पत्रिका पर लगाते वक्त मैंने कत्तई नहीं सोचा था कि एक सचमुच के कुत्ते पर ईमानदारी से लिखी गई यह कहानी मेरे पड़ोसी अन्तःवासी को इतनी अखर जायेगी कि वो मरने - मारने पर उतारू हो जाएगा। मुझे अब पता चला है कि उस मूर्ख ने ख़ुद को इस कहानी का लक्षित मुख्य पात्र समझ लिया था और मुझे सबक सिखाने कि फिराक में रहने लगा था। अब सौभाग्य से उसके निशाने से बच ही निकला हूँ तो इस कहानी को हूबहू दुबारा पेश करता हूँ। इस उम्मीद में कि कोई यह बतायेगा कि मुझसे लिखने में गलती कहाँ हुई थी। मौन क्यों तू ? कुत्ता भी अजीब जानवर होता है। इसका व्यक्तित्व भी अजीब है। आप पूछेंगे कुत्ते में भी व्यक्तित्व हो सकता है क्या? अजी जनाब ,व्यक्तित्व केवल आदमी में थोड़े ही होता है जानवर में भी हो सकता है (हाँ ,कुत्ते के मामले में यदि कोई भाषाई रूढिवादी चाहे तो इसे

Some pages of a torn- diary (part 7)

(by alok nandan, dedicated to a Nightingale) 11 June The reservation movement has taken a bad shape. The whole society has been divided into two parts- pro-reservation and anti-reservation. Every day the city is being closed either by pro-reservation activists or by anti-reservation activists. Today when I was sitting with round face girl and the yellow eye girl in the canteen of the institute, a group of pro-reservation supporters stormed and broke all the things in the canteen. Anyhow I managed to save both the girls and asked them to go to there homes. Then I came out on the road. People were shouting slogans at the main roundabout of the city. I went there and entered into the crowd. All of sudden police started beating them. The crowd was running away. On the road I stood firmly looking to the police force. I made my pose like Vivekanand. Now all were running but I was still stand there. No one touched me, even police crossed from my left and right, did not dare to hit me, due to

Some pages of a torn- diary (part 6)

(by alok nandan, dedicated to a Nightingale) 22 May I was called for the interview by the Institute of Journalism. I went there and saw a big crowd of boys, girls and there parents. Interview was to be started. I was given my number and asked to wait. In a group some boys were discussing over reservation issue. I listened them without interference. After a little while my name was called out. When I entered into the hall, I saw five persons sitting around a round table. I was offered to sit. One of them asked me, '' Why do you want to be a journalist? '' I answered, ''Mussolini was a journalist in his early age, and I am highly influenced by him, so why I want to be a journalist.'' ''Do you believe in fascism? You are a fascist?,'' he asked. ''I do not believe in any ism? I want to fight for the common people. And I think journalism is the best means.'' Then I was asked to leave the hall. I do not know what will happe

Some pages of a torn- diary (part 5)

(by alok nandan, dedicated to a Nightingale) 11 May Today, in Pokhran Indian has tested its nuclear strength. The whole city is talking about it. I am very much depressed to listen the news. Arms-race is against humanity. The world does not need it, then why arms are being made all around, Why ? Why ?? and Why ??? OH ! My whole body is crumbling. It is 11 pm. I go to the bank of The Ganges. The dark sky spreads all around the river.Some fishersmen are sleeping on the sand. I sit and see the current of the river and try to understand the effect of the explosion. Will this explosion affect my lovely river anyway? If yes, all the policy makers must be removed. I opened my shoes, jeans and shirt and enter into the river and swim nearly half kilometer. Now I am in the middle of the river, feeling the excitement of the clod water. I just go deep and deep. And when I try to turn back, the current of the water pushes me away. Even I am unable to see the banks of the river, because all around

Some pages of a torn- diary (part 4)

(by alok nandan, dedicated to a Nightingale) 25 April. I am reading '' Ten days when the world shook'' by John Read. I am very much surprised to know that he was an American Journalist but was highly interested in Socialist Revolution all around the world. He was not only a reporter but a great revolutionary. This book depicts the real picture of all the groups of Russia, including Bolshevik. He was a dare devil journalist. I love his sprit. Someone has said about him ''If he were not a journalist, he would be a great novelist. And I do believe in his words. All young journalists must read this book. I am highly fascinated with his words and actions. Oh he died young, why? why?? why ??? Now I am thinking to read about all the revolutions of the world. From where I should starts? 26 April I have joined the class, and teaching the students. I told him the whole story about my Delhi Journey, they enjoyed it a lot. I think that I am breaking the chain of the

हिन्दी ब्लॉगर ने छुआ लाख का आंकडा

यह हम सभी हिन्दी ब्लागरों के लिए हर्ष की बात है कि एक हिन्दी ब्लॉगर ने एक लाख हित का आंकडा छू लिया है. हमारे लिए यह ज्यादा हर्ष की बात खास तौर से इसलिए है कि यह उपलब्धि हमने अपनी टांग खिचाई, बेमतलब सिर फुटौवल, अंधी गुटबंदी और ईर्ष्या-द्वेष की अपनी चिरंतन आदर्श वृत्तियों को बरकरार रखते हुए हासिल की है. अपनी मूलभूत परम्परा छोड़ कर तो बहुत लोग तरक्की कर लेते हैं, हमने यह उपलब्धि अपनी परम्परा छोड बगैर हासिल की है. इसी परम्परा को समर्पित है यह लिंक : स्वागत है श्रीमान आपका भर-भर भरें बधाई· कुछ तो मारा भ्रष्ट्राचार ने कुछ मार रही महंगाई हम भी वही बनाते जो दशकों से बना रहीं आपको कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, सीपीएम, सीपीआई हैप्पी पहली अप्रैल

Some pages of a torn- diary (part 3)

(by alok nandan, dedicated to a Nightingale) 14 April Today was Sunday. The director asked me to go with a long drive. I am always fascinated with his driving skill, and specially with his motorbike. He has named it ''Gajraj'' Both of us covered nearly fifty kilometer, I was sitting behind him, and drinking bottles of bear one after another. It was an interesting drive. 16 April It was a late night. And all of sudden I felt strong desire to see the Red Ford of our country. For last two days I had been reading about the story of Delhi. I had only two rupees in my pocket.I went to the Railway station, but was informed the that the last train of Delhi had left the platform. But my natural instincts were provoking me to leave This city as soon as possible. When I came out of the Railway station I saw a running bus. I ran after it without knowing what I was doing. I jumped over it. And within minutes I was on the top of the bus. I was alone there, all around, there was o

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