पोंगा पंथ अप टु कन्याकुमारी -3
दिये में तेल डालने का शुल्क देकर हम आगे निकले ही थे कि एक दूसरे कार्यकर्ता ने हमें रोका । उसके पास रसीदों की गड्डी थी । उसकी आज्ञानुसार हमें प्रति व्यक्ति पांच रुपये का टिकट लेना था । सामने एक बोर्ड पर क्षेत्रीय भाषा में पता नहीं क्या - क्या लिखा था जिसे वह हमें बार- बार दिखा रहा था । उसमें हम जो पढ़ सकते थे वह था अंगरेजी में लिखा हुआ - एंट्री-५/-। हमें लगा कि शायद यह मंदिर का प्रवेश शुल्क होगा । जब हमने टिकट ले लिया तो उसने इशारा किया कि हमें ऊपर जाना है । हालांकि हमारी ऐसी कोई इच्छा नहीं थी , फिर भी जाना ही पड़ा । हमने सोचा कि शायद कोई दर्शन होगा । बहरहाल , सीढ़ियाँ चढ़कर प्रथमतल पर गए तो वहां एक हाल सा था जिसमें कुछ चित्र लगे हुए थे। प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी, सीलन भरी पड़ी थी और एक तरफ चमगादड़ों का विशाल साम्राज्य था - कुछ उल्टे लटके थे तो कुछ हमारे जाने से विक्षोभित हो गए थे और अपना गुस्सा प्रकट कर रहे थे। अब इसके ऊपर जाना हमने उचित नहीं समझा और नीचे आ गए। इस दरवाजे को पार कर हम आगे निकले और दर्शन की पंक्ति में लग गए। यहां हमें मालूम हुआ कि जिस प्रथम माले से हम वापस आए थे, उसके ऊपर छः माले और हैं तथा सातवें माले से पूरा शहर दिखता है और वे पांच रुपये इसी के एवज मे लिए जाते हैं। वस्तुतः मंदिर का गोपुरम सात मंजिल का है और मंदिर प्रशासन ने अपने व्यवसाय प्रबंधन कुशलता का परिचय देते हुए नगरदर्शन की यह सुविधा उपलब्ध करवाई है।
खैर, नगरदर्शन से वंचित होने का हमें कोई क्षोभ नहीं हुआ।हम सभी पंक्तिबद्ध थे।शाम के साढ़े चार बजे होंगे। अचानक कुछ लोग समूह में आए और पंक्ति को उपेक्षित कर आगे बढ़ गए। मैंने सोचा था कि कम से कम ऐसी जगह पर तो लोग स्वानुशासन में रहेंगे परन्तु शायद यह भी अपने देश की विविधता में एकता है ! चाहे उत्तर हो या दक्षिण, नियम तोड़ने में हम बराबर के हिस्सेदार है। पांच बजे के करीब दर्शन शुरू हुए होंगे । अब लाइन का नाम करीब-करीब मिट गया था। ढंग की -धक्का मुक्की थी। अन्दर न तो पुलिस की कोई व्यवस्था थी और न स्वयंसेवकों का कोई अता-पता !गनीमत यह थी कि चोरी -जेबतराशी जैसी महामारी वहाँ नही के बराबर है। वैसे भी हमारे पर्स हमारे हाथों में ही थे। भीड़ में दम घुट सा रहा था। बस, केवल दर्शन करके हम बाहर निकलने के प्रयास में लग गए और किसी तरह जल्दी ही सफल भी हो गए। कोई पूजा या प्रसाद के चक्कर में हम थे भी नहीं! हां, मंदिर बड़ा ही भव्य है और उसके स्थापत्य और विशालता को जितना देख और समझ सकता था, उतना प्रयास करता रहा।
स्वामी पद्मनाभ का यह मंदिर भी दक्षिण भारतीय शैली के स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है। अत्यन्त विशाल यह मंदिर हिन्दू धर्म के वैभव का प्रतीक है और एक समृद्ध समाज का परिचायक है।दूर से ही इसका विशाल गोपुरम दर्शकों और श्रद्धालुओं को खींच लेता है।
समूचा मंदिर विशाल पत्थरों को तराश कर बनाया गया है।यह मंदिर पद्मनाभस्वामी क्षेत्रम् और अनन्तपुरी के नाम से विख्यात है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्वाभिमुख है और इसका गोपुरम सात मालों का है जिसकी उंचाई 100 फीट है। गोपुरम के सम्मुख एक विशाल सरोवर पद्मतीर्थम है जो मंदिर की सुंदरता में अभिवृद्धि करता है । यह बात अलग है कि इसकी साफ सफाई पर कोई ध्यान देने वाला मुझे नहीं लगा।
