अथातो जूता जिज्ञासा-16
जूता जी की भूमिका भारतीय चिकित्सा शास्त्र में केवल यहीं तक सीमित हो, ऐसा भी नहीं है. कई अन्य महकमों की तरह चिकित्सा जगत या कहें कि महकमे में भी जूते को एक सम्मानजनक हैसियत प्राप्त है. इसका एहसास मुझे बहुत जल्दी हो गया. तभी जब मैं गोरखपुर में था. हुआ यूँ कि एक बेचारे आम आदमी का एक्सीडेंट हो गया. घर-परिवार और गाँव-बाज़ार के लोगों की नज़र में वह सिर्फ़ आम ही नहीं, बल्कि कुछ-कुछ आवारा किस्म का आदमी था. अब ज़ाहिर है, ऐसी स्थिति में उसकी कोई हैसियत तो थी नहीं. फिर भी उसे लेकर लोग तुरंत अस्पताल आए. अब चूंकि वह आवारा ही था, पैसा-कौडी तो उसके या परिवार वालों के पास कुछ था नहीं, लिहाज़ा उसे किसी प्राइवेट अस्पताल में नहीं जाया जा सकता था. उधर सरकारी अस्पतालों से गम्भीर मरीजों के ठीक होकर वापस घर लौटने की परम्परा आप जानते ही हैं कि आज तक शुरू नहीं हो सकी है. इसके बावजूद उसे सरकारी अस्पताल मे ही भरती करवाया गया.
सरकारी अस्पताल में आने के बाद पहले तो उसे भर्ती करने से ही मना कर दिया गया, पर इसी बीच उसका कोई उसके ही जैसा यानी आवारा किस्म का मित्र आ गया और उसके दबाव पर उसे भरती कर लिया गया. हालांकि उसके दबाव को उस वक़्त माना डींग ही जा रहा था, लेकिन चूंकि सरकारी अस्पतालों के कर्मचारी अनुभवी होते हैं और वे जानते हैं कि कई बार डींग लगने वाली बातें भी सही साबित हो जाते हैं, लिहाजा उसका मुँह बन्द करने के लिए उसे भरती कर लिया गया. पर इस दबाव के बावजूद अस्पताल में उसे भरती वैसे ही किया गया जैसे कि कांजी हाउस में जानवरों को करते हैं. मतलब यह कि उसे बेड के नाम पर किसी वार्ड के कोने में थोडी सी जगह दे दी गई. जैसे-तैसे उसी कोने में एक गन्दी सी चादर डालकर उस पर उसे लिटा दिया गया. इसके परिवार के जो लोग उस वक़्त वहाँ मौजूद थे, सभी एक किनारे बैठ कर बिलकुल वैसे ही उसके जीवन की घडियाँ गिनने लगे, जैसे आम जनता एक बार एक पार्टी की सरकार बनवाने की ग़लती करने के बाद अगले चुनाव के दिन गिनने लगते हैं.
इस बीच उसके उस आवारा टाइप मित्र के जुगाड या दबाव पर ही कोई डॉक़्टर तो नहीं, पर एक कंपाउंडर साहब आकर कुछ मरहम पट्टी भी कर गए. कुछ दवाएं भी उन्होने लिख दीं और वह भी वह आवारा टाइप मित्र ही बाज़ार से किसी तरह जुगाड कर लाया. परिवार वाले उसके बडे कृतज्ञ हुए जा रहे थे, क्योंकि बेचारे इसके अलावा और कुछ भी करने लायक नहीं थे. और तो और, अस्पताल का कोई चतुर्थ श्रेणी अधिकारी भी उनसे टेढे मुँह भी बात तक करने के लिए तैयार नहीं था. इसी बीच वही मित्र किसी तरह अपनी गैंग के सरदार यानी विधायक जी को इत्तिला कर आया. हालांकि विधायक जी की विधायकी गए क़रीब तीन साल बीत चुके थे, पर अपने चमचों की नज़र में वह अभी भी विधायक ही थे. ख़ुद को पढे-लिखे मानने वाले कुछ बेवकूफ़ किस्म के लोग जब-तब उनकी ऐतिहासिक विधायकी को मानने से इनकार कर देते थे और तब उनको विधायक जी के विधिशास्त्री चमचे ऐसा भूगोल पढाते थे कि वे बेचारे अपने घर का पता तक भूल जाते थे. इसके बाद अगर वे कभी होश में आते थे तो विधायक जी को सीधे मंत्री जी ही कहने लगते थे.
