अथातो जूता जिज्ञासा-14
इससे इतना तो जाहिर हो ही गया कि अपनी व्यवस्था में जूते को हमने सिर पर बैठा रखा है. एक और बात हम सुनिश्चित तौर पर कह सकते हैं कि किसी ऐसी चीज़ को किसी देश की व्यवस्था में सिर पर प्रतिष्ठित किया ही नहीं जा सकता है जिसे उस देश के लोक ने अपने सिर पर स्थान न दिया हो. लिहाजा अब इस बात पर आपको कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जूते को हमारे लोक ने भी अपने सिर पर बैठा रखा है और लोक ने उसे यह महत्वपूर्ण स्थान ऐसे ही नहीं दे दिया है. इसके मूल में कुछ अत्यंत वैज्ञानिक टाइप के कारण निहित हैं.
भारत के कई शहरों के रिहायशी इलाकों में आपको बेहद ख़ूबसूरत इमारतें बनी दिख जाएंगी. अगर ग़ौर फरमाएंगे तो पाएंगे कि उनमें से कई घरों के छज़्जे से जूते लटके होते हैं. आप क्या सोचते हैं कि यह ग़लती से लटक रहे हैं. अरे नहीं जनाब! ऐसा सोचने की ग़लती भी मत करिएगा. असल में ये जूते बहुत सोच-समझ कर लटकाए गए होते हैं. ये जूते घरों के लिए वही काम करते हैं जो बच्चों के सिर पर डिठौने. एक ऐसी दुनिया में जहाँ मुट्ठी भर लोगो के पास सौ-सौ महल हों और करोडों लोगों के पास ढंग की झोपडी भी न हो, वहाँ अच्छे मकानों को देख कर लोगों द्वारा आहें भरना कोई आश्चर्यजनक बात थोडे ही है. और आहों के बारे में संत कबीर बहुत पहले ही कह गए हैं:
निर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय
मुई खाल की हाय सों सार भसम हो जाय
जानते ही हैं कि 'विषस्य विषौषधम' हमारा ही फार्मूला है और इसी फार्मूले के तहत देखें तो मालूम होता है कि जूता भी मुई खाल का ही बना होता है. अब जब मुई खाल की हाय से सार यानी कि लोहा भसम हो सकता है तो भला ख़ुद हाय या कहें आह की क्या बिसात. तो ये जूते वस्तुतः इसीलिए लगाए जाते हैं ताकि घर पर किसी की बुरी नज़र न लगे और अगर इस पर कोई बुरी नज़र डाले भी तो इसके पहले कि वह बुरी नज़र इसे लगे, वह ख़ुद भस्म हो जाए.
जूते की इस ताक़त को हमने बडी शिद्दत से महसूस किया है. जो लोग ख़ुद को मॉडर्न दिखाना चाहते हैं और इस नाते घर के ऊपर जूता टांगने में शर्माते हैं वे इसके विकल्प के तौर पर काले रंग राक्षस जैसा मुखौटा लटका देते हैं. या फिर कहीं एक कोने में जूते का चित्र ही बना देते हैं. जूते का ऐसा प्रयोग सिर्फ़ घर जैसी अचल चीज़ों पर ही नहीं होता, लगातार सडकों पर चलने वाली बस, ट्रक और टैंपो जैसी सचल वस्तुओं पर भी इनका प्रयोग इस रूप में बडी शान के साथ किया होता है. कुछ लोग तो अपनी गाडी के पीछे सीधे असली जूता ही लटका देते हैं और कुछ लोग जूते का चित्र बना देते हैं. साथ ही उसके आसपास ही कहीं एक जुमला भी लिख देते हैं.
ये जुमले भी कई तरह के होते हैं. कुछ लोग लिखते हैं : 'बुरी नज़र वालों के स्वागत में', तो कुछ लोग लिख देते हैं, 'बुरी नज़र वालों के लिए', और कुछ महानुभाव ऐसा भी करते हैं कि ऊपर लिखते हैं. 'बुरी नज़र डाला तो...' और नीचे जूता लटका देते हैं. यह सब वे इसके बावजूद करते हैं कि स्टियरिंग के ठीक सामने वे भगवान का फ़ोटो तो लगाते ही हैं, उनकी विधिवत पूजा भी करते हैं. ज़ाहिर है, हम ऐसा नहीं मानते कि अकेले भगवान हमारी रक्षा करने में सक्षम हैं. या यह भी हो सकता है कि भगवान को सिर्फ़ आगे से रक्षा के लायक समझा जाता हो और पीछे से रक्षा के लिए सक्षम जूते को ही समझा जाता हो.
