यदि संभव हो तो गेस्टापू बनाओ
सडे़-गले हुये एक बर्बर समाज के बीच एक खूबसूरत नौजवान बड़ा होता है, अपने चाचा के धंधे में हाथ बटाते हुये तिजारत की भाषा सीखता है। बाद में एक अमीर विधवा का कारोबार बड़ी मेहनत और लगन से संभालता है। वह अमीर विधवा उसके ऊपर फिदा होती है। उसके साथ शादी करने के बाद उसे दिन प्रति दिन के जीवन की जरुरतों से मुक्ति मिल जाती है।
अब वह अपने अगल बगल के परिवेश को पुरी नंगई में देखता है और आंखे बंद कर सोचता है...बस सोंचता ही जाता है, सोंचता ही जाता है....घंटो, दिनो.. महीनों--वर्षों। लोगों के विकृत जीवन उसकी बंद आंखों में घूमते हैं..बार-बार, लगातार। वह हैलूसिनेशन की स्थिति में आ जाता है...उसे अपने अगल-बगल अनजान सी आवाज सुनाई देती है। पहली बार इस आवाज को सुनकर वह डरता है...अपनी पत्नी को बताता है...उसकी पत्नी उसकी बातों में यकीन करती है और उसे समझाती है इस आवाज को वह लगातार सुने...और समझने की कोशिश करे। बस इसी आवाजा के सहारे वह पैंगम्बर का रूप अख्तियार करता है।
उसके दिमाग में समाज को एक धागे में बांधने का प्रारुप तैयार होता है...उसको अमली जामा पहनाने के लिए उसे तलवार का सहारा लेना पड़ता है...क्योंकि उसे यकीन है कि उसके अगल-बगल बर्बता में डूबे हुये लोग उसकी बात नहीं सूनेंगे। अपनी सोंच को धरती पर उतारने के लिए वह हथियार बंद लोगों की एक फौज तैयार करता है...उनके दिमाग में एकता और समानता की बात कूट-कूट कर भरता है और साथ ही यह भी बताता है कि यह एकता सिर्फ और सिर्फ तलवार से हासिल की जा सकती है। उसके फौज देखते ही देखते धरती के बहुत बड़े भू-भाग को अपने अधिकार में ले लेते हैं और समय के साथ हैलूसिनेशन की अवस्था में कहे गये उसके शब्द एक जिंदा धर्मग्रन्थ का रूप अख्तियार करता है।
पृथ्वी छोड़ने के पहले वह घोषणा करता है कि वह अंतिम बंदा है, जिसके साथ ईश्वर ने अपने रसुल के माध्यम से संवाद स्थापित किया है। अब इन्सान को राह दिखाने वाला कोई नहीं आएगा...और इसी के साथ एक बहुत बड़ी आबादी के अक्ल पर हमेशा के लिए पट्टी बांध देता है। अन्य सभ्यताओं के साथ उसके द्वारा स्थापित व्यवस्था कई धाराओं में बहती है....आज मुंबई शहर में जो कुछ हुआ है, वह इन्हीं धाराओं में से एक है।
मुंबई के रंगमंच पर अभी-अभी जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं, एक अनवरत जारी नाटक के हैं,जिसका क्लामेक्स अपने आप को अंतिम पैंगम्बर घोषित करने वाला नौजवान हैलूसिनेशन की स्थिति में बहुत पहले लिख चुका है। इस नाटक के दायरे में कोई एक देश या सीमा नहीं, बल्कि दुनिया पूरी आबादी आती है...इस नाटक को तबतक चलना है, जबतक पूरी दुनिया उसके हैलूसिनेशन के सामने सिर नहीं झुका देती...इस धारा की सीधी सी फिलॉसफी है या तो सिर झुकाओ या फिर सिर कटाओ।
सभ्यताएं एक दूसरे से टकराते हुये ही आगे बढ़ती हैं...पृथ्वी पर इनसान की कहानी सभ्यताओं के टकराव की कहानी है। नेशन-स्टेट्स की आधुनिक अवधारणा सभ्यताओं के बीच के इस टकराव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दुनिया किसी एक वाद या एक धर्म से चलेगी इससे बड़ी मूर्खता की बात और कुछ नहीं हो सकती। सवाल है इस तरह के वाद पर चलकर आमलोगों को टारगेट बनाने वालों को रोकने का। दुनियाभर के विभिन्न नेशन स्टेट्स अपने-अपने तरीके से इस तरह की खोपड़ी वालों को रोकने के लिए मैकेनिज्म बनाने और उसे सफाई के साथ चलाने में जुटे हुये हैं।
भारतीय नेशन स्टेटे की अपनी खास विशेषताएं और जटिलताएं हैं, इन्हें ध्यान में रखकर ही एक मजबूत मैकेनिज्म को बनाया जा सकता है। लेकिन इस नेशन स्टेट में रहने वाले सभी लोगों को यह स्वीकार करना ही होगा कि अंतिम पैंगम्बर की हैलुसिनेएशन का कट्टरवादी असर इस सभ्यता के वाहकों के एक हिस्से पर मजबूती से है।
सलमान रुश्दी जब सैटेनिक वर्सेज लिखता है तो भारतीय नेशन स्टेट उसकी किताब पर प्रतिबंध लगता है, क्यों ? जबकि यह किताब अमेरिका और ब्रिटेन में धड़ल्ले बिकती है। अंतिम पैंगंबर के हैलूसिनेशन पर तर्क के तलवार तो चलाने ही होंगे।
जो धर्म, चाहे वह कोई भी क्यो न हो, यदि अपने विस्तार के लिए इनसानी खून मांगता है, उसे कब्र में घूसेड़ दिया जाना चाहिए, और घूसेड़ दिया जाएगा। ईश्वर के नाम पर इनसान का खून बहाना,ईश्वर को गाली देना है। यदि कोई ईश्वर और उसके व्यवस्था को बनाने और बनाये रखने के नाम पर खून बहाने की बात करता है, तो एसे लोगों को उसी के हथियार से निपटने की जरूरत है। मुंबई न तो शुरुआत है, न ही मध्य और न ही अंत। अनवरत जारी एक मानवविरोओधी धारा का एक व्यवहारिक पक्ष है। इस धारा को रोकने के लिए वैचारिक स्तर पर खुद पैगंबर के मानवतावादी अनुयायियों को आगे आना होगा, और व्यवाहारिक स्तर पर भारतीय नेशन स्टेट को एक मजबूत मैकेनिज्म बनानी होगी....यदि संभव हो तो गेस्टापू की तरह।
sahmat poorntaya
ReplyDeleteyah gestapu kya cheez hai, isko thoda spasht karie to baat samajh me aae!
ReplyDeletegestapu ka istemal Adolf Hitler ne nation state ke level per kiya tha, ek mashinari ke rup me. yeh ek team ki tarah kam kar raha tha, isaka suchana tartra classic tha...koi bhi Gatana ghatane ke pahale hi ise jankari ho jati thi..bahut hi kam chuk hota tha...Isake uddesh ko lekak bahut sare vivad hai, lekin isaki working style shandar tha....yeh ek super networking tha....jo ghatana ko pahale hi sungh leta tha...Isake sath sabase buri bat. yeh hai ki yeh Hitler ke third Reich se jura huya tha....War jone me bhi isaka classic work hai...even political aur administrative galiyare me bhi isaka callassic work hai...yah ek suchana tantra tha....khuphiya suchana tantra, jo bahut hi majboot tha...isaka gathan classic way me kiya gaya tha.
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