बहरहाल, अपने ख़ास चमचे के एक्सीडेंट और फिर अस्पताल में उसकी भर्ती कराए जाने और वहाँ उसकी तीमारदारी क़ायदे से न होने पाने की सूचना मिलते ही विधायक जी ने किसी बडे डॉक्टर, जिसे उन दिनों शायद सीएमएस कहते थे, को फोन भिडा दिया. सुनते हैं कि अपने ख़ास चमचे की ठीक से तीमारदारी न हो पाने की एवज में विधायक जी ने बडे डॉक्टर साहब के परिवार से अपने अत्यंत अंतरंग संबंधों का तो हवाला दिया ही, यह पूर्व सूचना भी दे दी कि अगर अगले 10 मिनटों में उसके इलाज की प्रॉपर टाइप व्यवस्था न बन गई तो आगे वे मुँह के बजाय जूते से ही बात करेंगे. सौभाग्य से उनकी यह भविष्यवाणी सच भी साबित हुई. बमुश्किल आधे घंटे के भीतर विधायक जी अस्पताल परिसर में पधार चुके थे और वहाँ पहुँचते ही उन्होने किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति पर जूतों की बारिश भी शुरू कर दी थी.
इसके बाद तो जैसे पूरे अस्पताल में कर्तव्यनिष्ठता का तूफ़ान ही आ गया. डॉक्टर, नर्स, कपाउंडर, फार्मासिस्ट, वार्डब्वॉय... आदि सभी अपने कर्तव्यपालन में ऐसे जुटे, जैसे सरकारी अस्पताल के कर्मचारी नहीं, फ़ौज के सिपाही हों. हालांकि ऐसी घटनाएं भारतीय इतिहास में कम ही घटती हैं, पर आश्चर्यजनक सत्य उस बार घटित हुआ और वह बेचारा आवारा टाइप घायल आदमी सरकारी अस्पताल से ही तीन दिन बाद पूरी तरह स्वस्थ होकर वापस अपने घर गया. बाद में ऐसी ही कुछ घटनाओं का गवाह बनने का सुअवसर मुझे सिवान, मेरठ और जालंधर में भी प्राप्त हुआ. इससे आपको हो या न हो, पर भाई मुझे तो इस बात का पक्का यक़ीन हो गया कि जूते की भूमिका सम्पूर्ण भारतीय चिकित्सा जगत में अत्यंत महत्वपूर्ण है.
मुझे आश्चर्य होता है कि इसके बावजूद भारत सरकार या चिकित्सा विज्ञान की मान्य संस्थाओं की ओर से इस विषय पर व्यवस्थित शोधकार्य क्यों नहीं करवाया जा रहा है. आयुर्वेद, एलोपैथ, होमियोपैथी और जो कोई अन्य पैथी भी चिकित्सा जगत में हो सकती है, उस सबमें जूता की इतनी महत्वपूर्ण और सर्वमान्य टाइप की हैसियत के बावजूद अभी तक ऐसा एक भी शोधग्रंथ उपलब्ध नहीं है जिससे कि चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थी इस बात को साफ़ तौर पर जान सकें कि उनके किस प्रकार के प्रयोग से क्या-क्या चिकित्सीय लाभ लिए जा सकते हैं. मेरा तो मानना कि इस विषय पर जल्द से जल्द व्यवस्थित रूप से शोधकार्य की शुरुआत कर दी जाने चाहिए. वरना कहीं ऐसा न हो कि आने वाले दिनों में हर शोधकार्य को अपनी निजी सम्पत्ति मानने वाला अमेरिका नीम की तरह जूता जी के चिकित्सीय उपयोगों का पेटेंट करा ले और हम देखते ही रह जाएं. वैसे यह भी ग़ौर करने की बात है कि तासीर में नीम जी और जूता जी दोनों एक जैसे हैं और दोनों ही मामलों में अमेरिकी जनता और राजनेताओं की हमसे जबर्दस्त होड भी है.
(चरैवेति-चरैवेति....)
रोचक...मर्म को छूने वाली
ReplyDeleteगहरे अर्थ उदघाटित करने वाली
प्रस्तुति.....इस शोध में तो बोध के
अनगिन पहलू हैं !
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
भाई साहब पादुका-पुराण की पुस्तक कब तक प्रकाशित हो रही है?:)
ReplyDeleteजबरदस्त जूते (तीखे व्यंग्य) के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteजूता मुद्रा (करेंसी) का भी विकल्प है! खैराती अस्पताल में जो मुद्रा चलती है वह जूता है!
