मुंबई में काली हवाओं और टोटको का मायाजाल
मुंबई में काली हवाओं और टोटको का भी खूब मायाजाल है। नीचले तबके की बहुत बड़ी आबादी को ये गिरफ्त में लिये हुये। आधी रात को एक महिला अपने कमरे में चिल्लाने लगती है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा, बहुत दिन के बाद तू मेरी गिरफ्त में आई है। उसके पति की फट कर हाथ में जाती है। शोर मचाकर वह अगल-बगल के लोगों को एकत्र करता है, लेकिन वह महिला काबू ने नहीं आती, मरदाना अंदाज में लगातार चिल्लाती जाती है, तुने मुझे बहुत तरसाया है, आज तुझे कोई नहीं बचा सकता। यह नाटक रात भर चलता है और सुबह उसका पति उस महिला को किसी फकीर के पास ले जाता है। फकीर मोटा माल एठकर उसकी झाड़फूंक करता है। टूटी हुई हालत में वह अपने घर में आती है और बेसुध पड़ जाती है। झाड़फूंक का यह क्रम एक सप्ताह तक चलता रहता है।
शंकर जी के बसहा बैल को लेकर चंदनधारी लोगों के झूंड भी यहां गली-चौराहों में दर-दर भटकते हुये मिल जाएंगे। लोगों के अंदर साइकोलॉजिकल भय पैदा करके उनसे माल खींचना इन्हें खूब आता है। अपनी डफली-डमरू के साथ ये लोग कहीं भी घूस जाते हैं और कुछ न कुछ लेकर ही निकलते हैं। बड़ी चालाकी से लोगों के हाथों में ये लोग तावीज और भभूति पकड़ा कर दो-चार सौ खींच ले जाएंगे।
मरे हुये लोगों से मिलाने वाले तांत्रिकों का धंधा भी यहां खूब फल-फूल रहा है। सड़क किनारे दीवारों पर इससे संबंधित पोस्टर खूब देखने को मिलते हैं। इन्हें बहुत ही आकरषक शब्दों में तैयार किया जाता है, मरे हुये लोगों की आत्मा से मिलाने की गारंटी के साथ।
फिल्म लाइन में भी ऊंचे से लेकर नीचले स्तर पर खूब टोटकेबाजी है। फिल्मों के मुहरत से लेकर रिलीजिंग तक टोटके का खेल हर स्तर पर चलता रहता है। गुरचरण जी अपने टोटके के बल पर फिल्मी दुनिया के लोगों से खूब माल खींच रहे हैं। शाम को लोखंडवाला के अपने फ्लैट में यह दरबार लगाते हैं और रुहानी शक्तियों के सहारे सब का भला करने का दावा करते हैं। अब कितने लोगों का भला हो रहा है यह तो नहीं पता, लेकिन महंगी सिगरेट धूंकते हुये, महंगी गाडि़यों पर इन्हें चलते हुये देखा जा सकता है।
टोटेकेबाजी की सबसे अधिक शिकार मुंबई की बीमार बस्तियां हैं, जहां दवा-दारू के साथ-साथ जीवन की मौलिक आवश्यकताओं का अभाव है। किसी तहर की शारीरिक या मानसिक कष्ट होने की स्थिति में इन बीमार बस्तियों के लोग डॉक्टरों के बजाय पीरो-फकीरों के पास जाना ज्याद पसंद करते है।
यह केवल मुंबई या दिल्ली की बात नहीं है मित्र! सच तो यह है की ये मायाजाल दुनिया भर में है और वस्तुतः इसके पीछे बहुत गहरा मनोविज्ञान काम कर रहा है. उस पर एक मुकम्मिल शोध की जरूरत है. अगर आप गौर से देखें तो पाएंगे की जो देश जितना ज़्यादा विक्सित है वह उतना ही ज़्यादा अन्धविश्वासी और दकियानूस है. आधुनिकता सिर्फ़ उनके कपडों में दिखाई देती है. कपडों के नीचे वे बिल्कुल वैसे ही हैं, जैसे ............
ReplyDeleteजायज चिन्ता है.
ReplyDeleteजब तक दुनिया मै वेबकुफ़ पेदा होते रहै गै इन का धंधा मंदा नही होता....
ReplyDeleteधन्यवाद एक अच्छे लेख के लिये