अल्लाह की मर्जी का आउटसोर्स
इस्लामाबाद में धमाका हुआ, होना ही चाहिए था. जरदारी साहब गुस्साए, उन्हें गुस्साना ही चाहिए था. पर उनके गुस्साने में एक गड़बड़ हो गई. जैसा कि अकसर होता है. इसीलिए कहा जाता है- गुस्सा बुरी बात है. पर अब तो साहब गुस्सा चुके थे और इस गुस्साने का कुछ किया नहीं जा सकता था. गुस्से में वह वह बोल गए जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था. उन्होंने कहा- हम इन कायराना हमलों से नहीं डरेंगे.
'तो मत डरिए, आपको डरने के लिए कहा ही किसने? पर जनाब! इसे कायराना तो मत कहिए. अभी कल तक आप और आपके रकीब इन्हें महान लोगों में गिना करते थे. आपकी नजर में ये वे लोग थे जो दीन के लिए और दूसरे देशों की दबी-कुचली अवाम के लिए बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे. ये अलग बात है कि अपने मुल्क के अवाम की फिक्र न तो आपको हुई, न आपके पहले के हुक्मरान को हुई और उसे दबाने-कुचलने के लिए आपने और आपके पुराने हुक्मरान ने इनका बेसाख्ता इस्तेमाल कर बेहिसाब सबाब लूटा.'
हमारे गांव के जुम्मन मियां ने एकदम तुरंत प्रतिक्रिया दी. जुम्मन मियां की आदत है, वह तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं, विपक्ष की तरह. सत्तारूढ़ दल की तरह कान में तेल डाले बैठे रहना या सार्वजनिक स्थानों पर प्लांटेड बमों की तरह माकूल वक्त का इंतजार उनसे नहीं हो पाता है.
यहां एक बात साफ करते चलें कि जेब भारत सरकार के खजाने की तरह खाली होते हुए भी यह मान लेना कि धन करोड़ है, केवल बीजगणित के विद्वानों का ही जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है. गिरहकट को आतंकवादी मानकर ढटिया देने और गैंगस्टर को थाने में आने पर सम्मानित नागरिक मानकर बैठने के लिए ऊंची कुर्सी देने का कानूनी हक भारतीय और पाकिस्तानी पुलिस को भी है. लिहाजा दो या दस ऐसे लोग जिनके बीच दूर-दूर तक बातचीत की कभी कोई संभावना न हो, यह मान लेने का मौलिक अधिकार भारत-पाकिस्तान के साहित्यकारों को होना ही चाहिए कि हॉटलाइन पर या सीधी बातचीत हो रही है. और अब तो खैर, ई चौपाल का दौर है, तो क्यों न मान लें कि जनरल और जरदारी साहब जखनियां के जुम्मन मियां की चौपाल पर ही पधारे हैं.
'ए-ए-ए-ए मियां, जरा सुनिए तो', जनरल साहब ने जरदारी साहब की ओर हाथ दिखाते हुए ललकारा, 'यह मत भूलिए कि आप एक सिविलियन रूलर हैं, यानी कि पोलिटीशिन. हैं! आपको किसी को कायर या बहादुर कहने का कोई हक नहीं है. और इतनी ऊंची आवाज में अभी तक उन लोगों से बात हमने भी नहीं की. वैसे खुद फौजी और आपके पोलिटीशियन होने के नाते मुझे यह बात आपको बिलकुल समझाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, फिर भी समझा देता हूं कि जरा इस बात का खयाल रखिए कि आप कहां हैं और क्या कर रहे हैं. जिन महान लोगों ने यह काम किया है उनके बगैर पाकिस्तान में किसी की सरकार चला नहीं करती है और यह क्यों भूलते हैं कि आपकी सरकार अभी जुमा-जुमा आठ दिन पहले आई भी उन्हीं की फजल से है.'
जरदारी साहब ताड़ गए कि जनरल साहब उन्हें मौत की धमकी दे रहे हैं. उन्होंने तुरंत भाषण के पर्चे का दूसरा वाक्य देखा. जनरल के जवाब में वह यहां माकूल बैठता था. लिहाजा उन्होंने बोला, 'हम पाकिस्तानी मानते हैं कि हमारी मौत अल्लाह के हाथ में है और हम मरने से नहीं डरते हैं.'
'बिलकुल ठीक', जनरल साहब को कोई मौका दिए बगैर जुम्मन मियां ने जरदारी साहब की यह बात वैसे ही लपक ली जैसे जॉन पी रोट्स बाउंड्री से बाहर जाती बॉल लपक लेते थे. उन्होंने सवाल दागा, 'फिर ये बताइए कि आप ये क्यों मानते हैं कि बाकी देशों के लोगों की जान आपके हाथ में है? क्या आपको लगता है कि भुट्टो साहब का दामाद होने के नाते अल्लाह भी आपके मुल्क की तरह आपकी निजी जायदाद है? या अल्लाह ने दूसरे मुल्कों के लिए मौत वाला काम आपको आउटसोर्स कर दिया है?'
'देखिए अब आप अपनी हद से आगे बढ़ रहे हैं जुम्मन मियां', पहले से ही अपनी बेअदबी से खार खाए बैठे जनरल साहब का गुस्सा आखिर फूट ही पड़ा. असल में यह उनके अधिकार क्षेत्र में दूसरे की दखल का मामला जो था. 'आपको शायद पता नहीं है कि ये सब काम हमारा है.खुदा ने ये एजेंसी हमें दी थी. पाकिस्तानी फौज को. फिर फौज ने ये काम आईएसआई को आउटसोर्स किया और आईएसआई ने उसके अलग-अलग कॉल सेंटर बना-बना कर उसे एक्सपोर्ट किया, जहां-तहां.'