ReplyDeleteबहुत ज्ञान बढ़ रहा है।
बहुत ख़ूब बडे भाई! मेरा ज्ञान बढाने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteअच्छा चल रहा है.....ज्ञानवर्द्धक आलेखों की श्रृंखला।
ReplyDeleteMujhe to shak hai bhaiyaa ki us aawaara type ka accident bhi bahuaayaami tiwragaami joota yaatayaat ki chapet me aa jaane se hi hua ho.Waise joote kaa acupressure kaahilon me sfoorti kaa sanchaar kar deta hai--haraamkhori ke wyasan ka kaafi pravaawi ilaaz ,is widhi kaa deshwyapi prayog honaa chahiye.Mere kshetra me bhi marij ke parijaano aur sarkaari aspataalkarmiyon ke bich jootapressuriya chikitsaa kaa chalan prasiddhi paa chukaa hai.
ReplyDeleteचलिये हम जुते को भी देवता मान लेते है, अब जुता मंदिर खुलना बाकी रह गया है, चलिये चंदा इकट्ठ कर के एक जुता मंदिर बनाया जाये.
ReplyDeleteधन्यवाद
राज साहब! जूता मन्दिर तो नहीं बना अभी, पर उसकी प्रतिमा तो बन चुकी है और वहाँ दर्शनार्थी भी पहुंचने लगे हैं. उसे मन्दिर में तब्दील होते बहुत देर नहीं लगेगी. तफसील से इसका विवरण भी आगे दिया जाएगा. इसी शास्त्र के अगले खडों में.
ReplyDeleteवैसे मंदिर के लिए चन्दा इकट्ठा करने का आपका सुझाव जोरदार है. इस पर अमल किया जाना चाहिए.
संभव है कि चिकित्सा विज्ञान में जूते की इतनी उपयोगिता को देखते हुए आगे चलकर होम्योपैथी.एलोपैथी की तरह कोई 'जूतापैथी'भी प्रचलन में आ जाए.
ReplyDelete……………यानि कि जूता ट्रेन अभी भी फर्राटे से भाग रही है। कितने डिब्बे लगे हुए हैं?
ReplyDeleteWats jee jootapathy kaa janm kaliyug suru hone se kaafi pehle ho chuka tha.Abhi yahan jootapathy se hone waale wide-effects ki charcha ho rehi hai ;-)
ReplyDeleteअच्छा लिख रहें हैं,जानकारी महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteधन्यवाद!
भाई वत्स जी!
ReplyDeleteआपका अन्दाजा बिलकुल सही है. सच तो यह है कि मैं जूतापैथी के विकास में ही लगा हुआ हूँ और मेरा स्पष्ट तौर पर मानना है कि इससे भारत ही नहीं दुनिया के सभी रोगों का इलाज हो सकता है. पर यह बात अभी नहीं, ये क्लाइमेक्स के क़रीब का है.
और भाई अतुल जी
मंजिल का ठीक-ठीक पता हो और इरादा पक्का हो, तो रास्ते की लम्बाई की लम्बाई कौन देखता है! बस देखते जाइए अभी कितने डिब्बे और लगते हैं.
भाई एनॉनिमस जी
ReplyDeleteपैथी का अभी जो विकास हुआ है, वह व्यवस्थित नहीं हुआ है. बहुत हॉज-पॉज है उसमें. इसीलिए उसका सही तरीक़े से उपयोग नहीं हो पा रहा है. इस अव्यवस्था को दूर कर इस पैथी को एक व्यवस्थित रूप देने के लिए ही धरा पर मैंने अवतार लिया है.
जूते की भूमिका सम्पूर्ण भारतीय चिकित्सा जगत में अत्यंत महत्वपूर्ण है.
ReplyDelete-जूतापैथी!! :)
बहुत गजब!
भाई जूतापैथी है बड़ी काम की है मिर्गी वाले रोगी को जूता पहले सुघाया जाता है .
ReplyDeleteईष्टदेव दे रहे प्रमाण
ReplyDeleteजूतापैथी-जूतपुराण
जूत चलेंगें-जूत चलेंगें
पहने सारे भूत चलेंगें
जूत बिना भई क्या है अपना
बिना जूत के कैसा सपना
इधर से आऒ-उधर से आऒ
जब हो मरजी जूते खाऒ
देख जूत को शीश झुकावै
एम्पी या पीयम बन जावै
बोल जूत महाराज की
जै....................................................................................................
Aagrah hai ki drishtidosh,shravandosh ,swardosh aur premrog jaise rogon ki chikitsaa par prakaash daalen.Aapaki jootawidya kaa itanaa pravaav to awashya hua ki meri extrasensory perceptibility barh gayi hai.Pranayrogon me jootachikitsaa kaa “raamwaan” maine kal hi dekh liyaa.