यह तो आप जानते ही हैं कि पीछे से रक्षा का ख़याल रखना कितना ज़रूरी है! अरे यहाँ चाहे निजी दफ्तर हो या सरकारी, ऐसे कई कार्य हैं जिनके लिए अगला दरवाजा हमेशा बन्द रहता है और पिछला दरवाजा हमेशा खुला रहता है. अब मामला जो भी हो, पर मुझे तो इससे बलेस्सर भाई की बात और ज़्यादा सही साबित होती दिखती है. अरे वही : भगवान से बढकर....
(चरैवेति-चरैवेति...)
अच्छा लग रहा है. गाड़ियों के पीछे जो जुमले लिखे होते हैं उनपर भी कई लोगों ने शोध कर रखे है.
ReplyDeletehi, nice write up. well informative.
ReplyDeleteby the way when i was searching for Hindi typing tool, found "quillpad".do u use the same...?
keep writing. take care.
जूतों की महिमा, अनन्त है,
ReplyDeleteजूतों से सहमा बसन्त है।
जूता खा-कर बुश भैया का-
हमने देखा सुखद अन्त है।।
joote ne humey pahan rekha hai kahnaa galat na hoga.sach saari duniya jootadhin hi hai.jahaan brhamastra aur americaastra pahooch naa payein ,paataallok aur bhavlok tak prahaar karne waala paramshaktishaali prakshepaastra joota hi hai!
ReplyDeletejai ho joota dada ki!
अनॉनिमस 1 के लिए
ReplyDeleteमैं तो विन्डोज़ लाइव राइटर का इस्तेमाल करता हूँ. क़्विलपैड मिझे बहुत सुविधाजनक नहीं लगता. वैसे विंडोज़ एक्सपी पर तो नोट्पैड से भी हिन्दी में लिखने का काल चलाया जा सकता है. अगर अधिक जानकारी चाहें तो आप मुझे मेल कर सकते हैं. उससे यह सुविधा होगी कि मैनं सीधे आपको जवाब दे सकूंगा. मेरा मेल आईडी है:
idsankrityaayan@gmail.com
लगता है आपके अथातो जूता जिज्ञासा को अंर्तराष्ट्रीय ख्याति मिल गई है इसीलिए जहां देखिए वहीं जूते फेंक फेंक कर मारे जा रहे हैं। (और मजे की बात यह है कि हमारे यहां संसद सत्र अवकाश पर है वर्ना ढेरों जूते और भी देखे जा सकते थे)।
ReplyDeleteहम क्या करें हमारे तो जूते ही मंदिर से चोरी हो गए।
ReplyDeleteare hari bhai isase ye siddh hota hai ki na to joota aatmraksha kar saktaa hai aur naa hi bhagwaan apni grihraksha kar sakte hai,ab to kuch bhi in dono ke bharosey nahi chora jaa sakta,
ReplyDelete..,cheee hum aise durbalon ki aad lete hain !!!!!!!!!!!itne aksham hain hum!
अरे हरी जी मै कभी नही जाता मंदिर, पिछली बार भारत आया तो बच्चो के संग चला गया, मंदिर,हम काफ़ी लोग थे, तो बच्चो की चाची ने बोला तुम जाओ मै जुतो का ध्यान रखूगीं, ओर वो अपने जुते उतार कर आराम से एक तरफ़ पेड के नीचे सभी जुतो को थेले मै डाल कर बेठ गई, तभी उस की कोई सहेली आ गई ओर दोनो ने १० मिन्ट खुब गप्पे मारी, हम सब वापिस आये तो सभी के जुते थेले समेत गयाब???
ReplyDeleteअजी आप ने तो जुतो पर पुरा ग्रंथ ही लिख दिया, बहुत सुंदर लगा, आप का आज का लेख भी.
धन्यवाद