देवियों और सज्जनों
पता है मुझे
कौन है देवी
और कौन है सज्जन
सच तो ये है
न कोई देवी है
न कोई सज्जन
सच तो ये भी है
कि मैं भी सज्जन नहीं
न देवी, न देवता
यह तो लबादा है
जिसे ओढ़कर
हम सब सज्जन होने का
करते हैं नाटक
दरअसल,हकीकत तो नाटक ही है
ये दुनिया एक रंगमंच है
कुछ समझे बाबू मोशाय
अरे जम के करो नौटंकी
अपनी भूमिका सलीके से निभाओ
साफ-साफ और सलीके से बोलो
ऐसा बोलो कि मजा आ जाय
लोग कहें वाह-वाह
नाटक कम्पनी दे पुरस्कार
कुछ समझे देवियों और सज्जनों।।।।
संजय राय
21 जून,2009
कौन है देवी
और कौन है सज्जन
सच तो ये है
न कोई देवी है
न कोई सज्जन
सच तो ये भी है
कि मैं भी सज्जन नहीं
न देवी, न देवता
यह तो लबादा है
जिसे ओढ़कर
हम सब सज्जन होने का
करते हैं नाटक
दरअसल,हकीकत तो नाटक ही है
ये दुनिया एक रंगमंच है
कुछ समझे बाबू मोशाय
अरे जम के करो नौटंकी
अपनी भूमिका सलीके से निभाओ
साफ-साफ और सलीके से बोलो
ऐसा बोलो कि मजा आ जाय
लोग कहें वाह-वाह
नाटक कम्पनी दे पुरस्कार
कुछ समझे देवियों और सज्जनों।।।।
संजय राय
21 जून,2009
सुंदर और प्रभावशाली कविता।
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत बढिया!!
सटीक।
बहुत बढिया रचना !!
ReplyDeleteumda !
ReplyDeleteatyant umda rachna
bhai.......badhaai !
मजा आ गया आप की रचना पढ कर, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
मजेदार और सटीक .
ReplyDeleteरोचक रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteसुस्वागतम!!
bahut dino baad dikhe. bilkul khanti such aur practicle rachna.
ReplyDeletehari shanker rarhi
सही कहा भाई ! दुनिया तो रंगमंच ही है.
ReplyDeletemaza aa gaya
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