...तुम दौड़ पड़ती हो मेरे संग इंद्रधनुष की ओर
वोदका के घूंट के साथ तेरी सांसों में
घुलते हुये तेरे गले के नीचे उतरता हूं,
और फैल जाता हूं तेरी धमनियो में।
धीरे-धीरे तेरी आंखो में शुरुर बनके छलकता हूं,
और तेरे उड़ते हुये ख्यालों के संग उड़ता हूं।
कुछ दूरी के बाद हर ख्याल गुम सा हो जाता है,
और मैं बार-बार लौटता हूं, नवीणता के लिए।
ख्यालों के धुंधला पड़ते ही, तुम कोई सुर छेड़ती हो,
और मैं इस सुर में मौन साधे देर तक भीगता हूं।
सप्तरंगी चक्रो में घूमते और उन्हें घुमाते हुये
लय के साथ मैं ऊपर की ओर उठता हूं,
और तुम तरंगों में ऊबडूब करती हो।
तुम्हारी बेकाबू सासों में सात सूरों को तलाशते
तेरे दोनों आंखों के बीच अपनी बंद आंखे टिकाता हूं
......फिर तुम दौड़ पड़ती हो मेरे संग इंद्रधनुष की ओर।
घुलते हुये तेरे गले के नीचे उतरता हूं,
और फैल जाता हूं तेरी धमनियो में।
धीरे-धीरे तेरी आंखो में शुरुर बनके छलकता हूं,
और तेरे उड़ते हुये ख्यालों के संग उड़ता हूं।
कुछ दूरी के बाद हर ख्याल गुम सा हो जाता है,
और मैं बार-बार लौटता हूं, नवीणता के लिए।
ख्यालों के धुंधला पड़ते ही, तुम कोई सुर छेड़ती हो,
और मैं इस सुर में मौन साधे देर तक भीगता हूं।
सप्तरंगी चक्रो में घूमते और उन्हें घुमाते हुये
लय के साथ मैं ऊपर की ओर उठता हूं,
और तुम तरंगों में ऊबडूब करती हो।
तुम्हारी बेकाबू सासों में सात सूरों को तलाशते
तेरे दोनों आंखों के बीच अपनी बंद आंखे टिकाता हूं
......फिर तुम दौड़ पड़ती हो मेरे संग इंद्रधनुष की ओर।
ऊबडूब बखूबी हुई है
ReplyDeleteरंगों की चाहत
पूरी हुई है।
और तुम तरंगों में ऊबडूब करती हो।
ReplyDeleteतुम्हारी बेकाबू सासों में सात सूरों को तलाशते
तेरे दोनों आंखों के बीच अपनी बंद आंखे टिकाता हूं
......फिर तुम दौड़ पड़ती हो मेरे संग इंद्रधनुष की ओर।
wodaka se jayada nashaa hai BHAI
in panktiyon me......bahut hi kamaal kar di ......ek kawita jo nasha ugalati ho
waah !!
ReplyDeleteumda !
ReplyDeleteuttam !
wow..... :-|
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletesunder rachana
और मैं बार-बार लौटता हूं, नवीणता के लिए,....
ReplyDeleteयही सच है .
अच्छी रचना .