अथातो जूता जिज्ञासा-20

फ्रांस के इतिहास और उसके चलते उसकी संस्कृति पर जूते का असर कितना जबर्दस्त है, यह बात अब साफ़ हो गई. एक बात और शायद आप जानते ही हों और वह यह कि दुनिया भर में पिछली दो-तीन शताब्दियों से फ्रांस को आधुनिकता का पर्याय माना जाता है. बिलकुल वैसे ही जैसे जैसे कि हमारे भारत महान को रीढ़रहितता का. इससे बड़ी बात यह कि फ्रांस की जो आम जनता है, वह अंग्रेजी जानने को बहुत ज़रूरी नहीं समझती है. इससे भी ज़्यादा शर्मनाक बात यह है कि अपने को अंग्रेजी न आने पर वहाँ के लोगों को कोई शर्म भी नहीं आती है. छि कितने गन्दे लोग हैं. है न!

लेकिन नहीं साहब! दुनिया अजूबों से भरी पडी है और उन्हीं कुछ हैरतअंगेज टाइप अजूबों में एक यह भी है कि बाक़ी दुनिया को भी उनके ऐसे होने पर कोई हैरत, कोई एतराज या कोई शर्म नहीं है. इससे ज़्यादा हैरत अंगेज बात जब मैं बीए  में पढ़ रहा था तब मेरे अंग्रेजी के प्रोफेसर साहब ने बताई थी. वह यह कि एक ज़माने में अंग्रेज लोग फ्रेंच सीखना अपने लिए गौरव की बात समझते थे. ठीक वैसे ही जैसे आजकल हम लोग अंग्रेजी सीखकर महसूस करते हैं. किसी हद तक ऐसा वे आज भी समझते हैं. अब ऐसे जूताप्रभावित देश का जिस इतना गहरा असर होगा, उसकी संस्कृति जूते के प्रभाव से बची रह जाए, ऐसा भला कैसे हो सकता है!

शायद यही कारण है कि उनकी संस्कृति भी जूते से प्रभावित है और वह भी भयंकर रूप से. सच तो यह है कि अंग्रेज लोग जूते से इस हद तक प्रभावित हैं कि उनके लिए किसी की औकात का पैमाना ही जूता है. बिलकुल वैसे जैसे कि आप के लिए दूध, दारू, पानी या तेल का पैमाना लीटर और अनाज, दाल, सब्ज़ी या कबाड़ का पैमाना किलो है. यक़ीन न हो तो आप उनके कुछ मुहावरे और कहावतें देख सकते हैं.

अंग्रेजी भाषा में जूते को लेकर वैसे तो तमाम मुहावरे हैं, पर ख़ास तौर से औकात नापने के मामले में एक मुहावरा है - टु पुट इन वन्स शूज़. इसका सीधा सा मतलब है किसी की ज़िम्मेदारी संभलना. ज़ाहिर है, ज़िम्मेदारी संभालने का मतलब है औकात में आना. विअसे तो हमारे यहाँ भी कहावत है कि जब बाप के जूते बेटे को आने लगें तो उससे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए. ज़ाहिर है, यहाँ भी आशय यही है कि जब बाप की औकात बेटे के बराबर हो जाए....लेकिन यहाँ ज़रा मामला थोडा घुमा-फिरा कर है. सीधे तौर पर यह बात नहीं कही गई है. और मेरा अन्दाजा है कि यह कहावत हमारे यहाँ अंग्रेजों के साथ ही आई होगी. वहाँ तो सीधे कहा जाता है कि नाऊ अनूप हैज़ पुट हिज़ लेग्स इन डाइरेक्टर्स शूज़. मतलब यह कि अब अनूप ने डाइरेक्टर का जूता पहन लिया .. ना-ना ऐसा नहीं है. अगर ऐसा होता डाइरेक्टर अनूप को दौड़ा-दौड़ा के मारता और छीन लेता अपना जूता. पर आज वह ऐसा नहीं कर सकता. ऐसा वह इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि कहने का अभिप्राय यह है कि अनूप अब डाइरेक्टर हो गया.