मन्दिर का गलियारा भी बहुत बड़ा है और 365 खंभो को बड़ी बारीकी से तराश कर लगाया गया है। गर्भगृह एक विशाल चबूतरे पर है जो एकमात्र पत्थर को काटकर बनाया गया है और इसे ओट्टकल मंडपम के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में भी बहुत सी किंवदंतियां हैं। जैसा कि मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है, मंदिर स्वामी पद्मनाभ को समर्पित है जो भगवान विष्णु का ही एक रूप है। विग्रह की मुख्य विशेषता यह है कि यह शयन मुद्रा में है। कहा जाता है कि यह विग्रह कुल 12008 शालिग्राम को जोड़कर बनाया गया है जो नेपाल स्थित गंडकी नदी से लाए गये थे। इसके अतिरिक्त यहां श्री नरसिंह, श्री हनुमान, श्री कृष्ण ,श्री अइयप्पा और श्री गरुण की मूर्तियां भी स्थापित हैं। वस्तुतः यह 108 देवदर्शन में एक प्रमुख स्थल है।
मंदिर की संपूर्णता का आनन्द तो बस देखकर ही लिया जा सकता है । अगर पूरी जानकारी प्राप्त कर लेख लिखा जाए तो कई पृष्ठों में जाएगा। हां, मैं आपका ध्यान दर्शन के समय पर जरूर दिलाना चाहूंगा, जरा इस विचित्रता को गौर फरमाएं । देव दर्शन की यह समयबद्धता कम से कम मुझे तो बिलकुल नहीं सुहाई। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि ईश्वर को हम अपने नियमों में न बांधे और उसे तो श्रद्धालुओं के लिए मुक्त कर दें!
यह रही स्वामी पद्मनाभ के दर्शन की समय सारणी-
पूर्वाह्न -3:30 - 4:45
6:30 -7:00
8:30 -10:00
10:30-11:00
11:45-12:00
अपराह्न
5:00-6:15
6:45-7:20
खैर, नगरदर्शन से वंचित होने का हमें कोई क्षोभ नहीं हुआ।हम सभी पंक्तिबद्ध थे।शाम के साढ़े चार बजे होंगे। अचानक कुछ लोग समूह में आए और पंक्ति को उपेक्षित कर आगे बढ़ गए। मैंने सोचा था कि कम से कम ऐसी जगह पर तो लोग स्वानुशासन में रहेंगे परन्तु शायद यह भी अपने देश की विविधता में एकता है ! चाहे उत्तर हो या दक्षिण, नियम तोड़ने में हम बराबर के हिस्सेदार है। पांच बजे के करीब दर्शन शुरू हुए होंगे । अब लाइन का नाम करीब-करीब मिट गया था। ढंग की -धक्का मुक्की थी। अन्दर न तो पुलिस की कोई व्यवस्था थी और न स्वयंसेवकों का कोई अता-पता !गनीमत यह थी कि चोरी -जेबतराशी जैसी महामारी वहाँ नही के बराबर है। वैसे भी हमारे पर्स हमारे हाथों में ही थे। भीड़ में दम घुट सा रहा था। बस, केवल दर्शन करके हम बाहर निकलने के प्रयास में लग गए और किसी तरह जल्दी ही सफल भी हो गए। कोई पूजा या प्रसाद के चक्कर में हम थे भी नहीं! हां, मंदिर बड़ा ही भव्य है और उसके स्थापत्य और विशालता को जितना देख और समझ सकता था, उतना प्रयास करता रहा।
स्वामी पद्मनाभ का यह मंदिर भी दक्षिण भारतीय शैली के स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है। अत्यन्त विशाल यह मंदिर हिन्दू धर्म के वैभव का प्रतीक है और एक समृद्ध समाज का परिचायक है।दूर से ही इसका विशाल गोपुरम दर्शकों और श्रद्धालुओं को खींच लेता है।
समूचा मंदिर विशाल पत्थरों को तराश कर बनाया गया है।यह मंदिर पद्मनाभस्वामी क्षेत्रम् और अनन्तपुरी के नाम से विख्यात है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्वाभिमुख है और इसका गोपुरम सात मालों का है जिसकी उंचाई 100 फीट है। गोपुरम के सम्मुख एक विशाल सरोवर पद्मतीर्थम है जो मंदिर की सुंदरता में अभिवृद्धि करता है । यह बात अलग है कि इसकी साफ सफाई पर कोई ध्यान देने वाला मुझे नहीं लगा।
