अथातो जूता जिज्ञासा-7
अब बात चलते-चलते मुहावरों तक आ ही गई है तो बताते चलें कि हमारे देश में एक मुहावरा है - भिगो कर जूते मारना. वैसे मैं सही कह रहा हूँ, मैं भिगो कर जूते मारना पसन्द नहीं करता. इसकी वजह यह है कि मैं जूते सिर्फ़ दो तरह के पहनता हूँ- या तो चमडे के या फिर कपडे के. इन दोनों ही प्रकार के जूतों के साथ एक बडी भारी दिक्कत यह है कि इनसे मारने पर किसी को चोट तो कम लगती है और आवाज़ ज़्यादा होती है. ख़ास तौर से चमडे वाले जूते के साथ तो बहुत बडी दिक्कत यह है कि भीगने से वे ख़राब हो जाते हैं. अब अगर जूते भीग गए तो मैं चलूंगा कैसे? ऊपर से ज्ञानदत्त जी पानी में रात भर इन्हे भिगोने की बात करते हैं. मुझे लगता है कि पिछले दिनों इन्होने अपने जो एक फटहे जूते का फोटो पोस्ट किया था, वह इसी तरह फटा होगा. जहाँ तक मेरा सवाल है, आप जानते ही हैं, आजकल हर चीज़ का दाम बहुत बढा हुआ है. सब्ज़ियां गृहिणियों के लिए जेवरों की तरह दुर्लभ हो गईं हैं और दाल के मामले में तो पहले से ही आम आदमी की दाल गलनी बन्द है. आम तौर पर आम आदमी को सिर्फ़ सूखी रोटी से काम चलाना पड रहा है. ऐसी स्थिति में मैं घर-परिवार के लिए रोटी का जुगाड करूँ या जूत...