इस प्रकार देखें तो अंग्रेजी में जूता ही एकमात्र अपिमाना या कहें कि मापक यंत्र या मात्रक है साहब आदमी की औकात का. क्योंकि अगर गणित के हिसाब से देखें तो

जूता=ज़िम्मेदारी=औकात.

इतना उम्दा समीकरण आपको चुनावी गणित में भी नहीं मिलेगा जी. थोड़ा और फैला कर अगर समझना चाहते हैं तो लीजिए देखिए एक कहावत :

नेव्हर जज समवन अनटिल यू हैव ट्र्वेल्ड अ माइल इन देयर शूज़.

आई बात समझ में. कहक साफ़ तौर पर कह रहा है कि तब तक किसी के बात-ब्योहार-चरित्र-आचरण का कोई फैसिला मत करो, जब तक कि तुम उसका जूता पहिन के कम से कम एक मील चल न लो. मतलब यह कि तब तक किसी को सही या ग़लत मत कहो जब तक कि तुम उसकी हैसियत या ज़िम्मेदारी को थोड़ी देर के लिए झेल न लो.

(अभी ना जाओ छोड़ कर कि भंडार अभी चुका नहीं. कुछ और कहावतें और मुहावरे अगली कड़ी में....)

अथातो जूता जिज्ञासा-19

Comments

  1. अजी, अथातो जी,
    कनैला की कथा जैसा जूतोपाख्यान कब तक चलेगा. राहुल जी माथा धुन रहे होंगे...उफ् ये जूताखोरी

    ReplyDelete
  2. बन्धुवर कनैला की कथा तो बहुत छोटी सी है. वह केवल एक गांव की कथा है, यह पूरे ब्रह्मांड की कथा है.

    ReplyDelete
  3. लगता है आपको जूते ने तगडा काट खाया है किसी और का पहन रखा है क्या मियाँ ?

    ReplyDelete
  4. क्या कहे अरविंद जी. जो भी पहनता हूं, उसी परा कोइ दूसरा दावा करा देता है.

    ReplyDelete
  5. बिल्‍कुल सही कहा

    ReplyDelete
  6. लगता है जूता पुराण की रचना हो ही जाएगी।

    ReplyDelete
  7. अजी हुई समझिए. आप हो जाने की बात क्यों करते हैं.

    ReplyDelete
  8. आप और अरविंद जी महज जूते के मामले में झगडा न करें. आपको जितने जूते चाहिये मुझे बता दें, मैं पीछे न हटूँगा!!!

    हास्य छोट अब वापस विषय पर आते हैं. आपकी रचनात्मकता की दाद देते हैं. उसके साथ इस अंक में आपने जूते के बारे में यूरोपीय समाज से जो जानकारी उपलब्ध करवाई है उसके लिये आभार!!

    आम कामों के लिये खडाऊ, या पट्टे के साथ लकडी-आधार के चप्पलों का प्रयोग हिन्दुस्तान में बढने लगे तो शायद अच्छा हो. कुटीर उद्योगों को बल मिलेगा, जहरी किस्म के (सस्ती चप्पलों का) रबड/प्लास्टिक से छुटकारा मिले.

    सस्नेह -- शास्त्री

    ReplyDelete
  9. अगर अंग्रेज-फ्रेंच जूते से प्रभावित कौम हैं तो हमें अलग से कुछ लेना पड़ेगा। पता नहीं भरतललवा मेरा खड़ाऊं कहां रख दिया! एक फोटो उसकी ठेल कर पोस्ट बन जाती है इस जूता-पुराण माहौल में। :-)

    ReplyDelete
  10. आदरणीय शास्त्री जी और ज्ञानदत्त जी
    फिक्र मत करें. आगे इसी जूता शास्त्र के अंतर्गत यूरोपीय देशों में खड़ाऊँ की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा पर एक पूरा पोस्ट आने वाला है. वह भी पूरे सांस्कृतिक प्रमाणों के साथ.