मन्दिर का गलियारा भी बहुत बड़ा है और 365 खंभो को बड़ी बारीकी से तराश कर लगाया गया है। गर्भगृह एक विशाल चबूतरे पर है जो एकमात्र पत्थर को काटकर बनाया गया है और इसे ओट्टकल मंडपम के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में भी बहुत सी किंवदंतियां हैं। जैसा कि मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है, मंदिर स्वामी पद्मनाभ को समर्पित है जो भगवान विष्णु का ही एक रूप है। विग्रह की मुख्य विशेषता यह है कि यह शयन मुद्रा में है। कहा जाता है कि यह विग्रह कुल 12008 शालिग्राम को जोड़कर बनाया गया है जो नेपाल स्थित गंडकी नदी से लाए गये थे। इसके अतिरिक्त यहां श्री नरसिंह, श्री हनुमान, श्री कृष्ण ,श्री अइयप्पा और श्री गरुण की मूर्तियां भी स्थापित हैं। वस्तुतः यह 108 देवदर्शन में एक प्रमुख स्थल है।
मंदिर की संपूर्णता का आनन्द तो बस देखकर ही लिया जा सकता है । अगर पूरी जानकारी प्राप्त कर लेख लिखा जाए तो कई पृष्ठों में जाएगा। हां, मैं आपका ध्यान दर्शन के समय पर जरूर दिलाना चाहूंगा, जरा इस विचित्रता को गौर फरमाएं । देव दर्शन की यह समयबद्धता कम से कम मुझे तो बिलकुल नहीं सुहाई। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि ईश्वर को हम अपने नियमों में न बांधे और उसे तो श्रद्धालुओं के लिए मुक्त कर दें!
यह रही स्वामी पद्मनाभ के दर्शन की समय सारणी-
पूर्वाह्न -3:30 - 4:45
6:30 -7:00
8:30 -10:00
10:30-11:00
11:45-12:00
अपराह्न
5:00-6:15
6:45-7:20
अजी सब ओर ठगी ही ठगी है, भगवान भी इस मंदिर को छोड कर भाग गये होगे. वेसे हम लोग सिर्फ़ डंडे से ही चलते है, यह लाईन का चक्कर मैने इटली मै देखा था सब लोग लाईन मै लगे थे, बस हमारी नस्ल के कुछ लोग गरुप मे आये..... ओर अपना पन दिखा दिया.
ReplyDeleteधन्यवाद
It happens only in India !!!
ReplyDelete:)
kya hum sab milkar stithi ko behtar nahin bana sakte... akhir humara apna desh hai!
बहुत सुन्दर चित्रण. आभार..
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट है।
ReplyDeleteगोवर्धन-पूजा
और भइया-दूज की शुभकामनाएँ!
नमस्कार अगर आप को मेरा कामेंट बुरा लगा तो आईंदा नही करुगां. धन्यवाद
ReplyDeleteअरे ऎसी कोई बात नही, मेने समझा आप को बुरा लगा, इस लिये चलिये गलती की माफ़ी चाहूंगा, ओर आता जाता रहूंगा, वेसे आप ने लिखा भी बहुत खुल कर है, शुद्ध मन से. धन्यवाद
ReplyDeleteक्या यह बेहतर नहीं होगा कि ईश्वर को हम अपने नियमों में न बांधे और उसे तो श्रद्धालुओं के लिए मुक्त कर दें!-अच्छा सुझाव!
ReplyDeleteअरे भाई साहब इस छोटे से देश की नाव के खेवनहारों से मिलने के लिए जब समय लेने के बाव्ज़ूद नहीं मिला जा सकता तो वह तो पूरी दुनिया के भवसागर का खेवनहार है तो उससे बिना समय लिए हर समय कैसे मिला जा सकता है?
ReplyDeleteचाहे उत्तर हो या दक्षिण, नियम तोड़ने में हम बराबर के हिस्सेदार हैं........ बिल्कुल सही फ़रमाया हुज़ूर आपने. यही तो कुछ ऐसे मसले हैं जिनसे यह पता चलता है कि पूरा भारत एक है. विविधता में एकता का असली प्रमाण.
ReplyDeleteभैया ओझाजी ,
ReplyDeleteयही तो अंतर है नेताओं और भगवान में कि वह भगवान होकर भी खुद को भगवान नहीं समझता ! उसका द्वार तो दीन- हीन के लिए चौबीस घंटे सातो दिन खुला रहता है. समस्या तो उनसे है जो खुद को भगवान समझ बैठे हैं या फिर थोडा – बहुत हमने ही बना दिया है.
आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूं। इन पांगापंथियों ने ही धर्म का सबसे ज्यादा नुकसान किया है।
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )