इष्ट देव सांकृत्यायन विषयों में एक विषय है गणित. इस विषय के भीतर भी एक विषय है रेखागणित. ऐसे तो इस विषय के भीतर कई और विषय हैं. अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति, लॉगरिथ्म, संख्यिकी, कलन आदि-आदि, मने विषयों की भरमार है यह अकेला विषय. इस गणित में कई तो ऐसे गणित हैं जो अपने को गणित कहते ही नहीं. धीरे से कब वे विज्ञान बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता. हालाँकि ऊपरी तौर पर विषय ये एक ही बने रहते हैं; वही गणित. हद्द ये कि तरीक़ा भी सब वही जोड़-घटाना-गुणा-भाग वाला. अरे भाई, जब आख़िरकार सब तरफ़ से घूम-फिर कर हर हाल में तुम्हें वही करना था, यानि जोड़-घटाना-गुणा-भाग ही तो फिर बेमतलब यह विद्वता बघारने की क्या ज़रूरत थी! वही रहने दिया होता. हमारे ऋषि-मुनियों ने बार-बार विषय वासना से बचने का उपदेश क्यों दिया, इसका अनुभव मुझे गणित नाम के विषय से सघन परिचय के बाद ही हुआ. जहाँ तक मुझे याद आता है, रेखागणित जी से मेरा पाला पड़ा पाँचवीं कक्षा में. हालाँकि जब पहली-पहली बार इनसे परिचय हुआ तो बिंदु जी से लेकर रेखा जी तक ऐसी सीधी-सादी लगीं कि अगर हमारे ज़माने में टीवी जी और उनके ज़रिये सूचनाक्रांति जी का प्रादुर्भाव ...
आ गया है. स्वागतम
ReplyDeleteगली-गली में घूम रहीं हैं, हुलियारों की टोली।
ReplyDeleteनाच उठी चञ्चल नयनों में, रंगों की रंगोली।।
उड़ते हैं अम्बर में गुलाल,
नभ-धरा हो गये लाल-लाल,
गोरी का बदरंग हाल, थिरकी है हँसी-ठिठोली।
नाच उठी चञ्चल नयनों में, रंगों की रंगोली।।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 20.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
गोरी को बहकाने
ReplyDeleteतन-मन को भरमाने
फाल्गुन आया रे ।
बहुत सामयिक रचना...आभार.
Bahut acchi rachna..
ReplyDeleteआ गया फ़ागुन, झंकार होने लगी है।
ReplyDeleteफागुनी रंगों की अद्भुद छटा बिखेरती सरस मुग्धकारी रचना....
ReplyDeleteपढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...