भाड़े की लौंडिया थिरके या नहीं, पर देश जरूर थिरकेगा

एक डॉक्टर जब खुदा का उम्र पूछता है तो मुझे नीत्शे याद आता है, जिसने खुदा के मौत की घोषणा की थी। चिपलूकर की ठंडे खून पर आकर ध्यान अटक जाता है। इधर-उधर की साइट पर नजर दौड़ाते हुये कई बार कोशिश करता हूं कि इन दोनों को दिमाग से झटकू, लेकिन दोनों एक साथ उथल पुथल मचाते हैं।
नीत्शे युद्ध-गीत लिखता था, और कहता था ईश्वर मर चुका है, जबकि डॉक्टर ईश्वर की उम्र पूछ रहे हैं। अब यदि नीत्शे में विश्वास करे तो खुदा उसी दिन मर गया था, जिस दिन उसने उसके मौत की घोषणा की थी, कम से कम नीत्शे के लिए तो मर ही गया था।
मौत से पहले खुदा के जन्म के रहस्य को सुलझाना जरूरी है। इसका जन्म कैसे हुआ ,नर से या मादा से,या दोनों के सम्मिलन से। पुराने बाइबिल का खुदा बादलों की ओट में चलता था और वही से आदेश देता था, यूनान और भारत वर्ष का खुदा कई रूप में था। कुरान का खुदा भी अदृश्य था। खुदा एक कलेक्टिव अवधारणा है या नीत्शे की खुदा की तरह सबजेक्टिव ?
किसी ने कहा था, खुदा ने इनसान को नहीं, बल्कि इनसान ने खुदा को जन्म दिया है। यदि डार्विन पर यकीन करे तो, इनसान क्रमश विकास का एक रूप है, इसी तरह खुदा भी क्रमश विकास का परिणाम है। इस तरल खुदा का उम्र इनसान के उम्र के बराबर है। निसंदेह खुदा हमउम्र है। लेकिन जब विभिन्न तरह की खुदावादी विचारधारयें एक दूसरे को छेदने लगती हैं तब गरमा गरम खून धरती पर बहने लगता हैं। और इस तरह के संघर्ष स्वभाविक है। और इस तरह के संघर्ष को रोकने के लिए सामुहिक खुदा की जरूरत होती है, जो युद्ध के मैदान मे उतना ही क्रूर हो, जितना की और दूसरे समुदाय के खुदा होते हैं। ऑबजेक्टिव खुदा को खड़ा करके ये लड़ते हैं। यह लड़ाई कभी शूरू होती है, कभी थोपी जाती है। इसका सीधा सा संबंध भू-भाग से होता है।
पुराने बाइबिल के खुदा का इस्तेमाल मूसा अपने लोगों को अधिक से अधिक जमीन दिलाने की लालच दिलाने के लिए करता था। ऑबजेक्टिव खुदा का मामला सीधे भू-भाग से जुड़ा है,चाहे उसका जन्म कहीं भी और कभी भी क्यो न हुआ हो। जीसस एक कदम आगे बढ़ता है,वह खुदा के राज में इनसान को जगह दिलाने की बात करता है।चिपलूकर युद्ध का व्यवहारिक खाका देते हैं, विभिन्न खुदा वाले संचालकों पर रोष व्यक्त करते हैं। सराकर की इच्छा शक्ति के बिना उनका खाका एक अच्छी कविता की तरह सुनाई देती है, इसी तरह की कवितायें नीत्शे लिखा करता था।
गोर्की का पावेल कहता है, अपनी धुन छेड़े रहो, जिनके पैर जमीन के नीचे नहीं गड़े हैं,वो एक दिन तुम्हारी धुन पर जरूर नाचेंगे। चिपलूकर की धून को ब्लॉग से निकाल कर आम लोगों के बीच फेंकने की जरूरत है। इश्क विश्क और माइंड ब्लोइवग माहिया जैसे बेसुरे गीतों से तो लाख गुणा बेहतर होगा। इनके गीतों पर भाड़े की लौंडियों की कमर थिरके या नहीं,पूरा देश जरूर थिरकेगा। फिर अपना हमउम्र खुदा तय कर लेंगे।

