ये चुनने का हक़ तुम्हे
इष्ट देव सांकृत्यायन 'ये बताओ तुम किससे लुटना चाहोगे?' 'क्या मतलब?' 'मतलब! अभी तुम्हे मतलब समझाना पडेगा?... हा-हा-हा....' 'हा भाई! आपकी बात मेरी समझ मे नही आई..' 'हा-हा-हा ... बहुत भोले हो. अच्छा चलो हम तुम्हे एक बार समझा ही देते है. देखो हम सात है और तुम एक. रास्ता सुनसान है और भरपूर अन्धेरा. तो अब लुटना तो तुम्हे है, इसमे कोई दो राय नही है. तुम्हारे पास न लुटने का कोई विकल्प नही है. विकल्प सिर्फ यह है कि तुम किससे लुटोगे. कैसे लुटोगे, यह भी इसी बात पर निर्भर है कि तुम किससे लुटोगे. चूकि हम कभी किसी को भी उसकी मर्जी के खिलाफ नही लूटते, लिहाजा तुम्हे यह विकल्प दे रहे है कि तुम खुद चुन लो कि तुम्हे किससे लुटना है. तो बोलो तुम्हे किससे लुटना है?' 'लेकिन.....' 'देखो भाई, लेकिन-वेकिन कुछ नही चलेगा. हम किसी को इतने सवाल पूछने का मौका भी नही देते है. पर तुम चूकि भोले लगते हो ... ऐसा लगता है कि तुम पहली ही बार हमारे ज़द मे आ रहे हो, लिहाजा हम तुम्हे यह भी बता देते है कि हममे से कौन कैसे लूटता है. अब देखो, ये सफेद पैंट वाले चाचा है...