ReplyDeleteHua yun ki baazaar jaate waqt meri nazar sadak par premaaviwyakti kar rehe ek premi yugal par akasmaat chali gayi . Mai man hi man soch rehaa tha ki in wyaktigat cheezon ko sareaam karne ki kya jaroorat? auron ko dikhaane ya jalaane waaste? .Tabhi achaanak huye ho halla ke wisfot ne mujhe piche murne ko mazboor kar diya.Dekhaa to kuch sanskriti rakshak kutton ne swan yugal par humlaa kar diyaa thaa.Mujhe pehchaanane me waqt naa laga ki ye wohi manchaley gundey yuva kutton kaa gang hai jo dussehrey me cherkhaani karte pakdaa gaya thaa .Diljale kutte widwesh aur jalansheeltaa ke kaaran “majnu” kutte par tiwra gati se jootawristi(canine kaa joota =canine=suwaadaat) karne lage aur unme se kooch samay samay par kutiyaa se humdardi jataate aur snehsparsh karte.Prem sutra ki wiwashtaa me bandha premi yugal daant khishorne aur apni karni par pachtaane ke alaawa kuch naa kar paa reha thaa.
Ab tak kaafi kutta public ikatthha ho chuki thi.Mai wanhi thithak gaya aur unhe sunane laga. Yugal ki ho rehi durgati ko jaayaj thaharakar
kuch puraniyaa kutte is terah ke behayapan ki damdaar majammat karte huye iske pillon aur pilliyon par padne waale nakaaratmak prabhawon ki charchaa karne lagey.
Wahin aaspaas khade kuch kutte bhauhen sikore sir unch-neech tirchaa-seedha kar saara ghatnakram dekh rehe the. Unme se ek prabuddh kutte ne udwignata bhare swar me kaha “aaj kaa yuva pathbhrast ho chukaa hai.Isne desh-prem ke hisse kaa bhi prem deh-prem ko samarpit kar diyaa hai .Aaj kaa yuva kutta valentine day ko manaane(apne-apne tariqe se*!) me jitni tatpartaa aur garmjoshi dikhaata hai is araajak desh ke wikaaron ke shodhan karne me utni urjaa nahi lagataa.Premdiwas ki taiyaariyaan 15 din pehle se hi hone lagti hain aur swatantrata diwas kaa sadupayog cricket khel kar kar diya jaata hai.Muft me mili aazadi kaa upbhog karne waale balidaani khoon ki kimat kya jaane,Chee kitnaa pakshpaati wyawahaar!” rundhe gale se usane kaha, “aah ,humaari maatribhoomi kitni asahay hai!”
Bagal khade kisi kutte ne yathagyan bola “sach aaj ke yuva kutton kaa mool dhyeya grihasti aur prajanan ho jaaye to desh haasiye par chala jaaye.Waisi sthiti me inme aur jungli pashuon me kya antar reh jayega?Sashakt desh kaa nirmaan kaise hoga?pehle se hi desh acche watchdog aur snifferdog ki kami se joojh rehaa hai.”
Ab tak danga fasaad kaafi khooni ho chukaa thaa ,ise dekh kar bechain ek kutta chillaya “aaj ke kutton me insaaniyat kaa kitna aabhaav ho gaya hai ki ye dopaaya jaanwaron jaisa wyawahaar karne lage hain.Adharmi aur nastcharitra dharmyoddha aur dharmrakshak bane phir rehe hain.Jo log doosaron ke ishaaron par hurdang aur khunkharabaa kar rehe hain.Kahan hai unka swawiwek?koi roko…..”
Tabhi kinaare se pat-pat ki aawaaz aayi dekhaa to ek khauraaha kutta tin taang par baithkar apni tedhi gardan khujlaate huye kaha “jo jo kartaa hai karne do , kon doosre ke pachde me padtaa hai apni jindagi me aafat kam hai kya” aur chalta bana..
Tabhi achaanak paancho ore se mooslaadhaar jootawrishti hone lagi aur tamaashbino aur dangaayion ki toli titar bittar ho gayi.
sochiye sir jee, joota mandir hoga to waha se bhi joote chori hone ka dar satayege. hai n....badhiya likha aapne. badhayi...
ReplyDeleteअदभुत है जूता कथा, अब तो यह एक आंदोलन का रूप ले रहा है। बहुत सारी गंदगी पर आप एक साथ जूता चला रहे हैं।
ReplyDeleteदो बाते:
ReplyDelete1. जूते जैसे विषय को केंद्रित करके इतने क्रियाशील तरीके से आलेख लिखना अपने आप में एक बडा रिकार्ड है. अपनी क्रियाशीलता के लिये हमारा अनुमोदन स्वीकार करें.
2. यह आलेख 16 अपने बहुत मजेदार निकला. अब 17 की ओर निकलते हैं.
सस्नेह -- शास्त्री
Melvin and I stood up to him that day, even after he had lost hisvoice from screaming and finally sank into a deep sulk. The descending dress left the voluptuous blonde in nothing but a pair of smoky pantyhose.
ReplyDeletesexy stories in hindi
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