Comments

  1. वाह! आपने तो मेरे मन की बात कह दी। सुरेश जी की बात देश की आवाज बन जाय तो सच्ची क्रान्ति आ सकती है। जय हिन्द।

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  2. आप की ओर सुरेश जी की बात हर दिल अजीज की बात बन जाये तो फ़िर बात ही क्या, बहुत सुंदर लिखा आप ने. धन्यवाद

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  3. जय हिन्द।
    जय हिन्द।
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  4. Wah, iss jalte mudde ko kya khoob shabdon me jhinjhora hai.Ye baat to sach hai ki aadi kaal se manushya ki ye jigyasa rahi ki is wrihad bhramand ko itne taalmel aur wyawyasthit roop se chalane waali shakti kaun hai?Us adrishya shakti ko duniya ke alag alag bhagon me wibhinn aakriti di gayi ,kamsekam usase bhay khakar hi sahi sahi,galat,uchit,anuchit,naitik, anaitik tay kiya gaya aur isi prakar kai dharm aur granth astitva me aaye.Warna manushyon ko jungalon me bhojan,shasan aur prajanan ke alawa koi aur kaarya nahi hota.
    Samay samay par dharm aur khuda ek rajnaitik hathiyaar jaroor bana reha aur in dono ke ghaalmel se jo mishran taiyaar hua usne manavta ko aaj tak atom bomb se bhi jyada nuksaan pahuchaya.
    Dharmon kaa dhyay wyakti ko aatmaanushasan sikhana tha par dharm sirf aawaran me hi fas kar reh gaya manav ke aacharan ko usne kitna chua pata nahi.Aaj kaa dharm hathiyaar hazam karne,rajnaitik hit saadhne ,apne khuda ko sreshth saabit karne ya nafrat-kattarta failaane kaa saadhan ban kar reh gaya hai.
    Ab is laaden bhai ko hi dekhiye ye afghanistan me hero isliye they kyuki afghanistaan 1000 saal piche jee reha hai aur inhone kaafiron kaa khun bahaya,ye pakistaani shashan ke liye isliye lokpriya hain kyunki inke jaise “mujahideenon” ka sasta rajnaitik istemaal kiya jaa sakta hai jaisa ki USSR ke wighatan ke dauraan hua aur kashmir me jaari hai aur ye bharat mein isliye acche lagte hain kyunki door ka dhol suhaawan lagta hai.Inki sena allah aur islam ke naam par jehaad failaati hai,haan holy war ,masoomon ki jaan lene waala war kitna holy hota hai pata nahi!
    Science ki kitaabon se geocentric theory yaa origin of life thru special creation ki theory ko bhale hi faink diya jaye, trutipoorn dhaarmik manyataon ke aalochana maatr se fatwa jaari ho jaata hai.Dharmaandhon ki chale to ye apne apne mazhabon ko homo sapiens ke genes me ghuser dein aur naujaaton ko darhiyal ya bhagwaa dress me paida hone kaa farmaan jaari kar dein.Blood transfusion ke waqt bhala kahin poocha jaata hai ki blood hindu +ve hai yaa muslim –ve? Aakhir kab tak hum aise hi ladte rahenge?Aakhir kab hum samjhenge ki insaano par hindu,muslim,isai,israeli,philistini ki kashidaakari khud hum insaano ne hi kiya hai ,uparwaale ne to hume sirf aur sirf insaan bana kar bheja tha !
    Khair humey jaroor apni dhoon chere rakhna chahiye ,kabhi na kabhi to ye sur pakdega aur ek kraantigeet taiyaar hoga jispar desh thirkega!

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