अथातो जूता जिज्ञासा-29
इन समानधर्माओं में सबसे पहला नाम आता है इराकी पत्रकार मुंतजिर अल ज़ैदी का, जिन्होंने ख़ुद को दुनिया सबसे ताक़तवर समझने वाले महापुरुष जॉर्ज बुश पर जूतास्त्र का इस्तेमाल किया. इसकी आवश्यकता कितने दिनों से महसूस की जा रही थी और कितने लोगों के मन में यह हसरत थी, यह बात आप केवल इतने से ही समझ सकते हैं कि यह जूता चलते ही दुनिया भर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. भले ही कुछ लोगों ने दिखावे के तौर पर शिष्टाचारवश इसकी भर्त्सना की हो, पर अंतर्मन उनका भी प्रसन्न हुआ. बहुत लोगों ने तो साफ़ तौर पर ख़ुशी जताई. गोया करना तो वे ख़ुद यह चाहते थे, पर कर नहीं सके. या तो उन्हें मौक़ा नहीं मिला या फिर वे इतनी हिम्मत नहीं जुटा सके. सोचिए उस जूते की जिसकी क़ीमत चलते ही हज़ारों से करोड़ों में पहुंच गई.
असल में ज़ैदी ने यह बात समझ ली थी कि अब अख़बार तोप-तलवार के मुकाबले के लिए नहीं, सिर्फ़ मुनाफ़े के लिए निकाले जाते हैं. उन्होंने देख लिया था कि अख़बार में बहुत दिनों तक लिख-लिख कर, टीवी पर बहुत दिनों तक चिल्ला-चिल्ला कर बहुतेरे पत्रकार तो थक गए. मर-खप गए और कुछ नहीं हुआ. वह समझ गए थे कि कलम में अब वह ताक़त नहीं रही कि इंकलाब ला सके. इंकलाब की बात करने वाली कलमें भी अब सिर्फ़ पद-प्रतिष्ठा और पुरस्कार बनाने में लग गई हैं. कलमें अब कलमें नहीं रहीं, वे मजदूरी का औजार हो गई हैं. इससे भी नीचे गिर कर कई कलमें तो दलाली का हथियार हो गई हैं. ऐसी कलम को बहुत दिनों तक घिस-घिस कर निब और काग़ज़ बर्बाद करने से क्या फ़ायदा. तो बेहतर है कि इसकी जगह जूता ही चलाया जाए.
यह सिर्फ़ संयोग नहीं है कि उनका जूता ज़ोरदार ढंग से चल गया. असल में इस जूते ने चलते ही उन तमाम मजबूरों-मजलूमों को आवाज़ दी जो सीनियर और जूनियर दोनों बुश लोगों के ज़माने में बेतरह कुचले गए. यही वजह थी जो इस जूते ने चलते ही अपनी वो क़ीमत बनाई जो हर तरह से ऐतिहासिक थी. इतिहास में कभी कोई जूता चलने के बाद उतनी क़ीमत में नहीं बिका होगा, जितनी क़ीमत में वह जूता बिका. भगवान रामचन्द्र के उस खड़ाऊं की भी कोई प्रतिमा कहीं नहीं बनाई गई, जिसने भरत जी की जगह 14 वर्षों तक अयोध्या का राजकाज संभाला. मैंने हाल ही में कहीं पढ़ा था कि किसी जगह उस जूते की प्रतिमा स्थापित की गई है और बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अगर आने वाले दिनों में उसकी पूजा शुरू कर दी जाए.
वैसे भी ऐसे जूते की पूजा क्यों न की जाए, जो बहुत बेजुबानों को आवाज़ दे और बहुत लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने. मसलन देखिए न, उस जूते ने कितने और लोगों को तो प्रेरित किया जूते ही चलाने के लिए. लन्दन में चीन के प्रधानमंत्री पर जूता चला, भारत में गृहमंत्री पर जूता चला और इसके बाद यह जूता केवल पत्रकारों तक सीमित नहीं रहा. कलम छोड़कर जूते को हथियार बनाने वाले सिर्फ़ पत्रकार ही नहीं रहे. पत्रकारों के बाद पहले तो इसे उन्हीं पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपना हथियार बनाया जो अब तक अपने-अपने नेताओं के आश्वासनों पर जीते आ रहे थे आम जनता की तरह, पर आख़िरकार महसूस कर लिया कि नेताजी के आश्वासन तो नेताजी से भी बड़े झूठ निकले. तो पहले उन्होंने जूता चलाया. फिर आम जनता, जो बेचारी बहुत दिनों से जूता चलाने का साहस बटोर रही थी, पर घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों और नाना प्रकार के दबावों के कारण वह ऐसा कर नहीं पा रही थी, उसने भी जूता उठा लिया.
