विनिमय
कभी- कभी क्या
अब प्रायः लगने लगा है
कि यह विश्व
विनिमय पर टिका है
स्रष्टा की सुन्दरतम कृति
मानव
पूर्णतया विनिमय का विषय
हो गया है,
जन्म प्रभृति से ही
विनिमय उसका कर्तव्य
या फिर
लक्ष्य हो जाता है
अबोध शिशु के रूप में
अपनी निश्छल मुस्कान
स्वतः स्फूर्त किलकारी
एवं
सुकोमल कपोल का
चुम्बन
मां के प्यार ,चैन एवं वात्सल्य से
बदल लेता है
उसी ऊर्जा से विकसित हो
जवान हो जाता है
और माँ हो जाती है
बूढी.
बडा होने पर
उसका विनिमय क्षेत्र
बढ जाता है,
वह ऊर्जा , इमोशन एवं कौशल का
विनिमय करने लगता है .
प्रायः रूप , सौन्दर्य एवं लावण्य
को खुशामद ,गर्मी एवं काम से
विनिमित कर लेता है
इसे ही
सफलता मानता है .
पर
कभी- कभी
विनिमय तो होता है
किंतु अभीष्ट से नहीं
सदियों से
विनिमय में घाटा भी हुआ है-
मछुआरे ने जाल फेंका था
सुनहरी मछली नहीं
सांप फंस गया था
जाल भी गया
कभी- कभी तो
शेर भी फंस गया
परंतु
सबसे हानिप्रद विनिमय
उसने तब किया था
जब समुद्र मंथन हुआ था
अमृत चाहा था
हालाहल मिल गया था
श्रम के विनिमय में,
हाँ, वह देवता था
ऊँचे विचार थे उसके,
स्वयं के लिए
अमृत तलाशता रहा
और
विष दे दिया शिव को
पीने के लिए
आदरपूर्वक,
बस
यही एकमात्र विनिमय नहीं था
मुफ्त दे दिया था
शिव को
पीने के लिए
सिर्फ इतना ही
पर वह
आज भी देवता है .
अब प्रायः लगने लगा है
कि यह विश्व
विनिमय पर टिका है
स्रष्टा की सुन्दरतम कृति
मानव
पूर्णतया विनिमय का विषय
हो गया है,
जन्म प्रभृति से ही
विनिमय उसका कर्तव्य
या फिर
लक्ष्य हो जाता है
अबोध शिशु के रूप में
अपनी निश्छल मुस्कान
स्वतः स्फूर्त किलकारी
एवं
सुकोमल कपोल का
चुम्बन
मां के प्यार ,चैन एवं वात्सल्य से
बदल लेता है
उसी ऊर्जा से विकसित हो
जवान हो जाता है
और माँ हो जाती है
बूढी.
बडा होने पर
उसका विनिमय क्षेत्र
बढ जाता है,
वह ऊर्जा , इमोशन एवं कौशल का
विनिमय करने लगता है .
प्रायः रूप , सौन्दर्य एवं लावण्य
को खुशामद ,गर्मी एवं काम से
विनिमित कर लेता है
इसे ही
सफलता मानता है .
पर
कभी- कभी
विनिमय तो होता है
किंतु अभीष्ट से नहीं
सदियों से
विनिमय में घाटा भी हुआ है-
मछुआरे ने जाल फेंका था
सुनहरी मछली नहीं
सांप फंस गया था
जाल भी गया
कभी- कभी तो
शेर भी फंस गया
परंतु
सबसे हानिप्रद विनिमय
उसने तब किया था
जब समुद्र मंथन हुआ था
अमृत चाहा था
हालाहल मिल गया था
श्रम के विनिमय में,
हाँ, वह देवता था
ऊँचे विचार थे उसके,
स्वयं के लिए
अमृत तलाशता रहा
और
विष दे दिया शिव को
पीने के लिए
आदरपूर्वक,
बस
यही एकमात्र विनिमय नहीं था
मुफ्त दे दिया था
शिव को
पीने के लिए
सिर्फ इतना ही
पर वह
आज भी देवता है .
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना
bahut achchhi kavita likhi hai aapne...bahut kachh kahti hai ye
ReplyDelete"स्रष्टा की सुन्दरतम कृति
ReplyDeleteमानव
पूर्णतया विनिमय का विषय
हो गया है...
................"
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! अत्यन्त सुंदर! श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
vicharneey ...बहुत hi सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteIs arthpurn rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteकृषण गोपाल के जन्म की लाख लाख वधाइयां | अमृत [बेशक चाल से ही] पीने वाले तो केवल देवता बनते हैं मगर हलाहल धारक सीधे भगवान् बनते हैं.| कितने देवताओं को लोग जानते हैं मगर शिव के बाद सुकरात और मीरा तक लोगों की जुबान पर हैं|
ReplyDeleteझल्ली-कलम-से
अंग्रेजी-विचार.ब्लागस्पाट.कॉम
झल्ली गल्लां
इदम सत्यम, शेष मिथ्या.
ReplyDeleteइस कलियुग में लेन-देन का काम तो होता ही रहेगा। इसमें बुराई ढूँढकर हलकान होने की जरूरत नहीं है। जरूरत है अच्छाई बाँटने की और बुराई को शमित करने की।
ReplyDeleteस्वयं के लिए
ReplyDeleteअमृत तलाशता रहा
और
विष दे दिया शिव को
पीने के लिए
- सदा से यही होता आया है. आज और अधिक हो रहा है.
बहुत सुन्दर
ReplyDelete'..........यही एकमात्र विनिमय नहीं था...........'
ReplyDeleteएक अच्छी कविता के लिए बधाई .
० राकेश 'सोऽहं'
हां भैया सबकुछ विनिमय पर टिका है ,आज अनायास ही नज़र मंदिर के पूजारी पर पड़ गई .और पड़ गयी तो दिन भर आते जाते नज़र उसी पर रही.
ReplyDeleteतीज के अवसर पर वो आज दिन भर सत्य नारायण कथा का पाठ कर रहा था ,अन्धविश्वाशी औरतों का हुजूम उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं था .पंडित कह रहा था की दानपुन्य न कर के खाने से बिल्ली मक्क्खी और न जाने कौन कौन योनियों में जन्म होने का खतरा रहता है.बेचारे पंडित के घरवाले कई टोकरे चढावे ढोते घसकाते और अन्दर करते परेशान रहे .
विचारपरक रचना. विनिमय का बढ्ता दायरा और उसमे फंसता आदमी.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति