अथातो जूता जिज्ञासा-21
अब जहाँ आदमी की औकात ही जूते से नापी जाती हो, ज़ाहिर है सुख-दुख की नाप-जोख के लिए वहाँ जूते के अलावा और कौन सा पैमाना हो सकता है! तो साहब अंग्रेजों के देश में सुख-दुख की पैमाइश भी जूते से ही होती है. अब देखिए न, अंग्रेजी की एक कहावत है : द बेस्ट वे टो फॉरगेट योर ट्र्बुल्स इज़ टु वियर टाइट शूज़. मतलब यह अपने कष्ट भूलने का सबसे बढ़िया तरीक़ा यह है कि थोड़ा ज़्यादा कसे हुए जूते पहन लीजिए.
निश्चित रूप से यह कहावत ईज़ाद करने वाले लोग बड़े समझदार रहे होंगे. अपने नाप से छोटा जूता पहन कर चलने का नतीजा क्या होता है, यह हम हिन्दुस्तानियों से बेहतर और कौन जानता है. यह अलग बात है कि यह कहावत अंग्रेजों ने ईज़ाद की, लेकिन नाप से छोटे जूते पहन कर चलने की कवायद तो सबसे ज़्यादा हम भारतीयों ने ही की है. हमने चपरासी के लिए तो शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की है, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लिए आज भी हमारी मुलुक में किसी शैक्षणिक योग्यता की ज़रूरत नहीं है. यह हाल तब है जबकि आजकल हमारे यहाँ आप कहीं से भी डिग्रियाँ ख़रीद सकते हैं. मतलब यह कि जो ख़रीदी हुई डिग्रियाँ भी अपनी गर्दन में बांधने की औकात न रखता हो वह भी इस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है.
पहले कई दशकों तक लोगों को यह भ्रम रहा कि भाई हमारे देश में लोकतंत्र है. लोकतंत्र में लोक की इच्छा ही सर्वोपरि है. लिहाजा यहाँ प्रधानमंत्री जैसे पद को शैक्षणिक योग्यता जैसी टुच्ची चीज़ से बांधने का क्या मतलब है! इस मामले में तो जनता की इच्छा को ही सर्वोपरि आधार माना जाना चाहिए. लेकिन नहीं साहब, जल्दी ही यह भ्रम भी टूट गया. चलो अच्छा हुआ ये भी. जनमत भी चला गया तेल बेचने. मतलब यह कि स्कूटर चलाने लिए किसी तरह की अगर योग्यता हो ज़रूरी तो हुआ करे, देश चलाने के लिए हमारे देश में किसी योग्यता की ज़रूरत नहीं रह गई है अब.
अब सोचिए, जब बेचारी जनता को ख़ुद ही अपनी इच्छाओं की कोई कद्र न हो तो जिसे उसके सिर पर बैठाया जाएगा वह क्यों करने लगा उसकी इच्छाओं की कद्र? ज़ाहिर है, यह नाप से छोटे वाला ही मामला है. फख्र की बात यह है कि ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है. हम पिछली कई शताब्दियों से यही झेलते आ रहे हैं. एक ज़माने में हमारे देश के सभी महान राजाओं की कुल निष्ठा अपने पड़ोसी राजाओं पर हमला करने और उनसे लड़ने तक सीमित थी. ये अलग बात है कि इनमें से किसी ने भी देश के बाहर जाने की कोई ज़रूरत नहीं समझी. और तो और विदेशी आक्रांताओं को अपने ही देश में जिताने में भरपूर मदद की. ज़ाहिर है, ऐसी उदारतावादी सोच भी छोटे नाप का ही मामला है.
इस छोटे नाप से ही हम अपने सारे कष्ट भूलते रहे हैं. पता नहीं, अंग्रेजों के हाथ यह कहावत कैसे लग गई. वैसे इसकी पैदाइश तो भारत में ही होनी चाहिए थी. क्या पता, यह कहावत अंग्रेजों ने भारत आने के बाद ही ईज़ाद की हो! बहरहाल, अब यह है तो उनकी ही सम्पत्ति और अब वे अपने दुखों को इसी तरह यानी जूते से ही नाप्ते हैं. अंग्रेज लोग यह भी कहते हैं कि एवरी शू फिट्स नॉट एवरी फुट. मतलब यह कि हर जूता हर पैर में सही नहीं होता. लेकिन हम इसे मानने के लिए तैयार नहीं हैं. हमारे यहाँ इसे झुठलाने की एक तो कटेगरी एक ख़ास किस्म के अफसरों की ही है. उन्हें जिले से लेकर चीनी मिल और यूनवर्सिटी की वाइस चांसलरी तक जहाँ कोए बैठा दे, वे वहीं फिट हो जाते हैं. इसीलिए वे इसी प्रकार के डन्डे से ही देश बेचारे को भी हांकते हैं. अब हम यह प्रयोग कई माम्लों में और वह भी कई तरीक़ों से कर रहे हैं.
