याद आती तो होगी मेरी आवारगी तुझे
दूर तलक ले जाती थी, मेरी आवारगी तुझे
संग संग उड़ा ले जाती थी मेरी आवारगी तुझे
मेरे बहकते हुये कदमों से,जब सिमटती थी तुम
हौले से थपथपती थी मेरी आवारगी तुझे।
ठिठुरती हुई रात में अलाव के करीब
किसी अजनबी मजदूर से बीड़ी लेकर
मैं आता था करीब तेरे,गर्माहट लिये
धूम सी दमकाती थी मेरी आवारगी तुझे ।
सूनी सड़को पे यूंही पिछलते हुये
रात के साथ संग-संग चलते हुये
अनकही बातों पर मुस्काराते हुये
झुमाती थी मेरी आवारगी तुझे।
आंखों में मचलती शरारत लिये
रातो को ठहरने को कहती थी तू
तेरे कांधों से नीचे सरकते हुये
डुबोती थी मेरी आवारगी तुझे।
कहते है कि बदली है जमाने की हवा
ठंडी सड़कों पर अब अंगारे बिखरे हैं
तेरी परछाई भी अब मयस्सर नहीं
पर याद आती तो होगी मेरी आवारगी तुझे ?
रूमानियत साझा करने के लिए शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteठंडी सड़कों पर अब "अंगारे" बिखरे हैं
ReplyDeleteतेरी परछाई भी अब मयस्सर नहीं
kaise angaare sir?
भई झूम गये पढ़ के
ReplyDeletebahi anonymous!!! yet anonymous type ka angara hai...khas paristhithi me hi dikahi deta hai..
ReplyDeleteठंडी सड़कों पर अब अंगारे बिखरे हैं
ReplyDeleteतेरी परछाई भी अब मयस्सर नहीं
पर याद आती तो होगी मेरी आवारगी तुझे ?
यह यादे ही कम्व्खत है .
बहुत सुंदर लगी आप की यह गजल.
धन्यवाद
बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई स्वीकार करें ....
ReplyDeleteअर्श
bhaiyaajee ye aawaargi angaron se kam hai kya jisne jamane ko jala dala??kyu?..bahot achi panktiyaan hain B-)
ReplyDeleteसुंदर रूमानी एहसास है इस में
ReplyDelete..ki ye angaare irshya,trishna ,rudhiwadi aakrosh ya aatankwaad ki garmagaram nrishansta ke hain jisne wirah ko janm diya?...bhaiyaa jara samja dijiyega :-/ thoda der se samajhta hoon .:-(
ReplyDelete..ya fir upeksha ke?
ReplyDeletebahi anonymous!!! bahut kuch to aapane pakar liye hai....aur aapto piche hi pare huye hai....a lot of thanks for this eagerness...I like it.
ReplyDeleteवाह.. बंधुवर वाह... बधाई स्वीकारें...
ReplyDelete:-)
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