अनवरत तलाश
मीलों आगे चलते हुये अनवरत तलाश
...अंधरे पथ को टटोलने की कोशिश...मंजिल का पता नहीं...सुबह कोसों दूर।
बादलों से घिरा आससान, रिमझिम बूंदे,
फिजा में फैली हुई धरती की सोंधी महक,
घने वृक्ष के तले लुप्त होती चेतना,
रहस्यों के कोहरे को चीर कर बढ़ते मेरे कदम।
घुमावदार पर्वत की नमी, उससे टकराकर लौटती खुद की सांस,
अतल गहराई और उसमें उतरने की अदम्य इच्छा...चेतन पर अचेतन का कब्जा।
बौने होते अब तक के सींचे गये विचार,
उभरें पर्वतों के उस ओर देखने की कोशिश
...व्यर्थ...!व्यर्थ...!!व्यर्थ...!!!अंधेरे में पसरी मौन आवाज,
सुरमई गहराईयों में डूबना....बस डूबते ही जाना....
नमी के साथ कल-कल की आवाज,
रहस्मय अंधकार के उस पार उफनती नदी का अहसास।
शिराओं को नर्म स्पर्श करते हुये आगे बढ़ना
एक छोटी सी आवेग भरी धारा....
दूसरी..तीसरी...चौथी....फिर अनवरत निर्मल प्रवाह।
थकान से चूर मस्तिष्क और तपता हुआ शरीर
रोक देती है मुझे एक निश्चित बिंदू पर,
निर्झर के उदगम की ओर नहीं बढ़ पाना
असर्मथता ही तो है...
कहीं इस अनवरत तलाश में मैं खुद न खो जाऊं !!!!!!!
...अंधरे पथ को टटोलने की कोशिश...मंजिल का पता नहीं...सुबह कोसों दूर।
बादलों से घिरा आससान, रिमझिम बूंदे,
फिजा में फैली हुई धरती की सोंधी महक,
घने वृक्ष के तले लुप्त होती चेतना,
रहस्यों के कोहरे को चीर कर बढ़ते मेरे कदम।
घुमावदार पर्वत की नमी, उससे टकराकर लौटती खुद की सांस,
अतल गहराई और उसमें उतरने की अदम्य इच्छा...चेतन पर अचेतन का कब्जा।
बौने होते अब तक के सींचे गये विचार,
उभरें पर्वतों के उस ओर देखने की कोशिश
...व्यर्थ...!व्यर्थ...!!व्यर्थ...!!!अंधेरे में पसरी मौन आवाज,
सुरमई गहराईयों में डूबना....बस डूबते ही जाना....
नमी के साथ कल-कल की आवाज,
रहस्मय अंधकार के उस पार उफनती नदी का अहसास।
शिराओं को नर्म स्पर्श करते हुये आगे बढ़ना
एक छोटी सी आवेग भरी धारा....
दूसरी..तीसरी...चौथी....फिर अनवरत निर्मल प्रवाह।
थकान से चूर मस्तिष्क और तपता हुआ शरीर
रोक देती है मुझे एक निश्चित बिंदू पर,
निर्झर के उदगम की ओर नहीं बढ़ पाना
असर्मथता ही तो है...
कहीं इस अनवरत तलाश में मैं खुद न खो जाऊं !!!!!!!
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट .
ReplyDeleteसुस्वागतम!!
ReplyDeleteतलाश अच्छी रही।
ekdum adbhut...too good
ReplyDeleteबेहतरीन....बेहतरीन....बेहतरीन
ReplyDeleteवाह बंधुवर... वाह..
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