Ghazel
ग़ज़ल
(ये ग़ज़ल मैंने shashtriya परम्परा से हटकर एक नए मीटर पर लिखी थी जिसके sheron की पहली लाइन में मात्राएं कम रखी गई हैं। अटपटा लग सकता है परन्तु गेयता में व्यवधान नहीं है।)
साँप के घर में नेवले की षिकायत लेकर ।
मिलने जाते हैं कई लोग अदावत लेकर ।
खूब व्यापार सितम का करते,
हाथ में थोड़ा नमूना-ए -षराफत लेकर ।
खुदा का shukriya अदा करना
मरने पाओ जो जिन्दगी को सलामत लेकर।
कोई लेता तो अब थमा देते
हम परेषान हैं गांधी की अमानत लेकर ।
अब सजा और क्या गरीबों को?
ये सजा कम है क्या जीना और मुसीबत लेकर !
पूरी दुनिया खरीद बेच रहे
निकले थे जेब में थोड़ी सी सियासत लेकर ।
राढ़ी तुमने फरेब देखा है
जब तेरे लोग घूमते थे मुहब्बत लेकर ।
लोग देखेंगे दुखी ठग लेंगे
अब निकलना नहीं बिगड़ी हुई हालत लेकर ।
(ये ग़ज़ल मैंने shashtriya परम्परा से हटकर एक नए मीटर पर लिखी थी जिसके sheron की पहली लाइन में मात्राएं कम रखी गई हैं। अटपटा लग सकता है परन्तु गेयता में व्यवधान नहीं है।)
साँप के घर में नेवले की षिकायत लेकर ।
मिलने जाते हैं कई लोग अदावत लेकर ।
खूब व्यापार सितम का करते,
हाथ में थोड़ा नमूना-ए -षराफत लेकर ।
खुदा का shukriya अदा करना
मरने पाओ जो जिन्दगी को सलामत लेकर।
कोई लेता तो अब थमा देते
हम परेषान हैं गांधी की अमानत लेकर ।
अब सजा और क्या गरीबों को?
ये सजा कम है क्या जीना और मुसीबत लेकर !
पूरी दुनिया खरीद बेच रहे
निकले थे जेब में थोड़ी सी सियासत लेकर ।
राढ़ी तुमने फरेब देखा है
जब तेरे लोग घूमते थे मुहब्बत लेकर ।
लोग देखेंगे दुखी ठग लेंगे
अब निकलना नहीं बिगड़ी हुई हालत लेकर ।
नयी विधाओं का स्वागत रहेगा, ऐसे प्रयोगों से काफ़ी कुछ सीखने को मिलता है
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
ऐसी-वैसी अमानत लेकर निकलेंगे तो परेशान तो होंगे ही.
ReplyDeleteअच्छा प्रयोग है। इसी प्रकार नई विधाओं का जन्म होता है।
ReplyDelete-----------
SBAI TSALIIM
पूरी दुनिया खरीद बेच रहे
ReplyDeleteनिकले थे जेब में थोड़ी सी सियासत लेकर ।
बहुत अच्छा प्रयास रहा आपका...बधाई...
नीरज
उम्दा है .
ReplyDeleteविनय जी ,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को पहली बार देखा . चाँद ,बादल और शाम अच्छी लगीं . विस्तार में फिर देखूंगा और लिखूंगा
हरी शंकर rarhi
लोग देखेंगे दुखी ठग लेंगे
ReplyDeleteअब निकलना नहीं बिगड़ी हुई हालत लेकर । बहुत खूब। एक मिसरा जोड़ता चलूँ
भूल जाओ भी कोई बात नहीं
हम तो जी लेंगे तेरी यादे मोहब्बत लेकर।
(सिद्धार्थ)