उन गालियों की कनेक्टिविटी अदभुत थी
कभी कभी दिमाग की दही निकल जाती है, आप सोचते कुछ हैं, चाहते हैं कुछ है और होता कुछ है...इनसानी खोपड़ी भी अजीब है। एसी स्थिति में बेहतर है दिमाग को रिर्वस में ले जाकर थोड़ी देर के लिए उन पलों को जिंदा कर कर लिया जाये,जिन्होंने कभी आपको गुदगुदाया है। यह एक थेरेपी है, जिसका इस्तेमाल आप कर सकतेहैं, और यकीनन आपको लाभ लोगा...कम से कम मुझे तो होता है। मुखा सिंह के बारे में एक कवावत प्रसिद्ध था, अपना मैल भी फ्री में नहीं देने वाले हैं...साठ साल के हो गये थे, लंबाई छह फीट चार इंच, हाथ में एक डंडा, मैली कुटैली धोती हमेशा ठेहूने तक लटकती थी...और उसकी उजली गंजी पूरी तरह से बदरंग हो चुकी थी...उस मटमैले मुहल्ले के कुछ लोगों ने उसके कान में फूंक दिया था, कि मरने के पहले कुछ एसा काम कर जाओ कि लोग याद करेंगे, वैसे भी तुम अगला जाड़ा नहीं झेस सकोगे...मरने के नाम पर वह लोगों हजारों गालियां निकालता था, दुनियाभर के तमाम रिश्तों के साथ उन गालियों की कनेक्टिविटी अदभुत थी...प्रतियोगिती परीक्षाओं में रिश्तों से संबंधित प्रश्न ठोकने वाले बाबू लोग भी कनेक्टिविटी निकालने में अकबका जाते....उदाहरण के दौर पर दादी धिकलों, बहिन छिनरों, आदि उसके जुबान पर होते थे। अपने आप आप को अमर करने की बात उस बुढ़े की खोपड़ी में धंस गई थी, और अपनी जमीन पर उसने एक धर्मशाला बना दिया था और एक बड़े से पत्थर पर मोटे-मोटे अक्षरों में अपना नाम खुदवा कर उसे टंगवा दिया था...रेलवे लाइन से सटा हुआ यह धर्मशाला मुहल्ला के तमाम लौंडो का मनोरंजन का स्थान था...जाड़े के दिनों में सब यहीं बैठकर धूप तापते थे, शाम को क्रिकेट खेलते थे और रात को दीवार की ओट में बैठकर दारू पीते थे...ढिबरी की रौशनी में यदायदा जुआ भी चलता था।...इस धर्मशाला से सटा हुआ एक मकान था, उसमें कई मकान मालिक के अलावा कई किरदार रहते थे...उस मकान में लौंडियों की संख्या अधिक थी, और उस मुहल्ले के सारे लौंडे उस मकान को अपना ससुराल समझते थे...गैंग का सबसे खतरनाक जासूस था मंगल जासूस....उसका बाप एक कम्युनिस्ट नेता था...और भाषण देने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था...मंगल की जासूसी अदभुती थी...उस मकान के हर लौंडिया का वह पूरी खबर रखता था...यहां तक कि कौन सी लौंडियां ने आज कौन सी चड्डी पहन रखी है...कौन कहां जा रही है....आज किसके घर में क्या आया है...साला वह अदभुत चोर था, किसी भी चीज पर हाथ साफ कर देता था...इधर मंगल मुहल्ले की लौंडियों की खबर रखता था और उधर उसका बाप मुहल्ले की औरतों का...औरतों के बीच में यह बात प्रचलित थी कि मंगला का बाप साला गुंडा है....दो दो बीवी रखे हुये था...और उन दोनों से कितने बच्चे थे गिन पाना मुश्किल था....मंगला पहले नंबर पर था...किसी भी राइटअप का क्लामेक्स कहां होता है...राइटअप की शुरुआत कहां से करनी चाहिये...उसका मीडिल क्या हो....यानि की लिखने की तकनीक क्या हो...ब्लाग बाबा को थैंक्स देना चाहिये कि राइटिंग पर अब संपादकों का कब्जा नहीं रहा...लिखने के शुरुआती दिनों में एबे सिये के स्टाइल में एक चिरकूट अखबार को एक आलेख लिखकर दिया था....संपादक टाइप के चीज ने कहा था भाई इस अखबार में एसे नहीं लिखा जाता है...फार्मेट अलाउ नहीं करता है...एक काम करो तुम फ्रांस में जाकर लिखो....अब मंगला की कहानी कहीं से भी शुरु की जा सकती है...एक व्यापक चरित्र है....क्या वह फार्मेट में आ सकता है....इस आलेख में बहुत कुछ घूसेड़ना चाहता हूं....लेकिन एक साथ बहुत सारी चीजें मेरा इंतजार कर रही हैं।
गोया की ट्रेलर दिखा रहे हो.....
ReplyDeleteडॉ अनुराग जी कुछ कह रहें हैं इस पर भी गौर फरमाएं .
ReplyDeleteअरे बाप रे...दो- दो डाक्टर ...अब तो कुछ बोलना ही होगा...दरअसल डाक्टर साहेब उसे पूरे मुहल्ले को मैं अपनी लेखनी में समेटने के लिये कसमसा रहा हूं....उसके कुछ छींटे निकल कर आ रहे हैं...अब इसे मन से लिखने का समय कब मिलेगा मुझे भी नहीं पता...शायद मिलेगा भी या नहीं....बहुत चरित्र मेरे दिमाग में हिचकोले खा रहे हैं...फिलहाल इसे प्रोमो या ट्रेलर ही समझा जाये...दुआ कीजिये की जल्द ही इसे लिखने अवसर मिल जाये...मुझे लगता है कि डाक्टरों की कनेक्टिविटी सीधे ईश्वर से है...भूल चूक माफ करेंगे..
ReplyDelete"...दुनियाभर के तमाम रिश्तों के साथ उन गालियों की कनेक्टिविटी..."
ReplyDeleteग़ज़ब भाई! अगर मोबाइल कंपनियों वाले ब्लॉग देखें तो आप का अपहरण कर ले जाएं. विज्ञापनों की कॉपीराइटिंग के लिए. क्योंकि किसी की भी कनेक्टिविटी किसी से भी नहीं मिलती. ज़ोरदार है. बधाई.