गुस्ताखी माफ़: मेरी नहीं, गालिब की
इष्ट देव सांकृत्यायन
इधर देश के राजनीतिक जगत में कुछ ऎसी घटनाएं घटीं की मुझे मिर्जा गालिब बहुत याद आए. ये शेर उन्होंने लिखे तो अपने जमाने में थे, लेकिन मुझे पक्का यकीन है की किसी चुनावी ज्योतिषी से उनकी बड़ी पक्की सांठ-गांठ थी. इसीलिए उन्हें यह सब बातें पहले ही पता चल गई थीं और उन्होंने ये सारे शेर लिख डाले. अब देखिये, अलग-अलग घटनाओं या बयानों के साथ मैं आपको उनके मौजूं शेर पढ़ा रहा हूँ. यकीं मानिए, इसमें मेरा कुछ भी नहीं है. इसलिए अगर किसी को कुछ भी बुरा लगता है तो वो इसके लिए मुझे जिम्मेवार न माने. सीधे मिर्जा असदुल्लाह खान गालिब से संपर्क करे . तो लीजिए आप भी जानिए वे घटनाएं और शेर :
मैं अब चुनाव नहीं लडूंगा : अटल बिहारी बाजपेई
- जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
- कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजूं क्या है?
मैं राजनीति में सक्रिय रहा हूँ, हूँ और रहूँगा : भैरों सिंह शेखावत
- गो हाथ को जुम्बिश नहीं, आंखों में तो दम है
- रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे
झारखंड में राष्ट्रपति शासन, गुरूजी आउट
- निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए थे
- बड़े बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
कल्याण सिंह और मुलायम की मुलाक़ात
- ईमा मुझे रोके है तो खेंचे है मुझे कुफ्र
- काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे
प्रिया अब दत्त नहीं : संजय दत्त
- रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
- जब आँख ही से न टपका तो फ़िर लहू क्या है
भारत में भी चलेगी बुलेट ट्रेन : लालू
- तेरे वादे पर जिए तो ये जान झूठजाना
- खुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता
इस्लामी सेंटर का चुनाव हार गए सलमान खुर्शीद
- बने है शह का मुसाहिब फ़िरे है इतराता
- वगरना शहर में गालिब की आबरू क्या है
इस बार इतना ही, बाकी फ़िर कभी.
बहुत शानदार!
ReplyDeleteचचा ऐसे ही याद आते रहें. शानदार पोस्ट है.
और अब तो मुझे इष्टदेव याद आते रहेंगे...
यह पोस्ट पढ़ने पर लगता है कि इस जुबान के साहित्य से अपरिचय कितनी बड़ी कमी है हममें।
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिये धन्यवाद।
नायाब कंपोजिशन, बड़ी मजबूती से धागों को पिरोया है...यह जाम और चाहिये, चंद घूट से काम नहीं चलेगा।
ReplyDeleteसुभान अल्लाह....खास तौर से खुर्शीद साहब पर
ReplyDeletejab gazal ke sher asli sher ban jayen to kya kahna.
ReplyDeletehari shanker rarhi
अरे वाह, आनंद आ गया.
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