'क्या?' जरदारी साहब भौंचक, 'और उसमें सरकार की कोई भूमिका ही नहीं?'
'वाह जनाब वाह!' जनरल साहब ने फिर वैसे ही हाथ चमका कर कहा, 'भूमिका और सरकार की। अरे, बाहर के लोग समझें कि मुल्क में जम्हूरियत भी है इसके लिए कभी-कभी हम आप सियासी लोगों को तशरीफ रखने के लिए कुर्सी मुहैया करा देते हैं, यही क्या कम है?'
'तो आप क्या सोचते हैं, यहां जम्हूरियत आपकी मर्जी से जिंदा है?'
'जी नहीं, हम जानते हैं कि ये आप जैसे जमूरों को बड़ी मन्नतों से मिली नेमत है. पर हम इसे अल्लाह की मर्जी मानते हैं और चलने देते हैं जब तक चल सकती है. वैसे भी हमारे मुल्क में इसकी हैसियत अवैध गर्भ जैसी है, गिरना ही जिसकी तकदीर है. इसलिए हम आपके होने न होने की बहुत फिक्र कभी नहीं करते. हमें तो लगता ही नहीं कि आप हैं भी.'
जरदारी साहब गुस्सा का किस दर्जा बढ़ चुका है, इसका अंदाजा जुम्मन मियां को हो गया था. उनके होंठ फडक़ रहे थे, पर आवाज नहीं निकल रही थी. आंखें लाल हो रही थीं, पर चेहरे का रंग पीला पडऩे लगा था. जनरल साहब ने उनकी यह स्थिति ताड़ ली थी. अब वह शेर की तरह बोले, 'देखिए, अमरीका जा रहे हैं जाइए. बुश साहब मेरे बड़े अच्छे दोस्त हैं. उनको मेरा सलाम कहिएगा. पर एक बात याद रखिएगा. कुछ मुल्क के इधर-उधर की बात करके मत आइएगा. हां उनकी सब बात पर कर दीजिएगा और इम्दाद बटोर लीजिएगा. पर लौट के किसी बात पे अमल की बात मत सोचिएगा. वरना याद रखिए, अभी जो आपने होटल के सामने देखा न, वो सिर्फ ट्रेलर था. एक्सपोर्ट सरप्लस के ऐसे कई ट्रक अभी हमारे पास पड़े हैं.'
जनरल साहब इतना कह कर अंतर्ध्यान हो गए थे. जरदारी साहब सिर से पैर तक पसीना-पसीना हो गए थे और जुम्मन मियां उनके चेहरे में तमाम हिंदुस्तानी नेताओं के चेहरे तलाश रहे थे. ऐसे नेता जो बोल रहे थे - आतंकवाद के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.
इष्ट देव सांकृत्यायन
बहुत बढिया..
ReplyDeleteमजा आ गया पढकर..
वैसे भी हमारे मुल्क में इसकी हैसियत अवैध गर्भ जैसी है, गिरना ही जिसकी तकदीर है. इसलिए हम आपके होने न होने की बहुत फिक्र कभी नहीं करते. हमें तो लगता ही नहीं कि आप हैं भी.'
ReplyDelete........अच्छा तुक मिलाया....अच्छी पोस्ट।
बहुत मजेदार..लेकिन सटीक निशाना!!
ReplyDeleteगिरहकट को आतंकवादी मानकर ढटिया देने और गैंगस्टर को थाने में आने पर सम्मानित नागरिक मानकर बैठने के लिए ऊंची कुर्सी देने का कानूनी हक भारतीय और पाकिस्तानी पुलिस को भी है
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आप ने , आप का लेख भी बिलकुल सटीक हे एक दम से सही.
धन्यवाद
बहुत बिढ़या शब्दिचत्र। बधाई।
ReplyDeletewww.gustakhimaaph.blogspot.com
लगे रहें जुम्मन मियां!
ReplyDeleteबड़ी फसौव्वल है पाकिस्तान में।
ReplyDeleteऔर आप कहां अण्डरग्राउण्ड रहते हैं? इस घटना के बाद ही आये हैं तो शक की सूई घूमती है! :-)
अरे बाप रे! आप तो बड़े ताडू महा पुरूष हैं ज्ञान भइया! पर एक बात का ध्यान रखिएगा. आजमगढ़ गोरखपुर से तो नजदीक है, पर ज्ञानपुर से उतना ही निकट है. और आप आजकल जहाँ हैं वहाँ से सीधी बसें जाती हैं.
ReplyDeletejo neta kahate hai ki aatankwadiyho ko baksha nahi jayega vo pahale unako pakar to le!! netaon ki puri com ko nanga kar diye hai...inake nangi ko dekhkar ulati ho rhai hai..
ReplyDelete'About Me' mein aapke shabdon ne kafi prabhavit kiya. Kahte hain na- 'kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta..'. Blog ke madhyam se aaplogon ke vichar janane ka avsar mil raha hai.
ReplyDeleteअरे भइया, आप तो झुट्ठै जरदरिया के उप्पर खउआए हुए हैं। बेचारे ने अब तो एक साक्षात्कार में मान लिया है कि कश्मीर में लड़ने वाले धर्मयोद्धा नहीं, आतंकवादी हैं। उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि आतंकवाद के चलते ही उसके खुद के बच्चे टूअर हो गए हैं।
ReplyDeleteअरे भाई मेरे! इनके मानने-न मानने का क्या है? आज उन्हें आतंकवादी बता रहे हैं, कल पाकिस्तान का असली सिपाही कहेंगे. यकीन मानिए, जैसे ही आईएसआई ने ज़रा सी आँख दिखाई ये उन्हें ही माई-बाप कहते सुने जाएंगे.
ReplyDelete