जब तक पत्रकार जूता उठा रहे थे, या पार्टियों के कार्यकर्ता जूते चला रहे थे, तब तक बात और थी. लेकिन भाई अब यह जो जूता बेचारी आम जनता ने उठा लिया है, वह कोई साधारण जूता नहीं है. इस जूते के पीछे बड़े-बड़े गुन छिपे हुए हैं. इसके पीछे पूरा इतिहास है. आम जनता ने जूता उठाने के पहले जूतावादी संस्कृति का पूरा-पूरा अनुशीलन किया है. उसने जूते की बनावट, उसकी उपयोगिता और उसके धर्म को ठीक से समझा है. सही मायने में कहें तो सच तो यह है कि उसने जूता संस्कृति का सम्यक अनुशीलन किया है. तब जा कर वह इस निष्कर्ष तक पहुंची है कि भाई अब तो जूता जी को ही उठाना पड़ेगा. जनता का यह जूता वही जूता नहीं है, जो अब तक उसी पर चलता रहा है. यह जूता सत्ता के जूते से बहुत भिन्न है. और एक बात और, इस जूते के चलने का तो यह सिर्फ़ श्रीगणेश है. यह इसकी इति नहीं है. यह जूता एक न एक दिन तो चलेगा ही यह बात बहुत पहले से सुनिश्चित थी, लेकिन अब यह रुकेगा कब यह तय कर पाना अभी बहुत मुश्किल है.
आगे-आगे देखिए होता है क्या.....
सचमुच शिरोधार्य हो गया है जूता ! न रहेगा कोई अब इससे अछूता !!
ReplyDeleteबुश और बूट
ReplyDeleteदोनों का जवाब नहीं।
अब अख़बार तोप-तलवार के मुकाबले के लिए नहीं, सिर्फ़ मुनाफ़े के लिए निकाले जाते हैं.------------
ReplyDeleteबिल्कुल २४ कैरट खरी बात!
मत खींचो कमानों को, न अखबार गढ़ो।
जब तोप मुकाबिल हो, जूतमपैजार करो!
खस्ता X?
ReplyDeleteस्तम्भ २ -(कार्यo)-हालत=खस्ताX?
स्तम्भ ३ -(न्यायo)-हालत=खस्ताX?
स्तम्भ ४ -(मीडिया)-हालत=खस्ताX?
साली ये जो मेरी आखें देख रही हैं लोकतंत्र है या छलावा ?लोकतांत्रिक खटोले की तीन टांग तो साफ़ टूट चुकी है निचले न्यायालयों की विश्वसनीयता हम सबको पता है .इन हताशाओं में उच्चतम न्यायालय ही खटोले की एक टांग बचाए हुए है .ये भी कब लचर लचर करने लगे और खटिया पर बैठी जनता कब ढायं हो जाए पता नहीं .
सचमुच मीडिया में भी बहुत कम jarnailist बचे हैं. बाकी हाथों में नौ नौ चूडियाँ कर अपने लिए या अपने मालिकों की कमाई के लिए किसी लाल लाईट एरिया में मीडियावृति कर रहे हैं .
कभी कोई एन चुनाव के वक़्त सीबीआई साबुन से नहाकर क्लीन चित होने लगता है तो कहीं कोई डिग विजय किसी को धमकाते हैं की हमरे पास तो सीबीआई का जिन् है .
एन . गोपालास्वामी के कलीग उनकी इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता की मिसाल देते हैं . इमानदारी की मिसाल बने एन . गोपालास्वामी यदि किसी पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हैं तो उनकी बात सुनने की बजाय फट से कोई कानून मंत्री आरोपित के रक्षक बन खड़े हो जाते हैं .उल्टे गोड फेअरिंग गोपालस्वामी को तिलकधारी होने के चलते भगवा एजेंट होने का आरोप लगने लगता है ... दाल में कुछ काला है का भाई ?हें !!
भाई neutral और neuter शब्द में बड़ा कम अंतर है .
खैर आईये मिलें कुछ महानुभावों से :
१.आईये मिलें सदी की महानेत्री इंदिरा गाँधी से
http://www.indiatodaygroup.com/itoday/20000703/view.html
२.आईये मिलें कभी कांग्रेस सदस्य रहीं मानिये प्रतिभा पाटिल से
http://en.wikipedia.org/wiki/Pratibha_Patil#BJP.27s_campaign
३.आईये मिलें दुनिया के सबसे निष्पक्ष व्यक्ति से
http://en.wikipedia.org/wiki/Navin_Chawla
४.अब मिलें इमानदारी और कर्ताव्यनिष्टता के मिसाल एन . गोपालस्वामी से ...
http://www.business-standard.com/india/news/newsmaker-n-gopalaswamy/348168/
http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/1690545.cms
http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/4208716.cms
http://en.wikipedia.org/wiki/N._Gopalaswami
http://www.hindu.com/2009/04/19/stories/2009041960740800.htm
भाई एनॉनिमस जी!
ReplyDeleteआप एतनी निम्मन-निम्मन बात कहते हैं और एनॉनिमस रहते हैं, बहुत नाइंसाफ़ी है. हो सके तो एक बार हमरे ई मेले पर प्रकट हो जाइए. राम जानें, तबियत ख़ुस्स हो जाएगी हमरी.
जितना पढ़ते जाते हैं, जूते के प्रति श्रृद्धाभाव बढ़ता चला जाता है..नतमस्तक हूँ जूता महाराज!!
ReplyDeleteऔर इनका एनॉनिमस रहने की कौन जरुरत आ गई भाई!!
ReplyDeleteतश्तरी जी उ का हई कि सोचल कर हली की तन्नी बोले बतिआवे ला सिक्ख जबयी त अप्पन ला एगो ID बनाब्बई
ReplyDeleteजूते का ये असीम व्याख्यान अद्भुत होता चला जा रहा है...
ReplyDeleteएनानिमस जी की टिप्पणी तो ग़ज़ब की है
बहुत खूब..! बेनामी जी को यूँ ही गुपचुप कहने की छूट दी जाय। :)
ReplyDeleteअच्छा व्याख्यान छेड़ा है। शुक्रिया।
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