रामेश्वरम : बेहद अपने लगने लगे राम
हरिशंकर राढ़ी कोडाईकैनाल से अपराह्नन चली हुई हमारी बस करीब साढ़े सात बजे मदुराई बस स्टैण्ड पर पहुँची तो झमाझम बारिश हो रही थी। बस से उतरे तो पता चला कि मित्र की जेब से बटुआ किसी ने मार लिया था। यह घटना हमारे लिए अप्रत्याशित थी। क्योंकि हमें विश्वास था कि दक्षिण भारत में ऐसा नहीं होता होगा। वैसे मुझे यह भी मालूम था कि मित्र महोदय बड़े लापरवाह हैं और उनकी अपनी गलती से भी बटुआ गिर सकता है। ऐसा एक बार पहले भी हुआ था , जब हम त्रिवेन्द्रम से मदुराई जा रहे थे। उस समय उनका बटुआ , जो पैंट की पिछली जेब में था और अधिकांश लोग ऐसे ही रखते हैं , गिरते - गिरते बचा था। मेरी पत्नी ने देख कर आगाह कर दिया था। बटुए में पैसा तो अधिक नहीं था किन्तु उनका परिचय पत्र , ड्राइविंग लाइसेन्स और एटीएम कार्ड था। हम सभी का परेशान होना तो स्वाभाविक था ही। तलाश प्रारम्भ हुई और अन्ततः निराशा पर समाप्त हुई। किन्तु पता नहीं क्यों मुझे बार - बार ऐसा लग रहा था क...