    ReplyDelete
  11. @क्या कहे अरविंद जी. जो भी पहनता हूं, उसी पर कोई दूसरा दावा कर देता है:

    लगता है किसी बड़े मन्दिर में दर्शन के वक्त आपका जूता किसी ने मार दिया है। नुकसान की भरपायी के लिए आप वहाँ उपलब्ध जूते नाप रहे हैं। अफ़सोस, जो भी जूता आजमा रहे हैं उसका दावेदार टपक जा रहा है...। बड़ी आफत है भाई...।

    इस मेले में से निकल लीजिए। बगल से हवाई चप्पल खरीदते हुए घर लौट आइए। ज्ञान जी तो अपने घर में ही खड़ाऊ ढूँढ रहे हैं जिसे भरतलाल (अयोध्या वाले नहीं!)उठा ले गये हैं। :)

    ReplyDelete
  12. अरे आपको बहीं पता है सिद्धार्थ जी. ये वही अयोध्या वाले ही भरतलाल हैं और खड़ाऊँ के फेर में ही हैं. पुनश्च, आप तो मेरे बारे में जानते ही हैं, आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं है कि मेरी कोई चीज़ किसी ने उड़ाई हो और मैंने उसकी छोड़ दी हो. तो मैं तो मारूंगा ज़रूर और उसी की मारूंगा जिसने मेरा उड़ाया है. बस वक़्त आने दीजिए. आप भी क्या याद करेंगे!
    हा-हा-हा....

    ReplyDelete
  13. -१)आज कल फॉरेन लैंगुएज सिर्फ जूता प्रभाव के कारण ही नहीं बोला जाता अब देखिये ना बी पी ओ वाले अंग्रेजों को उन्ही की अंग्रेजी बेच कर पैसे कमा रहे हैं तो कहीं किसी देश की भाषा को उस देश में सेंधमारी या भेदियागीरी करने के लिए सीखा जा रहा है .

    ०)दूसरों का जूता छीनना हो तो जूते के तले रहकर अपनी औकात बढानी पड़ती है ,फिर एक दिन अचानक जूते में कील ठोंक दो
    १)"जूता = जिम्मेदारी = औकात "
    बड़ा अच्छा equation है भाई jee ,लेकिन कभी कभी संतुलन गडबडा जाता है ,---कभी औकात छोटी होती है तो जिम्मेदारी बढ़ जाती है ,तो कभी औकात बड़ी हो जाने पर कोई जूता ही छीन भागता है ,तो कभी जूता बड़ा हो जाता है तो सबको लगता ही रहता है वगैरा वगैरा
    २)"नेव्हर जज समवन अनटिल यू हैव ट्र्वेल्ड अ माइल इन देयर शूज़"
    काश महानालायकों का भी ट्रायल पैक आता, ये जोंक तो एक बार सर पर चढ़ने के बाद अधिकांशतः पांचवे साल ही पीछा छोड़ते हैं इतने में तो कोई जूता पहन पांच प्रकाशवर्ष दूर चला जाए और रास्ता भी भूल जाये पर इनके चरित्र का पता ना चले ,

    ReplyDelete
  14. इस श्रृंखला पर शतक लगना चाहिए भाई, बहुत गम्भीर विषय है।

    ReplyDelete
  15. प्रणाम
    बहुत बढ़िया जूता ज्ञान , खड़ाऊँ ज्ञान का इंतजार है .

    ReplyDelete
  16. अजी लगता है आप ने दोनो पेरो मै अलग अलग जुता पहन लिया है, तभी काट रहा है...
    बहुत ही सुंदर लगा आप का यह जुता कथा, ओर यह फ्रांस वाले सच मै बहुत बेशर्म ओर अनपढ है, अजी इगलेंड से सिर्फ़ २० कि मी दुर रहते है लेकिन अगरेजी नही बोलते, ओर हम ८००० कि मी दुर रहते है कितनी फ़राते दार अंग्रेजी बोलते है, अजी हम तो खाते पीते भी अगंरेजी मै है,
    धन्यवाद आप के इस अति सुंदर जुता कथा की

    ReplyDelete

Post a Comment

सुस्वागतम!!

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का