अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
(अपनी प्रेयसी के लिए)
अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
तुम्हारी आंखों से टपकती थी जिंदगी
और अधखुले होठों से फूल बरसते थे
तुम्हारे गेसुओं की महक
मुझे खींच ले जाती थी परियों के देश में
रुनझून रुनझून सपने,गहरे चुंबन
फिजा में तैरती हुई सर्द हवायें
और इन सर्द हवाओं में तेरी सांसों की गरमी
रफ्ता-रफ्ता बढ़ती हुई जिंदगी
और उफान मारता प्यार का सैलाब
हां दोस्त,तुने मुझसे बेपनाह मोहब्ब्त की
और मैंने भी तुझे हर ओर से समेटा
लेकिन अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
ताज की गुंबदों से निकलने वाली लपटों ने
मेरे जेहन में तेरे वजूद का स्थान ले लिया है
गगनगनाकर निकलती हुई गोलियां और लोगों की चीखे
सड़कों पर फैले हुये खून,और सिसकियों
ने तुझे मेरे दिल से बेदखल कर दिया है
मैं चाहता हूं, तू एक बार फिर सिमटे मेरी बाहों में
और एक बार फिर मैं तेरी गहराइयों में डूबता जाऊं
लेकिन आने वाले समय की पदचाप सुनकर
मैं ठिठक जाता हूं,और शून्य में निहारता हूं
फिर रिसने लगता है खून मेरी आंखों से
तुम डूबती थी मेरी आंखों में,यह कहते हुये
कितनी अच्छी और सच्ची है तुम्हारी आंखे
क्या मेरी आंखों से रिसते हुये खून को तुम देख पाओगी
शायद तुम देख भी लो,लेकिन मैं प्यार का गीत नहीं गा पाऊंगा
मेरे होठों से बस प्रलय नाद ही निकलेंगे,
जो तुम्हे भी बहा ले जाएंगे, एक अनवरत संघर्ष की ओर
वैसे भी तेरे साथ रह कर भी मैं तेरा नहीं रहूंगा
क्योंकि अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
तुम्हारी आंखों से टपकती थी जिंदगी
और अधखुले होठों से फूल बरसते थे
तुम्हारे गेसुओं की महक
मुझे खींच ले जाती थी परियों के देश में
रुनझून रुनझून सपने,गहरे चुंबन
फिजा में तैरती हुई सर्द हवायें
और इन सर्द हवाओं में तेरी सांसों की गरमी
रफ्ता-रफ्ता बढ़ती हुई जिंदगी
और उफान मारता प्यार का सैलाब
हां दोस्त,तुने मुझसे बेपनाह मोहब्ब्त की
और मैंने भी तुझे हर ओर से समेटा
लेकिन अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
ताज की गुंबदों से निकलने वाली लपटों ने
मेरे जेहन में तेरे वजूद का स्थान ले लिया है
गगनगनाकर निकलती हुई गोलियां और लोगों की चीखे
सड़कों पर फैले हुये खून,और सिसकियों
ने तुझे मेरे दिल से बेदखल कर दिया है
मैं चाहता हूं, तू एक बार फिर सिमटे मेरी बाहों में
और एक बार फिर मैं तेरी गहराइयों में डूबता जाऊं
लेकिन आने वाले समय की पदचाप सुनकर
मैं ठिठक जाता हूं,और शून्य में निहारता हूं
फिर रिसने लगता है खून मेरी आंखों से
तुम डूबती थी मेरी आंखों में,यह कहते हुये
कितनी अच्छी और सच्ची है तुम्हारी आंखे
क्या मेरी आंखों से रिसते हुये खून को तुम देख पाओगी
शायद तुम देख भी लो,लेकिन मैं प्यार का गीत नहीं गा पाऊंगा
मेरे होठों से बस प्रलय नाद ही निकलेंगे,
जो तुम्हे भी बहा ले जाएंगे, एक अनवरत संघर्ष की ओर
वैसे भी तेरे साथ रह कर भी मैं तेरा नहीं रहूंगा
क्योंकि अब तुम्हारे होने का अहसास नहीं होता
मैं ठिठक जाता हूं,और शून्य में निहारता हूं
ReplyDeleteफिर रिसने लगता है खून मेरी आंखों से..
जिस तरह का माहौल आज़कल बना हुआ है उसमें तो क्रोध, जुनून ही आत्मा पर हावी है खून का आँखों में उतरना स्वभाविक ही है बिल्कुल सही कहा है आपने...