अंग्रेज अपने देश में इन कहावतों पर अब कितना अमल या प्रयोग कर रहे हैं, ये वे जानें. बहरहाल हम इन पर लगातार प्रयोग कर रहे हैं. जैसा कि आप जानते ही हैं, प्रयोग सिर्फ़ उन्हीं चीज़ों पर किए जा सकते हैं जिन्हें आप या तो न जानते हों, या फिर इतना जान चुके हों कि अब जानए के लिए कुछ शेष न रहा हो. भला जिस महान देश में सत्य पर ही प्रयोग हो चुका हो, वहां ऐसी मामूली सी कहावत पर जानए के लिए कुछ शेष होगा, ऐसा मुझे लगता तो नहीं है. फिर भी प्रयोग इस पर अभी जारी है. इसकी वजह क्या है, यह जानने के लिए बने रहें हमारे साथ अगली पोस्त तक.
akhirkar baat wahi nikli. chhotwe nap ka juta jo apne pahan rkha hai to katega hi.
ReplyDeleteपूरी दुनिया अब जल्दी ही एक जूते में समाने वाली है ! और साथ में कुछ जूतियाँ भी हो शायद !
ReplyDeleteनाप से छोटे जूते पहनने का रिवाज़ तो चीन में है ही. वह भी काठ की!
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteबहुत बढिया जुटा ज्ञान
"कष्ट भूलने का सबसे बढ़िया तरीक़ा यह है कि थोड़ा ज़्यादा कसे हुए जूते पहन लीजिए"
छोटे घाव को भुलाने के लिए उसके पास एक बड़ा घाव कर दिजीये .
उत्तम अति उत्तम .
कमाल की जूता-सीरिज चला रहे हैं आप। सब पढ़ गया। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसही है जी .....हमें तो डर है बाटा वाले आपका अपरहण न कर ले ..वैसे भी एक पुराणी कहावत है आदमी की हसियत उसके जूते से ओर घर किचन ओर बाथरूम देखकर मापा जाता है.....
ReplyDeleteइसे कहते हैं लगन। लगन हो तो व्यक्ति एक ही विषय पर कई बार, बार बार, लगातार लिख सकता है।
ReplyDeleteभाई अनुराग जी
ReplyDeleteईश्वर करें आपका भय सही साबित हो. बेचारों को बाटा वालों को मुझे वापस भेजने के लिए फिरौती में बहुत बड़ी रकम देनी पड़ेगी.
और भाई तस्लीम जी
क्या किया जाए. इतना खा चुके हैं कि कहा नहीं जाता कि दर्द कहाँ-कहाँ है. लिखने के लिए तो संकट तब न होता है जब हवाई जहाज से चल के बैलगाड़ी की कहानी लिखनी होती है.
किसी कवि ने यह भी कहा है-
ReplyDeleteसुनो हमारे बाप बाप के बाप
उनके जूता को हतो छप्पन गज को नाप
छप्पन गज को नाप कि वा में घुसि गो हाथी
बीस बरस तक रह्यो चरण रज को संघाती .
अरे ग़ज़ब हेम जी. निकल आई न बात. अंगरेजवे पक्का जूते से औकात नापने की कला हमीं से सीखे होएंगे.
ReplyDeleteअब हमारा देश कोई स्कूटर जैसा complicated चीज़ थोड़े ही है कि चलाने के लिए योग्यता की आवश्यकता पड़ जाए ये तो उस विमान के सामान है जिसके cockpit में चरवाहे अपने पायलटगीरी का जौहर दिखा रहे हों. :-)
ReplyDeleteआभाष होता है कि बहुत कोई तंग जूते से त्रस्त है पर जल्द से जल्द पिंड छुडाने का कोई कारगर तरीका तो नज़र आये . वैसे भी अकेला जूता **भांड** नहीं फाड़ता .
एक बड़ी आबादी जिसका रोज रोजी के जुगाड़ में ही कट जाता हो ,जिसे देश के अन्दर -बाहर आगे-पीछे का तनिक ज्ञान न हो पाता हो ,जो खुद अशिक्षित हों ,वे नाम,धर्म,जाती,बहकावे ,आकर्षक फोटू ,भाषण ,चुटकुले ,खैरात,दारू या सुन्दर चुनाव चिन्ह से ही आकृष्ट होकर मुहर लगायेंगे ना .
नालायकों और उनके चमचों के लिए कोई भी पद उसकी गरिमा और जिम्मेदारी कोई माएने नहीं रखती ,बस किसी को भी खाली रैकों में उठा उठाकर भर दो भले योग्य हो या ना हों .
सत्य वचन एनॉनिमस जी. असल में यही कष्ट है जिसने हमें जूता चलाने के लिए मजबूर किया है. मैं यह भी जानता हूँ कि अकेला जूता वह नहीं कर सकता जो करना चाहिए. कुछ और ईमानदार जूतों की दरकार है.
ReplyDelete