टीवी क्राइम शो और उसके इफेक्ट को रिफ्लेक्ट करता फिल्म राब्स का सीन 5
मित्रों आलोक जी ने यह एपिसोड समय से लिखकर सहेज दिया था, मैं ही अपनी निजी व्यस्तता के कारण इसे पोस्ट नहीं कर सका. बहरहाल, आशा है सुधी पाठक देर के लिए मुझे क्षमा करेंगे. फिल्म की पटकथा में जितनी महत्वपूर्ण चीज़ कहानी होती है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है उसके अलग-अलग चरित्रों का विकास. यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है फिल्म में कब, कहां और किस तरह उनकी एंट्री कराई जाए. यह सब कई बातों को ध्यान में रख कर करना होता और वह भी एक ख़ास रणनीति के तहत. इस किस्त में आलोक नन्दन ने इन्हीं बारीकियों का ज़िक्र किया है. - इष्ट देव सांकृत्यायन आलोक नंदन सीन 4 में जज पंत के दैनिक जीवन को दिखाया गया है...उसके दिन की शरुआत गार्डेन से होती है, फूल-पत्तियों से उसे प्यार है। इस सीन में ललन को इंट्रोड्यूस किया गया है...साथ ही एक और नाम आया है...मैक्सफियर...जब मैं इस स्टोरी को डेवल्प कर रहा था तो मुझे लगा कि इसमें एक ऐसे कैरेक्टर का समावेश करूं जो सही मायने में इंग्लैंड से जुड़ा हो....दिमाग शेक्सपीयर पर आकर टिक ग